Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 205
________________ १८४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ' (२३) ,, दामश्री, भ्राता यश ३२० फिर ३० वर्षका पता नहीं (२४) , स्वामी रुद्रसेन, पुत्र रुद्रदमन ३४८-३७६ (२५) रुद्रसेन च०-पुत्र सत्यसेनका ३७८-३८८ (२६) सिंहसेन भतीजा रुद्र (२७) स्कंध इसके पाससे राज्य गुप्तोंके हाथमें गया । त्रैकूटक-इस वंशकी राज्यधानी उत्तर पूनामें जुन्नारमें थी। इसका संस्थापक महाक्षत्रपस ईश्वरदत्त था । सन् २४ ८में इसको दामनदश्रीने हराया, सन् २५० में इन त्रैकूटकोंको जबलपुरसे पश्चिम ४ मील त्रिपुरा और कालंजरमें (जबलपुरसे उत्तर १४० मील) सन् २५६में भगा दिया गया था । ___इन लोगोंने अपने सम्वतका नाम चेदी सम्बत रक्खा । त्रैकूटक लोग हैहयन वंशके नामसे सन् ४५५में समृद्धिको प्राप्त हुए और अपनी शाखा अपने प्राचीन नगर त्रिकूटपर स्थापित की । तथा बम्बई बन्दरके बहुतसे भाग दक्षिण तथा दक्षिण गुजरातपर राज्य किया । क्षत्रपोंके पतन और चालुक्योंके महत्त्वके समयको ( सन् ४ १ ० से ५०० ) इन्होंने शायद पूर्ण किया। गुप्तवंश-क्षत्रपोंके पीछे गुजरात पर गुप्तोंने ४१० से ४७० तक राज्य किया। इन गुप्तवंशोंके राजा नीचे प्रमाण हुए हैं गुप्त संवत सन् ई० (१) एक छोटा राजा युक्त प्रांतमें १-१२ ३१९-३२२ (२) धटोटकच , १२-२९ ३२१-३४९ (३) चंद्रगुप्त प्रथम बलशाली , २९-४९ ३४९-३६९

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