Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 223
________________ २०२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। अनहिलवाड़ा राज्य-७२० से १३०० तक | इसका वर्णन नीचे लिखे ग्रन्थोंके आधारपर इस गज़टियरमें लिखा है । हेमचंद्र कृत द्वाश्रयकाव्य, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिंतामणि और विचारश्रेणी, जिनप्रभसूरिकृत तीर्थकल्प, जिनमंडनोपाध्यायकृत कुमारपाल चरित्र, कृष्णर्षिकत कुमारपाल चरित्र, कृष्णभट्टकृत रत्नमाला, सोमेश्वरकृत कीर्तिकौमुदी, अरिसंहकृत सुकृतसंकीर्तन, राजेश्वरकृत चतुर्विशति प्रबन्ध, वस्तुपाल चरित्र । चावड़वंश-सन् ७२० से ९६१ तक । अनहिलवाड़ाकी स्थापनाके पहले चावड़ सर्दार पंचासेर ग्राममें राज्य करते थे, जो गुजरात और कच्छके मध्य वधियारमें एक ग्राम है । सन् ६९६में जयशेखर चावड़को कल्याणकटकके चालुक्य राजा भुवड़ने मार डाला । उसकी स्त्री रूपसुंदरी गर्भस्था थी। उसीका पुत्र वनराज था जिसने अनहिलवाड़ाको स्थापित किया । पंचासेरको अरब लोगोंने ७२०में नष्ट किया । प्रबन्ध चिंतामणिमें लिखा है कि गर्भस्था रूपसुंदरी बनमें रहती थी। वहां उसने एक पुत्रको जन्म दिया तब एक जैन यति ( नोट-श्वे० मालूम होते हैं । ) शीलगुणमूरिने उसकी मातासे पुत्र लेकर एक आर्यिका वीरमतीको पालनेके लिये दिया । साधुने उसका नाम वनराज रक्खा । इसके मामा मुरपालने इसे बड़ा किया । इसने अनहिलवाड़ा बसाया । सन् ७४६ से ७८० तक राज्य किया । इसकी आयु १०९ वर्षकी थी। इस वनराजने अनहिलवाड़ामें पंचासर पार्श्वनाथका जैन मंदिर बनवाया जिसमें मूर्ति पंचासरसे लाकर विराजमान की । इसी मूर्तिके सामने वनराजने नमन करते हुए अपनी मूर्ति

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