Book Title: Nagil Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir AIME ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ श्रीनागीलचरित्रम् ॥ (मूल अने भाषांतर सहित) (द्वितीयावृतिः) gyan mandir@kobatirth org சங் (कर्ता-श्रीवर्धमानमरि) -पावी प्रसिद्ध करनार:पण्डित हीरालाल हंसाराज-जामनगर. Hari (सने १९३५) मुद्रकः-श्रीजनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. किंमत ०-८-० (वीरसंवत् २४६१) RRESSURE S ZIVAZIZZIVAMIZI ILL For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नागील ॥ १ ॥ www.kobatirth.org ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ अथ श्री नागीलचरित्रं प्रारभ्यते ॥ ( कर्त्ता - श्रीवर्धमान सूरि) भाषांतरकर्ता तथा छपावी प्रसिद्ध करनार - पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाला) अस्तेय दीपस्य प्रकाशोल्लासवत्पुनः । मुक्तिवर्त्मनि पान्थानां सतां ब्रह्मवतं मतम् ॥ १ ॥ अर्थः- बळी मोक्षमार्गमां जता सज्जनोने अस्तेयत्रतरूपी दीपकना प्रकाशना उल्लाससरखं ब्रह्मव्रत कहेलुं छे || १ || संतोषः स्वेषु दारेषु त्यागो वा परयोषिताम् । प्रथयन्ति गृहस्थानां चतुर्थ तदणुव्रतम् ॥ २ ॥ अर्थः- पोतानी स्त्रीओ थीज संतोष, अने परनी स्त्रीओनो जे त्याग, तेने गृहस्थोनुं चोथं अणुव्रत कहे छे ॥ २ ॥ येऽन्यदारपरीहारवततीव्रतयोद्धुराः । भयान्मोहादयो दोषा न तेषु ददते पदम् ॥ ३ ॥ अर्थः- जे पुरुषो परस्त्रीना त्यागरूप व्रतना वळथी शूरवीर थयेला छे, तेओ प्रत्ये (जाणे) भयथी मोहादिक दोषो पगलुं पण भरता नथी ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 2062 चरित्रं ॥ १ ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandir i . नागील चरित्र ॥२॥ +COACTO अहो ब्रह्मवतं मुक्तेः सन्मुखीकारकारणम् । गीयते नागिलस्येव विपदामुपदाहकृत् ॥४॥ अर्थः-अहो! नागिलनी पेठे आपदाओने बाळी नाखनारुं ब्रह्मचर्यव्रत मुक्तिने सन्मुख लावबामां कारणभूत गणाय छे, ॥४॥ तथाहि भोजभूजानिभुजाहिपरिरक्षितम् । निधानमिव धर्मस्य पुरमस्ति महापुरम् ॥ ५॥ अर्थः-ते कहे छे-भोजराजना हाथरूपी सर्पथी रक्षित थयेलं, अने धर्मना निधानसरखं महापुरनामर्नु नगर छे. ॥५॥ जनेन्द्रसेवाहेवाकविवेकविकसन्मनाः । तस्मिन्विस्मयकृल्लक्ष्मीलक्ष्मणोऽस्ति महावणिक् ॥ ६॥ अर्थः-ते नगरमां जिनेंद्रप्रभुनी सेवाना उत्साहथी उत्पन्न थयेला विवेकथी प्रफुलित हृदयवाळो, तथा आश्चर्यकारक लक्ष्मी| वाळो लक्ष्मणनामे एक म्होटो वणिक वसे छे. ॥ ६ ॥ __ अभूदभूषितशुभाप्यह क्तिविभूषिता । विवेकिनी विनीता च तस्य नन्देति नन्दिनी ॥ ७ ॥ । अर्थ:-ते वणिकने भूषणोविना शोभिती छतां पण श्रीतीर्थकरमभुनी भक्तिथी अलंकृत थयेली, विवेकी तथा विनयवंत नंदानामनी पुत्री हती. ॥७॥ सतीशतशिरोमाल्यमियं बाल्पविलडिन्नी । वरावलोकिनं तातं निरातङ्कतयावदत् ॥ ८॥ अर्थः-सेंकडोगमे सतीओनां मस्तकपर पुष्पमालासरखी, तथा बाल्यवस्थाने उलंघी गयेली ते नंदा [तेना] वरमाटे शोध 31 करता एवा (पोताना) पिताने कहेवा लागी ।। ८॥ निरञ्जनं दशोन्मुक्तं निःस्नेहव्यमन्वहम् । धत्ते विकम्पं दीपं यः परिणेता ममास्तु सः ॥९॥ RS For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir + नागील ॥ ३ ॥ अर्थः-जे पुरुष काजलविनाना, वाटरहित, तथा तेलना खर्चविनाना निष्कंप दीपकने हमेशां धारण करे, ते पुरुष मने परणी शकशे.४ चरित्रं इति तस्या वचः श्रेष्ठी बरेष्वनुदिनं दिशन् । अस्याः काभिग्रहः पूर्य इत्यातचिन्तयाजनि ॥ १०॥ | अर्थ:-ते लक्ष्मण शेठ तेणीनुं एरीतर्नु वचन वरोने हमेशां जणावतोथको आनो (आ) अभिग्रह क्यांथी पूरो थाय? एवी || ॥३॥ | चिंताथी दुःख पामवा लाग्यो. ॥ १० ॥ नागिलः कान्तकायस्तु कितवो लङ्घनघनैः तुष्टं यक्ष विरूपाक्ष बनेऽभ्यथर्यताग्रहात् ॥ ११ ॥ ___अर्थः- एवामां मनोहर शरीरवाळो ( कोइक ) नागिलनामनो धूर्त घणी लांघणोथी तुष्टमान थयेला वनमा रहेला विरूपाक्ष नामना यक्षने आग्रहपूर्वक प्रार्थना करवा लाग्यो के, ॥ ११ ॥ नन्दयोक्तोयथा दीपस्त्वं तथा भव मदगृहे । इति यक्षेण दत्तेऽर्थे स ययौ अष्टिनोऽन्तिके ॥ १२ ॥ अर्थ:-जेवो नंदाए दीपक कहेलो छे, तेवा दीपकतरीके तुं मारा घरमा रहे? पछी तेवीरीतनो वर यक्षे आपवाथी ते नागिल | लक्ष्मणशेठपासे गयो. ॥ १२ ॥ कितवाय दरिद्राय नन्दिनी स्वां ददामि मे । अभिग्रहमहं तस्या हन्त पूरयितुं क्षमः ॥ १३ ॥ ___अर्थः-( अने कहेवा लाग्यो के ) दरिद्र तथा धूर्त एवा मने जो तारी दीकरी आपे, तो खरेखर हुँ तेणीनो अभिषह संपूर्ण | करवाने समर्थ छु. ॥ १३ ॥ यादृक्ताहरभवेस्त्वं भोः पूरिताभिग्रहो यदि । तत्ते दाम्यहं पुत्रों गङ्गामिव पयोधये ॥ १४ ॥ 296 C CECRECORE ECRECREX For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नागील A चरित्र ॥४॥ -AEXESS MARC5. अर्थः-अरे! गमे तेवो तुं हो, परंतु जो तेणीनो अभिग्रह पूरो करे, तो महासागरमते गंगानीपेठे तने हुं मारी पुत्री आपुं.१४॥ तहि मदगृहमागत्य दीपस्ताहग्विलोक्यताम् । इत्युक्ते तेन स श्रेठी सकुटुम्बस्तथाकरोत ॥ १५॥ अर्थ:-त्यारे मारे घेर आवीने तेदो दीपक तमो जुओ? एम तेणे कहेवाथी कुटुंबसहित ते शेठे तेम कर्यु ॥ १५ ॥ दारियोपतेऽप्यस्य गृहे तादृशमेव सः । दीपं पश्यन्सुतोवाहसोत्साहः प्राप संमदम् ॥ १६ ॥ अर्थः-दरिद्रताथी वेरविखेर हालतवाळा पण तेना घरमां तेवोज दीपक जोतो एवो ते शेठ पुत्रीने परणवाना उत्साहथी | आनंद पामवा लाग्यो. ॥ १६ ॥ तादृग्दीपसमालोककौतुकोत्तानलोचनः जनोऽजनिष्ट नन्दा तु निरानन्दाभवत्तदा ॥ १७ ॥ अर्थ:-ते वखते लोको तो तेवो दीपक जोवाथी आश्चर्य चकित लोचनोवाळा थया, परंतु नंदा आनंदरहित थइ. ॥१७॥ विभवैर्भवनं तस्य विभूष्याथ वणिग्वरः । उत्सवोत्संगितपुरः पुत्रीं तेन व्यवाहयत् ॥ १८॥ अर्थ:--पछी ते उत्तम शेठे तो समृद्धिथी ते नागिलनु घर शणगारीने, तथा शहेरमां पण म्होटो उत्सव करावीने ते नागिलनी साथे पोतानी पुत्रीने परणावी. ॥ १८ ॥ परिणीयापि तां तन्वीं विवेकामृतदीर्घिकाम् । तान्न्यवर्तत न स व्यसनं कस्य सुत्वजम् ।। १९ ॥ | अर्थः--विवेकरूपी अमृतनी बावडी सरखी एवी ते नंदाने परणीने पण ते जुगार रमवाथी पाछो हट्यो नही, केमके व्यसन तजवू कोने सहेलुं छे? ॥ १९॥ CCASEARCROCE% For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir चरित्रं अहारयदयं वित्तं तकारो यथा यथा । अपूरयत स श्रेष्ठी पुत्रीप्रेम्णा तथा तथा ॥ २० ॥ नागील अर्थः--ते जुगारी नागिल जेम जेम द्रव्य हारतो गयो, तेम तेम ते शेठ पुत्रीना स्नेहने लीधे तेने द्रव्य पूरुं पाडवा लाग्यो. २० | ॥५॥ हारयित्वापि वित्तानि रत्वापि यहिरङ्गनाः । गृहं प्राप्तः स सानन्दं नन्दया पर्यचर्यत ॥ २१ ॥ अर्थः-धन हारीने, तथा बडार परस्त्रीओने भोगवीने पण घेर आवेला ते नागिलनी नंदा तो हर्षपूर्वक सेवा करती हती.॥२१॥ अचिन्तयदिदं चैष नाहमस्या ध्रुवं प्रियः । यदित्यमपराधेऽपि मयि रोष तनोति न ॥२२॥ अर्थः--वळी ते एम विचारवा लाग्यो के हुं आ नंदाने खरेखर पिय नथी, केमके आवीरीते अपराध कर्या छतां पण ते Aमारा पर रोप करती नथी. ॥ २२ ॥ सोन्यदा हारितत्रस्तः कितवेभ्यो वनेऽविशत् । दृष्ट्वात्र ज्ञानिनं साधुं पप्रच्छ रचितांजलिः ॥२३॥ ___ अर्थः-एक दिवसे हारी जवाथी जुगारीओना भयथी नाशीने ते जंगलमां चाल्यो गयो, त्यां कोइक ज्ञानी मुनिने जोइने तेणे हाथ जोडी पुछ्यु के, ।। २३ ।। किं सा शुभस्वभावापि धत्ते चित्ते न मां पिया । इति पृष्टेऽस्य योगत्वं ज्ञात्वा ज्ञानो मुनिजगौ ॥२४॥ ___अर्थ:-उत्तम स्वभाववाळी एवी पण मारी प्रिया ते नंदा मने हृदयमा केम धारण करती नथी? एम पूछनाथी तेनुं योग्यपणु जाणीने ते ज्ञानी मुनिराज बोल्या के, ॥ २४ ॥ ___सा विवेकवती कान्तमपीच्छन्ती विवेकिनम् । विवेकं तत्गुणं व्याख्यातादृग्दीपापदेशतः ॥२६॥ ॐREMA%AMORE For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नागील ॥ ६ ॥ www.kobatirth.org अर्थ :- विवेकवाली एवी ते नंदाए पोताना स्वामीने पण विवेकवन्त इच्छतां थकां तेवी रीतना दीपकनां मिषधी विवेकरूपी तेना गुणनी व्याख्या करी हती. ॥ २५ ॥ निगद्यतेऽञ्जनं माया नवतत्त्वस्थितिर्दशा । स्नेहव्ययः प्रेमभङ्गः कम्पः सम्यवखण्डनम् ||२६|| अर्थ: - (तेणीए कपटरूपी अंजन, नव तत्वोना अज्ञानरूपी वाट, प्रेमभंगरूपी तैलनो क्षय, तथा समकीतना खंडरूपी कंप कहेलो हतों. ॥ २६ ॥ तैर्विमुक्तं विवेकं यो धत्तेऽस्तु स पतिर्मम । इति दीपच्छलादाख्यत्पृष्टा नार्थे तु केनचित् ||२७|| अर्थः- ते ते दुषणोथी रहित थयेला विवेकने जे धारण करतो होय, ते मारो स्वामी थाओ ? एम दीपकना मिषथी तेणीए कां हतुं, परंतु तेनो भावार्थ कोइए (तेणीने पूछयो नहीं, ॥ २७ ॥ निरंजनं दशोन्मुक्तमस्नेहव्ययमन्वहम् । विकम्पं दीपमेव त्वं कृतवानद्भुतं गृहे ॥ २८ ॥ अर्थ' - अंजनविनानो, वाटरहित, तैलना खर्च विनानो, तथा हमेशां निष्कंप, एत्रो आश्चर्यकारक दीवो तेज घरमा कर्यो. २८ ताक्षं वीक्ष्य सा दीपं सती भग्नोत्तरा सती । हिया मौनवती व्यूहे भवताप्यविवेकिना ॥ २९ ॥ अर्थ :- एवीरीतना दीपकने जोइने, प्रत्युत्तर आपवाने अशक्त थयेली ते नंदा सतीए लज्जाथी मौनरहीने, निर्विवेकी वो पण जे तुं, तेनी साथै लग्न कर्या. ॥ २९ ॥ सतीति परिणेतुस्ते हृष्टि स्थाने न हृष्यति । अविवेकीति सा चित्ते न धत्ते त्वां विवेकिनी ॥ ३० ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 6 चरित्र ॥ ६ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir मागील चरित्रं REACTRI अर्थः-वळी ते सती होवाथी तने परणनारने खुशी करवामाटेते खुशमिजाजी रहे छे, अने तुं विवेकरहित होवाथी ते विवेकी | नन्दा तेने (पोताना) हृदयमा धारण करती नधी ॥ ३०॥ . साध्वादिष्टं विवेकं स स्वीचक्रेऽथ विशेषतः । व्रतं स्वदारसंतोषं जगृहे स्नेहपुष्टिदम् ॥ ३१ ॥ अर्थ-पछी ते मुनिराजे उपदेशेला विवेकनो तेणे विशेष प्रकारे स्वीकार कर्यो, तथा स्नेहने पुष्ट करनारा स्वदारसन्तोपनामना व्रतने ग्रहण कयु ॥ ३१ ॥ मुदा गत्वा गृहे लात्वा पूजयित्वा जिनाधिपम् । दत्वा दानं सुपात्रेभ्यो वुभुजेऽसौ यथाविधि ॥३२॥ अर्थः-पछी हर्षथी घेर जइ, स्नान करी, तथा जिनेश्वरमभुने पूजीने, अने सुपात्रोपत्ये दान दइने तेणे विधिपूर्वक भोजन कयु. विवेकिनमिवालोक्य मुदा कान्तमथावदत् । नन्दा मन्दाकिनीनीरशुचिना वचनेन तम् ॥ ३३॥ अर्थः-पछी विवेकीसरखा(पोताना)ते भर्तारने हर्षथी जोइने नंदा गंगाजलसरखां निर्मल वचनथी तेने कहेवा लागी के,॥३३।। जिनेन्दुसेवया शीलसलिलव्यक्तशिक्तया । अद्य मे फलितं नाथ यदृष्टोऽसि विवेकवान् ॥ ३४ ॥ अर्थ:-हे स्वामी ! शीलरूपी जलथी प्रगटरीते सींचायेली मारी जिनपूजा आजे फलीभूत थयेली छे, केमके आपने में विवे| कवाळा जोया छे, ॥ ३४ ॥ नागिलोऽपि जगौ तन्वि यन्मुक्त्वा व्यसनं मया । विवेकः स्वीकृतस्तत्र गुर्वादेशोऽस्ति कारणम् ॥३५॥ अर्थः-त्यारे नागिले पण कई के, हे प्रिये ! में जे व्यसननो त्याग करीने विवेकने स्वीकार्यो, तेमां गुरुमहाराजनो उपदे ॐARASRAE% % % For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir नागील चरित्र **R* ॥८॥ %* CRACTIMESEX 6 शज कारणभूत छे. ॥ ३५ ॥ ततः प्रभृति सद्धर्मशीलप्रेमगुणैर्दृढम् । त्रिधा स्यूते तयोश्चित्ते भेजतु शमेकताम् ॥ ३६ ।। | अर्थ:-त्यारथी मांडीने उत्तम धर्म, शील, अने प्रेमरूपी गुणोथी (दोराथी) त्रेवडुं मजबूतपणे तेओर्नु हृदय सीवायाधी तेओ चन्ने अत्यंत अक्यपणुं धारण करवा लाग्या. ।। ३६ ॥ अनन्यरूपयोधर्मध्यानाधीनधियोस्तयोः । आधिमुक्तहदो कामं कायकान्तिरवर्धत ॥ ३७॥ अर्थः-अनुपम रूपवाळा, धर्मध्यानने स्वाधीन बुद्धिवाळा, तथा चिंतारहित हृदयवाळा, एवा तेओ बन्नेना शरीरनी कांति | स्वभाविकपणेज वृद्धि पामवा लागी. ॥ ३७ ।। कदाचिदुत्सवाकृष्टा नन्दा पितृगृहे ययौ । सुप्तः कुटिमकोट्यग्रे नागिलश्चन्द्रदत्तदृक् ॥ ३८ ॥ ___अर्थः-पछी एक दिवसे कंडक महोत्सवप्रसंगे नंदा ( पोताना ) पिताने घेर गइ हती, अने नागिल चंद्रतरफ दृष्टि राखीने | अगासीना अग्रभागमा मृतो हतो. ॥ ३८ ॥ ___ व्योनि विद्याधरी कापि यान्ती प्रियवियोगिनी । तदपमोहतः कामरोहतः प्राप्य तं जगौ ॥ ३९ ॥ अर्थः-एवामां भर्तारना वियोगवाळी कोइक विद्याधरी आकाशमा जती थकी, ते नागिलना रूपथी मोहित थइने, कामविकार उत्पन्न थवाथी तेनी पासे आवी कहेवा लागी के, ॥ ३९ ॥ कामानलशिखातप्ता प्राप्तास्मि शरणं नव । स्वामिल्लावण्यपाधोधे मां मजय भुजोमिषु ॥४०॥ %*%**% 5 C E For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir * नागील चरित्र R- -॥९॥ SALCRI CREACEBCARROTECE अर्थ:-हे स्वामी ! कामरूपी अग्निनी ज्वालाथी तप्त थयेली एवी हूं आपने शरणे आवेली छु, माटे हे लावण्यना महासागर! मने (आपना) भुजाओरूपी मोजांओमां स्नान करावो ? ॥ ४० ॥ प्रियास्मि हंसराजस्य विद्याधरशिरोमणेः । ततश्चित्तं त्वयाकर्षि गीतेनेव कवित्वतः॥४१॥ | अर्थः-विद्याधरोना सरदार एवा हंसराजानी हुं स्त्री छु, अने तेथी कविताबद्ध गायनथी जेम, तेम आपे मागं हृयतुं आकपण करेलुं छे. ॥४ ॥ चण्डस्प खेचरपतेः सुता लीलावतीत्यहम् । त्वयाता भविष्यामि सत्यं लीलावती पुनः॥ ४२ ॥ अर्थः-चंडनामना विद्याधरोना स्वामीनी हुं लीलावती नामनी पुत्री छु, अने आपना स्वीकारथी तो हुँ खरेखरी विलासवती (कामविलास भोगवनारी) थवानी छु.॥ ४२ ॥ नाङ्गीकरोषि चेत्तन्मां मृत्युरङ्गीकरिष्यति । तद्भविष्यसि धर्मज्ञ किं न स्त्रीघातपातकी ॥ ४३ ॥ अर्थः-(हवे) जो मने आप अंगीकार नही करो, तो मरण मारो स्वीकार करशे, माटे हे ! नीतीज्ञ ! (तेथी) | तमो खीहत्याना पापवाळा नही थाओ?॥४३॥ रहस्यं वेद्मि विद्यानां कामितुश्च पितुश्च तत् । तौ जित्वा तेन तत्स्वाम्यं तव दास्यामि मा भज ॥४४॥ म अर्थः-वळी मारा स्वामिनी तथा पितानी विद्याओना ते रहस्यने पण हुँ जाणुं छु, अने तेथी तेओने जीतीने आपने तेओर्नु राज्य आपोश, माटे मने स्वीकारो ? ॥४४॥ M ERECCARE% For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नागील | चरित्र ॥१०॥ ॥१०॥ CHIDAEECH: मान्यथा मदचः कार्षीरित्युक्त्वासौ कुरङ्गदक । कम्पमाना क्रमों तस्य मूर्ना स्पष्टुमधावत ॥४५।। अर्थ:-हवे मारा वचननो आप अनादर करशो नहीं, एम कहीने ते हरिणाक्षी कंपनीथकी ते नागिलना चरणोने (पोताना) मस्तकथी स्पर्श करवाने दोडी. ॥ ४५ ॥ मा भूत्परस्त्रीस्पर्शोऽपि ममेत्याशु स नागिलः । ततश्चकर्ष चरणौ दह्यमानाविवाग्निना ॥ ४६॥ अर्थः-मने परस्त्रीनो स्पर्श पण थवो जोइये नही, एम विचारीने तुरत ते नागिले, जाणे अग्निथी बळता होय नहीं ! एम विचारीने (पोताना) पग त्यांथी खेंची लीधा. ॥ ४६॥ क्रुद्धाथ व्योम्नि नप्तायोगोलं लोलं विकृत्य सा । भज मामन्यथानेन भस्मयामीत्युवाच तम् ।। ४७॥ ___अर्थः-त्यारे क्रोध पामेली ते विद्याधरी आकाशमा तपावेलो लोखंडनो गोळो विकुर्वीने, मारी साथे विलास कर? नहितर | आ गोळाथी तने भस्मीभूत करी नाखू छ, एम तेणीए ते नागिलने का. ॥४७॥ अलुभ्यतो लोभवाक्याङ्गीतिस्थानादबिभ्यतः। सूत्कारी स ज्वलन्गोलस्तस्याथो मौलयेऽपतत् ॥४८॥ अर्थ:-पछी (परीतनां तेणीना) लोभना वाक्योथी नही लोभाता, तेमज भयनी धमकीथी पण नही डरता एवा ते नागिलना मस्तकपर ते मूत्कार करतो गोळो पडयो. ॥ ४८ ॥ दग्धो दग्धोऽयमित्यन्तायन्त्यां खेचरस्त्रियाम् । स सस्मार नमस्कारं विलीनश्च विपञ्चयः ॥४९॥ अर्थः--(अरे!) आ बळ्यो, बळ्यो, एम ते विद्याधरी मनमां विचारती इती, एवामां ते नागिले नवकारमंत्रनु स्मरण कयु. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir FAC नागील ॥११॥ अने तेथी ते आपदाओनो समूह नष्ट थयो. ॥ ४९॥ ___अथ प्रापददृश्यत्वं पाटोपेन खेचरी । नागिलोऽभूनमस्कारप्रभावोत्पुलकः पुनः ॥ ५० ॥ ___अर्थः-त्यारे शरमनी मारी ते विद्याधरी अदृश्य थइ, अने ते नागील तो नवकारमंत्रना महात्म्यथी रोमांचित थयो. ॥५४॥ न रतिः पितृगेहेऽपि त्वां विनेत्यादिवादिनी । चेटिकोद्घाटितद्वारा तदा नन्दा तमाययो ॥५१॥ अर्थः-तमारा विना मने ( मारा) पिताने घेर चेन पडतुं नथी, इत्यादिक वचनो बोलती, तथा दासीए उघाडेलुं के द्वार जेणीने एवी ते नंदा ते वखते तेनी पासे आवी. ॥५१॥ आकारेण गिरा गत्या तां नन्दा स विदन्नपि । खेचरीविप्लवाशङ्की संकीर्णस्थोऽवदत्ततः ॥२॥ अर्थ:-पछी आकारथी, वाणीथी, तथा गतिथी तेणीने नंदा जाणता छतां पण ते नागिल विद्याधरीना कावतरांनी शंका लावीने है संकडामणथी संकोचाइ रहीने बोलवा लाग्यो के, ॥ ५२ ॥ __अरविन्दाक्षि नन्दासि यदि तूर्ण तदेहि माम् । अन्यासि यदि तद्धर्मः स्वाम्यस्तु स्खलनं तव ॥ ५३ ॥ | अर्थ:-हे कमलाक्षी ! जो तुं नंदा हो, तो तुरत मारी पासे आव? अने जो कोइ बीजी हो तो धर्म मारु रक्षण करनार याओ? | अने तारुं स्तंभन थाओ? ॥ ५३ ॥ ततः स्थितस्वरूपैव खेचरी सा स्खलद्गतिः। तद्वृत्त विस्मयस्तब्धतिरेवाग्रतः स्थिता ॥ ५४॥ अर्थ:-पछी अटकाइ गयेल गतिवाळी, तथा तेना व्रतथी आश्चर्ययुक्त स्तब्ध बयेला आकारवाळीज ते विद्याधरी पोताना ADE For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandir नागील चरित्र -A ॥१२॥ NAGACASSAGADHARE खरा स्वरूपमांज रहीने (त्यां) स्तंभाइ गइ. ॥ ५४॥ स तत्तत्कपटं वीक्ष्य कपटान्तरशाङ्कितः । कृतलोचः स्वयं भेजे शीलभगभयाबतम् ॥ ५५ ॥ | अर्थ:--पछी ते नागीले तेणीनुं ते कपट जोइने बीजां कोइ कपटनीशंकाथी लोच करीने शीलभंगना डरथी पोतानी मेळेज (त्यां) चारित्र अंगीकार कर्युः ॥ ५५ ॥ _ दत्तं शासनदेव्याथ यतिवेषं स धारयन् । तत्प्रदीपपुरोभागमागत्येदमभाषत ।। ५६ ॥ ला अर्थ:-पछी शासनदेवताए आपेला मुनिवेषने धारण करनारो ते नागिल ते दीपकनीपासे आवीने आ प्रमाणे कईवा लाग्यो के, आराध्य नन्दालोमेन नीतोऽस्यद्भुतदीपताम् । अयि यक्ष विरूपाक्ष कृतकृत्योऽस्मि गम्यताम् ॥ ५७॥ | अर्थ:--हे विरूपाक्ष यक्षा नंदाने मेळवबानी लालचथी (ता5) आराधन करीने तने आश्चर्यकारक दीपकपणाने में प्राप्त करेलो छे, हवे हुँ कुतार्थ थयो छु, माटे तुं चाल्यो जा? ॥७॥ | दीपतोऽप्यथ भाषाभूत्सेव्यो यावद्भवं भवान् । रवेरिव न मे भाभिः स्पर्शदोषः प्रभो भवेत् ॥ ५८॥ | अर्थ--त्यारे ते दीपकमाथी पण एवी वाणी यइ के, हे स्वामी ! छेक जींदगीपर्यंत मारे तारी सेवा करवानी छे, तथा सूर्यनी कांतिनीपेठे मारी कांतिथी पण तमोने स्पर्शदोष लागवानो नथी. ॥ ५८॥ अथ ताहम्महाशीलप्रीतया स्फीतविद्यया । विद्यार्या प्रतिपदं क्रियमाणप्रभावनः ॥ ५९॥ • तथाविधकथायोधवर्धमानप्रमोदया। व्रतध्यानगलत्पापकन्दया नन्दयान्वितः ॥ ६॥ -REGROCESS AROCEASile For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir नागील चरित्रं ॥१३॥ ॥१३॥ भानूदयेऽप्यविभ्रष्टभासा दीपेन भासुरः । सासर्यमेष लोकेनालोक्यमानो गुरु ययौ ॥ ११॥ . ४ अर्थः-हवे तेवी रीतना ते नागिलना महान शीलथी खुशी थयेली, अने विस्तीर्ण विद्यावाळी ते विद्याधरीए पगले पगले करेलो छे महिमा जेनो, ॥ ५९ ॥ तथा तेवी रीतनुं वृत्तांत्र जाणवाथी वृद्धि पापता हर्षवाळी, अने चारित्र लेबानी इच्छायी दूर यतां छे पापनां मूळो जेनां एवी ते नंदाथी युक्त थयेलो, ॥ ६० ॥ अने सूर्य उग्या छतां पण अस्खलित कांतिवाळा दीपकथी देदीप्यमान ६ थयेलो, तथा लोकोवडे आश्चर्य सहित जोबातो एवो ते नागिल गुरुमहाराज पासे गयो. ॥ ६१ ॥ व्रतं नन्दायुतः प्राप्य विधिवद्गुरुसंगतः। विजहार महारण्यारामग्रामपुरादिषु ॥२॥ __अर्थ:--(त्यां) गुरुमहाराजने मळीने ते नागिल नंदा सहित विधिपूर्वक चारित्र लेइने महोटां जंगलो, बगीचा, गांबडा तथा ॐ नगरआदिकोमा विहार करवा लाग्यो. ॥ ६२॥ निशास्वपि प्रदीपस्य तस्योद्योते ततः पठन् । ज्ञातज्ञातन्यपूरोऽयमल्पैरेव दिनरभूत ॥ ६३ ॥ ___अर्थ:-पछी रात्रिए पण ते दीपकना प्रकाशमां अभ्यास करता एवा ते नागिलमुनि थोडाज दिवसोमां जाणवालायक ज्ञानना | समूहना जाणकार थया. ॥ ६३॥ बद्धायुः संयमात्पूर्व मृत्वासौ स्नेहवांस्तया । हरिवर्षे युगलतां ययौ कल्पतरोस्तले ॥ ६४॥ ___ अर्थः-चारित्र लीधा पहेलांज पूर्वे वांधेलां आयुवाळा, अने ते नंदासाना स्नेहवाला ते नागिलमुनि मृत्यु पामीने हरिवर्ष क्षेत्रमा कल्पवृक्षनी नीचे युगलिकपणुं पाम्या.॥ ६४॥ SAHASRA-Hऊ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir 1+% नागील चरित्रं ॥१४॥ ॥१४॥ CEB तदद्वयं भाग्यशेषेण भुक्त्वा भोगोत्सवं दिवः । क्षेत्रे महाविदेहास्येमोभूयाप निर्वृतिम् ॥ १५ ॥ ___ अर्थ:-पछी तेओ बन्ने बाकीना भाग्यवडे दैविक भोगोनो उत्सव भोगवीने महाविदेहनामना क्षेत्रमा मनुष्य थइ मोक्ष पाम्या. . अतो नागिलनन्दावदानन्दाद्वैततत्परः। धार्य तुर्यव्रतं दधर्मवृक्ष कवर्षणम् ॥ ६६ ॥ ___ अर्थ:-माटे नागिल अने नंदानी पेठे आनंदमांज फक्त तत्पर थयेला चतुर माणसोए धर्मरूपी वृक्ष माटे वरसाद सरखा चोथा व्रतने धारण कर. ॥ ६६॥ इति चतुर्थव्रतविचारे नागिलकथा ॥ ए रीते चोथा व्रतना विचारना संबंधमां नागिलनी कथा कही. RAHASTEMBER आ चरित्र श्रीवर्धमानमूरिए रचेला वासुपूज्यचरित्रमाथी ओधरीने तेनुं गुजराती भाषांतर करी छपाची प्रसिद्ध करेल छे. OOARGEOG Gom For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir PISICIANCISCICIOSICIOCI CICICISI o g gege e greggegreggegoogevergreed geoperererererere SUSISICA // इति श्रीनागीलचरित्रं समाप्तम् // ICCIS BISCUISISUSISISI SUCICICCIOUSIC For Private and Personal Use Only