Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 231
________________ २१०] मुबईप्रान्तके प्रावोन जैन स्मारक। इसमें ६३ लाख द्रम्मा खर्च हुए थे, (द्रम्मा= |-) सेतुन्जयपर आदीश्वर मंदिर सन् ११५६में बनवाया गया था । बाहडने सेजयके पास बाहड़पुर नामका नगर बसाया और त्रिभुवनपाल नामका जैनमंदिर बनवाया ( यह पालीतानाके पूर्व ) है । कुमारपालने पद्मपुरकी पद्मावतीको विवाहा था व सांभर और मालवाके राजाओंको जीता था । सोमनाथके मंदिरका भी जीर्णोडार किया था। खंभात या स्तंभतीर्थमें सागलवमहिकके जैन मंदिरका भी जीर्णोद्धार कराया था जहां हेमचंद्राचार्यने दीक्षा धारण की थी। इसने पाटनमें करम्बिक विदार, भूपालविहार नामके मंदिर बनवाए तथा हेमचंद्रके जन्मस्थान धंधको झोलिकाविहार बनवाया । इसके • सिवाय कहते हैं कि इसने १४४४ मंनिर बनवाए। इसकी सभामें रामचंद्र और उदयचंद्र दोन पंडित रहते थे। रामचन्द्रने प्रबन्धशतक बनाया था । हेमचंद्र चान्विग नामके मोड़ बनिया व पाहिनी माताका पुत्र मन । ० ८९में पैदा हुआ था । सिद्धरानके राज्यमें इसने सिद्ध हेभ व्याकरण, हेमनामनाला व अनेकार्थ नाममाला रचे । तथा द्वाश्रयकोषका प्रारंभ किया । हेमचन्द्राचार्यकी सम्मतिले कुनारपालने श्री शनिमारकी मूर्ति राज्यमहाट में स्थापित की थी। यह मांस नथ नहीं ले रा था। इसने अपने राज्यने शिकार खेलने व पशुवधको मनाई कर दी थी। इसने शिकारियों ने शिकार छुट्टाकर दूसरे कामों में लगा दिया था इसकी सेना के सब पशुओं को उना हुआ पानी दिया जाता था । मो विना पुरा मरना या उनकी जायदाद पर भी इसने अपना हक

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