Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 230
________________ गुजरातको इतिहास। [२०६ उसी समय सिद्धराजका मरण सन् ११४३में हो गया तब मंत्रियोंने कुमारपालको राजा उसकी ५० वर्षकी उम्रमें बना दिया। __(७) कुमारपाल (पन् ११४३-११७४) इसकी पटरानी भृपालदेवी थी। कुमारपालने उदयनको मंत्री, उदयनके पुत्र बाहड़को महामात्य व जिस बनियेने चने दिये थे उस कतकको बडौधा ग्रामका राज्य दिया । जो मित्र कुमारपाल के साथ गया था उस बोसरीको लाट मंडलका राज्य दिया । सांभरके राजा आनाकसे युद्ध हुआ। कुमारपालने विनय पाई। उसने मालवाके राजा वल्लालको भी हरा दिया । कोंकणके राना मल्लिकार्जुन पर भी इपने विनय पाई। अंबड सेनापतिके इस कार्यसे प्रसन्न हो कुमारपालने उसे राजपितामहका पद दिया । मौगप्ट्रके राजा सुमीरसे भी युद्ध हुआ । उदयन मंत्रीने युटकर विजय पाई । उदयन पालीतानामें यात्राको आया । जब वह दर्शन कहा था एक चूहेने दीपकली बत्तीसे लकड़ीके मंदिर में अग्नि लगादी तब उसने इरादा करलिया कि इसको पापाणका बना देंगे। एक गुनगतके युद्ध में जैन मंत्री उदयन घायल हो गया और वह सन १९४२में मरा। तब वह अपने पुत्रोंको कह गया था कि सेव॒जयपर आदीश्वर मंदिर, भरुचमें सकुनिका विहार तथा गिरनारकी पश्चिम ओर मीढ़ियां बन राना। तदनुसार उसके दोनों पुत्र वाहड़ और अम्दड़ने मंदिरादि काला दि। जब सुकु निका विहारमें श्री मुनिनुप्रतनाथकी प्रति : हुई तब राजा कुमारपाल अपनी सभामंडली सहित पधारे थे । हेमनद्राचार्य भी मौजूद थे। गिरनारमें सीढ़ियां भी काटी गई थी ऐसा रन ११६६के लेखसे प्रगट है ।

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