Book Title: Nag Kumar Charita
Author(s): Pushpadant Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 20
________________ प्रस्तावना को उसके पतिको वापस दिलवा दिया। इस शवर, जिसे भिल्ल भी कहा गया है, ने नागकुमारकी भेंट अपने राजासे करायी जो गिरिशिखरका माण्डलिक था। उसने अपना नाम वनराज बतलाया तथा अपनी पुत्री लक्ष्मीमतिका नागकुमारसे विवाह भी कर दिया। जब नागकुमारको भेंट एक श्रुतिघर मुनिसे हुई ( 6, 10 ) तब उन्होंने मुनिराजसे प्रश्न किया कि वनराज किरात हैं या क्षत्रिय ( वणराउ चिलाउ कि ण णिवइ ) / इसके उत्तरमें मुनिने उन्हें बतलाया कि पुण्ड्रवर्धन नगरमें एक सोमवंशी राजा अपराजित रहता था। उसको दो रानियां थीं। एकका पुत्र हुआ अतिबल और दूसरीका भोमबल / भीमबलने अतिबलके राज्यको भी हडप लिया जिससे भागकर उसने 'पट्टन' नामक समृद्ध नगरको स्थापना की। उसका पत्र हआ महाबल और महावलका पुत्र हो यह वनराज है। उधर उसके शत्रु भ्राता भोमबलका पुत्र महाभीम हुआ और उसका पुत्र सोमप्रभ इस समय राज्य कर रहा है। यह सुनकर नागकुमारने अपने सुभट व्यालको पुण्ड्रवर्धनपुर भेजा और उसने सोमप्रभको पराजित कर उसका राज्य वनराजको दिलवा दिया। इस प्रसंगमें चापोत्कट ( चाउडा ) वंशको पाटन ( अनहिल पाटन ) शाखाके संस्थापक गुजरातके राजा वनराज सम्बन्धी इतिहासको प्रतिध्वनि हो तो आश्चर्य नहीं। गुजरातको ऐतिहासिक जनश्रतियों में भी यह संशय प्रकट हुआ पाया जाता है कि पाटनको स्थापना करनेवाले चाउडावंशी वनराज किसी वनजातिके ही थे या क्षत्रिय / उनके द्वारा पाटनकी स्थापना सन 746 ई. में की गयो सिद्ध होती है। उनके वंशका अवसान दसवीं शतीमें मूलराज चालुक्य द्वारा किया गया। चापवंशकी प्राचीन राजधानी भिल्लमाल और उसके राजा व्याघ्रमखका उल्लेख ई० 628 में पाया जाता है। ये नाम इंगित करते हैं कि इस वंशका उद्गम शबर या भिल्ल जातिसे हो तो आश्चर्य नहीं। जैन परम्परानुसार अनहिलपुरका राजा वनराज जैनधर्मका अनुयायी व संरक्षक भो कहा गया है ( भारतका इतिहास व संस्कृति भाग 3, पृ० 161, 411 ) / आगे चलकर नागकुमार ऊर्जयन्त ( गिरिनार ) तीर्थको वन्दना करने के लिए प्रस्थान करते हैं और उन्हें बीच में एक भयानक अटवो मिलती है। यहाँ भी उन्हें एक दुर्मुख नामक भील द्वारा अन्तर्वनके नरेश अन्तरराजसे भेंट करायी जाती है। वे इस राजाके साथ गिरिनगर जाते हैं जहाँके राजा अरिवर्मपर सिन्ध देशके राजा प्रचण्ड प्रद्योतने आक्रमण किया था। उनकी सहायतासे अरिवर्म शत्रुको पराजित करने में सफल होता है और अपनी पुत्री गुणवतीसे उनका विवाह कर देता है / यहां भी सम्भवतः सौराष्ट्र नरेश तथा उनके पड़ोसी सैन्धववंशी किसी राजाके बीच संघर्षको ऐतिहासिक घटनाको प्रतिध्वनि है। गिरिनारके राजाका नाम अरिवर्म हमारा ध्यान चालुक्यवंशी सौराष्ट्र नरेश बलवर्माको ओर आकृष्ट करता है जिनका एक दानपत्र सं० 893 का मिला है ( भा. इ. व सं. भाग 3 पृ. 151 ) चौलुक्यवंशी राजाओंमें वन्ति नामोंका बाहुल्य पाया जाता है, जैसे सिंहवर्मा, अवनिवर्मा व अवन्तिवर्मा (पूर्वोक्त इतिहास भा. 4 पृ. 103 ) / 5. अपभ्रंश भाषा और साहित्यका विकास मानवीय भाषा या भाषाओंकी उत्पत्ति कब, कहां और कैसे हुई, इसका पता लगाना कठिन है। किन्तु इतना स्पष्ट है कि भाषात्मक ध्वनियोंकी योग्यता प्रकृतिको एक देन है। पशु-पक्षियोंमें भी विविध ध्वनियों द्वारा अपनी मौलिक चेतनाओं जैसे भूख-प्यास, वेदना, वात्सल्यादिको प्रकट करनेको क्षमता पायो जाती है। मनुष्यके मुखके भीतर कण्ठ, तालु, जिह्वा, दन्त, ओष्ठादि अवयवोंको रचना इस प्रकारकी है कि उनके द्वारा थोड़ी-बहुत नहीं असंख्य प्रकारको ध्वनियाँ प्रकट को जा सकती हैं। इन्हीके प्रयोगों द्वारा मनुष्यने नाना वस्तुओंके लिए पृथक्-पृथक् ध्वनियोंका उपयोग किया होगा तथा अपनी भावनाओं व आवश्यकताओंको व्यक्त करने के लिए भी नाना प्रकारके उच्चारण किये होंगे / बस, यही मनुष्यको बोलोको उत्पत्तिके विषयमें कहा जा सकता है। भाषा-शास्त्र के विद्वानोंने यह जानने का भी प्रयत्न किया है कि क्या मनुष्य-जातिकी आदिम बोली एक सी रही है ? इसके लिए उन्होंने प्रचलित बोलियों और भाषाओंके स्वरूपको लेकर पूर्वकालकी दिशामें क्रमशः उनके एकत्वको ओर बढ़नेका प्रयत्न किया है। किन्तु यह प्रयास उन्हें संसारकी P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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