Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 207
________________ १८६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लाइन २१ कहती है कि उसने आर्यावर्त्तके ९ राजाओंको नष्ट किया । वे राजा हैं-रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चंद्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नंदिन, बलदर्मन । इनमें गणपतिनाग ग्वालियरका राजा था। ला० २२-२३ कहती है कि नीचेके राजा उसको कर देते थे । समतत, गंगाखाड़ी, दायक (दक्षिण), कामरूप (आसाम), नैपाल, कात्रिक ( कटक ), मालवा, अर्जुनायन, यौद्धेय, मादक, आमीर, प्रार्जुन, सनकानिका, काफ, खरपरिक । नीचेके रानाओंने अपनी कन्याएं दी थीं-शाक, मुरुण्ड, सैंहलक द्वीपोंके कुशान राजा देव पुत्र, शाहव शाहानुशाहीने । यह लेख कहता है कि समुद्रगुप्तके राज्यमें मथुरा, अवध, गोरखपुर, अलाहाबाद, बनारस, विहार, तिरहुत, बंगाल, राजपूतानाका पूर्व भाग शामिल था। इसीका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वि० था । माता दलतादेवी थी। इसीका दूसरा नाम विक्रमादित्य था। इसने क्षत्रपोंसे गुजरात और काठियावाड़ लिया था । यह उज्जैनका राजा कहलाता था । उसके काठियावाडी सिक्कोंपर यह लेख है "परमभागवत महाराजाधिराज श्रीचंद्रगुप्त विक्रमादित्य इसीने गुप्त संवत चलाया । यह संवत सन् ४७० में जाता रहा, तब प्राचीन मालवाका संवत विक्रम (सन् ई० से ५७ वर्ष पूर्व) फिर चलने लगा। ____ इसका पोता स्कंधगुप्त था, जिसने सौराष्ट्रदेशका अधिपति पर्णदत्तको चुना था। इसका पुत्र चक्रपालित था। पर्णदत्तके सम

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