Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 12
________________ श्री जिनपंजर स्तोत्र ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अर्हद्भ्यो नमो नमः । ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सिद्धेभ्यो नमो नमः । ह्रीं श्रीं अहँ आचार्येभ्यो नमो नमः । ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह उपाध्यायेभ्यो नमो नमः । ह्रीं श्रीं अहँ श्रीगौतमस्वामिप्रमुखसर्वसाधुभ्यो नमो नमः ॥१॥ एष पंचनमस्कार: सर्वपापक्षयंकरः । मंगलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवति मङ्गलम् ॥२॥ ह्रीं श्रीं जये विजये, अहँ परमात्मने नमः । कमलप्रभसूरीन्द्रो, भाषते जिनपंजरम् ॥३॥ एकभुक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदम् । मनोऽभिलषितं सर्वं फलं स लभते ध्रुवम् ॥४॥ भूशय्या ब्रह्मचर्येण, क्रोधलोभविवर्जितः । देवताग्रे पवित्रात्मा, षण्मासैर्लभते फलम् अर्हन्तं स्थापयेन्मूर्ध्नि, सिद्धं चक्षुर्ललाटके । आचार्य श्रोत्रयोर्मध्ये, उपाध्यायं तु घ्राणके ॥६॥ साधुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनःशुद्धि विधाय च । सूर्यचन्द्रनिरोधेन, सुधी: सर्वार्थसिद्धये ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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