Book Title: Manav Dharma Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 9
________________ मानव धर्म मानव धर्म करना। मानव धर्म लिमिट (सीमा) में है, लिमिट से बाहर नहीं, किंतु उतना ही यदि वह करे तो बहुत हो गया। खुद की स्त्री हो तो भगवान ने कहा कि तने शादी की है उसे संसार ने स्वीकार किया है, तेरे ससुरालवालों ने स्वीकार किया है, तेरे परिवारजन स्वीकार करते हैं, सभी स्वीकार करते हैं। पत्नी को लेकर सिनेमा देखने जाएँ तो क्या कोई उँगली उठाएगा? और यदि परायी स्त्री को लेकर जाएँ तो? प्रश्नकर्ता : अमरीका में इस पर आपत्ति नहीं उठाते। दादाश्री : अमरीका में आपत्ति नहीं उठाते, किन्तु हिन्दुस्तान में आपत्ति उठाएँगे न? यह बात सही है, पर वहाँ के लोग यह बात नहीं समझते। किन्तु हम जिस देश में जन्मे हैं, वहाँ ऐसे व्यवहार के लिए आपत्ति उठाते हैं न! और ऐसा आपत्तिजनक कार्य ही गुनाह है। यहाँ पर तो अस्सी प्रतिशत मनुष्य जानवरगति में जानेवाले हैं। वर्तमान के अस्सी प्रतिशत मनुष्य! क्योंकि मनुष्य जन्म पाकर क्या करते हैं? तब कहे, मिलावट करते हैं, बिना हक़ का भोगते हैं, बिना हक़ का लूट लेते हैं, बिना हक़ का प्राप्त करने की इच्छा करते हैं, ऐसे विचार करते हैं अथवा परस्त्री पर दृष्टि बिगाड़ते हैं। मनुष्य को खुद की पत्नी भोगने का हक़ है, लेकिन बिना हक़ की, परस्त्री पर दृष्टि भी नहीं बिगाड़ सकते, उसका भी दंड मिलता है। सिर्फ दृष्टि बिगाडी उसका भी दंड, उसे जानवरगति प्राप्त होती है। क्योंकि वह पाशवता कहलाती है। (सचमुच) मानवता होनी चाहिए। मानव धर्म का अर्थ क्या? हक़ का भुगतना वह मानव धर्म। ऐसा आप स्वीकारते हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : और बिना हक़ के बारे में? प्रश्नकर्ता : नहीं स्वीकारना चाहिए। जानवरगति में जाएँगे, इसका कोई प्रमाण है? दादाश्री : हाँ, प्रमाण सहित है। बिना प्रमाण, ऐसे ही गप्प नहीं मार सकते। मनुष्यत्व कब तक रहेगा? 'बिना हक़ का किंचित् मात्र नहीं भोगें' तब तक मनुष्यत्व रहेगा। खुद के हक़ का भोगे, वह मनुष्य जन्म पाता है, बिना हक़ का भोगे वह जानवरगति में जाता है। अपने हक़ का दूसरों को दे दोगे तो देवगति होगी और मारकर बिना हक़ का लें तो नर्कगति मिलती है। मानवता का अर्थ मानवता यानी 'मेरा जो है उसे मैं भोग और तेरा जो है उसे त भोग।' मेरे हिस्से में जो आया वह मेरा और तेरे हिस्से में जो आया वह तेरा। पराये के प्रति दृष्टि नहीं करना, यह मानवता का अर्थ है। फिर पाशवता यानी 'मेरा वह भी मेरा और तेरा वह भी मेरा!' और दैवीगुण किसे कहेंगे? 'तेरा वह तेरा, किन्तु जो मेरा वह भी तेरा।' जो परोपकारी होते हैं वे अपना हो, वह भी औरों को दे देते हैं। ऐसे दैवी गुणवाले भी होते हैं या नहीं होते? आजकल क्या आपको मानवता दिखाई देती है कहीं? प्रश्नकर्ता : किसी जगह देखने में आती है और किसी जगह देखने में नहीं भी आती। दादाश्री : किसी मनुष्य में पाशवता देखने में आती है? जब वह सींग घुमाए तो क्या हम न समझें कि यह भैंसा जैसा है, इसलिए सींग मारने आता है ! उस समय हमें हट जाना चाहिए। ऐसी पशुतावाला मनुष्यPage Navigation
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