Book Title: Nagil Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir मागील चरित्रं REACTRI अर्थः-वळी ते सती होवाथी तने परणनारने खुशी करवामाटेते खुशमिजाजी रहे छे, अने तुं विवेकरहित होवाथी ते विवेकी | नन्दा तेने (पोताना) हृदयमा धारण करती नधी ॥ ३०॥ . साध्वादिष्टं विवेकं स स्वीचक्रेऽथ विशेषतः । व्रतं स्वदारसंतोषं जगृहे स्नेहपुष्टिदम् ॥ ३१ ॥ अर्थ-पछी ते मुनिराजे उपदेशेला विवेकनो तेणे विशेष प्रकारे स्वीकार कर्यो, तथा स्नेहने पुष्ट करनारा स्वदारसन्तोपनामना व्रतने ग्रहण कयु ॥ ३१ ॥ मुदा गत्वा गृहे लात्वा पूजयित्वा जिनाधिपम् । दत्वा दानं सुपात्रेभ्यो वुभुजेऽसौ यथाविधि ॥३२॥ अर्थः-पछी हर्षथी घेर जइ, स्नान करी, तथा जिनेश्वरमभुने पूजीने, अने सुपात्रोपत्ये दान दइने तेणे विधिपूर्वक भोजन कयु. विवेकिनमिवालोक्य मुदा कान्तमथावदत् । नन्दा मन्दाकिनीनीरशुचिना वचनेन तम् ॥ ३३॥ अर्थः-पछी विवेकीसरखा(पोताना)ते भर्तारने हर्षथी जोइने नंदा गंगाजलसरखां निर्मल वचनथी तेने कहेवा लागी के,॥३३।। जिनेन्दुसेवया शीलसलिलव्यक्तशिक्तया । अद्य मे फलितं नाथ यदृष्टोऽसि विवेकवान् ॥ ३४ ॥ अर्थ:-हे स्वामी ! शीलरूपी जलथी प्रगटरीते सींचायेली मारी जिनपूजा आजे फलीभूत थयेली छे, केमके आपने में विवे| कवाळा जोया छे, ॥ ३४ ॥ नागिलोऽपि जगौ तन्वि यन्मुक्त्वा व्यसनं मया । विवेकः स्वीकृतस्तत्र गुर्वादेशोऽस्ति कारणम् ॥३५॥ अर्थः-त्यारे नागिले पण कई के, हे प्रिये ! में जे व्यसननो त्याग करीने विवेकने स्वीकार्यो, तेमां गुरुमहाराजनो उपदे ॐARASRAE% % % For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18