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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
यमान थी । उसका पुत्र कीर्तित्रर्श था जो नल, मौर्य और कदम्ब वंशों के लिये कालरात्रि था । यद्यपि वह परस्त्रीसे विरक्त था तथापि उस धीरका मन अपने शत्रुओंकी लक्ष्मीसे आकर्षित था । कदम्बों के वंशके विशाल कदम्बवृक्षको युद्धमें अपने पराक्रमसे विजयलक्ष्मीको प्राप्त करनेवाले महा तेजस्वी नृपके गजने खंड २ कर दिया था । जब इस राजाकी इच्छा इन्द्रसम विभूतिमें तृप्त हो गई थी तब उसके लघुभाई मंगलीश राजा हुए, जिन्होंने अपने घोड़े पूर्व पश्चिम समुद्रोंके तटोंपर ठहराए थे तथा अपनी सेनाकी रजसे चारों तरफ मंडप छा दिया था । जिसने मातंय जातिके अन्धकारको अपनी सैकड़ों चमकती हुई तलवारोंके दीपकोंसे दूर करके युद्धके मध्य में कटचूरियों (कलचूरियों) के वंशकी लक्ष्मीरूपी सुन्दर स्त्रीको अपनी स्त्री बना लिया था और फिर जब उसने शीघ्रही रेवतीद्वीप (द्वारका जहां रैवताचल या गिरनार है ) को लेना चाहां तब उसकी विशाल सेना जो सुन्दर पताकाओंसे शोभित व जिसने किलों को घेर लिया था समुद्र में ऐसी झलकती थी मानो वरुणकी सेना ही उसके वशमें हो गई है ।
जब उसके बड़े भाईके पुत्र पुलकेशीको - जो नहुष के समानप्रभावशाली था - लक्ष्मीदेवीने पसन्द किया तथा उसने अपने चारित्र व्यापार और बुद्धिमें यह समझा कि उसके चाचा उसकी तरफ ईर्षा भाव रखते हैं, तब पुलकेशी द्वारा संग्रहीत मंत्र, उत्साह तथा शक्तिके प्रयोगसे मंगलीशकी शक्ति बिलकुल नष्ट हो गई और उसके इस प्रयत्नमें कि वह राज्यको अपने ही पुत्रके लिये खखे, मंगलीशने अपना राज्य तथा जीवन खो दिया । जब इस तरह मंगलीशका