________________
मानव धर्म
१३
नहीं है। जगत् आँखों से जो दिखता है, उस निमित्त को ही काटने दौड़ता है।
मैंने इतने छोटे-छोटे बच्चों से कहा था कि जा, यह गिलास बाहर फेंक आ, तो उसने कंधे ऐसे किए, इन्कार कर दिया। कोई नुकसान नहीं करता। एक बच्चे से मैंने कहा, 'दादा के जूते हैं उन्हें बाहर फेंक आ ।' तो कंधे ऐसे करके कहने लगा, 'उसे नहीं फेंकते।' कितनी सही समझ है! अर्थात्, ऐसे तो कोई नहीं फेंकता। नौकर भी नहीं तोड़ता । यह तो मूर्ख लोग, नौकरों को परेशान कर डालते हैं। अरे, तू जब नौकर होगा तब तुझे पता चलेगा। अतः हम ऐसा नहीं करें तो हमारी कभी नौकर होने की बारी आए तो हमें सेठ अच्छा मिलेगा।
खुद को औरों की जगह पर रखना वही मानव धर्म । दूसरा धर्म तो फिर अध्यात्म, वह तो उससे आगे का रहा। किन्तु इतना मानव धर्म तो आना चाहिए।
जितना चारित्रबल, उतना प्रवर्तन
प्रश्नकर्ता : मगर यह बात समझते हुए भी कई बार हमें ऐसा रहता नहीं है, उसका क्या कारण है?
दादाश्री : क्योंकि यह ज्ञान जाना ही नहीं है। सच्चा ज्ञान जाना नहीं है। जो ज्ञान जाना है वह सिर्फ किताबों द्वारा जाना हुआ है या फिर किसी क्वॉलिफाईड (योग्यतावाले) गुरु से जाना नहीं है। क्वॉलिफाईड गुरु अर्थात् जो जो वे बताएँ वह हमें अंदर एग्ज़ैक्ट ( यथार्थ रूप से) हो जाए। फिर मैं यदि बीड़ियाँ पीता रहूँ और आपसे कहूँ कि, 'बीड़ी छोड़ दीजिए' तो उसका कोई परिणाम नहीं आता । वह तो चारित्रबल चाहिए। उसके लिए तो गुरु संपूर्ण चारित्रबलवाले हों, तभी हमसे पालन होगा, वर्ना यों ही पालन नहीं होगा।
१४
मानव धर्म
अपने बच्चे से कहें कि इस बोतल में ज़हर है। देख, दिखता है न सफेद ! तू इसे छूना मत। तो वह बालक क्या पूछता है? ज़हर यानी क्या? तब आप बताएँ कि ज़हर मतलब इससे मर जाते हैं। तब वह फिर पूछता है, 'मर जाना मतलब क्या?' तब आप बताते हैं, "कल वहाँ पर उनको बाँधकर ले जा रहे थे न तू कहता था, 'मत ले जाओ, मत ले जाओ।' मर जाते हैं तो उसी तरह ले जाते हैं फिर ।" इससे उसकी समझ में आ जाता है और फिर उसे नहीं छूता ज्ञान समझा हुआ होना चाहिए।
एक बार बता दिया, 'यह जहर है !' फिर वह ज्ञान आपको हाज़िर ही रहना चाहिए और जो ज्ञान हाज़िर नहीं रहता हो, वह ज्ञान ही नहीं, वह अज्ञान ही है। यहाँ से अहमदाबाद जाने का ज्ञान, आपको नक्शा आदि दे दिया और फिर उसके अनुसार यदि अहमदाबाद नहीं आए तो वह नक्शा ही गलत है, एग्ज़ैक्ट आना ही चाहिए।
चार गतियों में भटकने के कारण.... प्रश्नकर्ता: मनुष्य के कर्तव्य के संबंध में आप कुछ बताइए ।
दादाश्री : मनुष्य के कर्तव्य में, जिसे फिर मनुष्य ही होना हो तो उसकी लिमिट (सीमा) बताऊँ। ऊपर नहीं चढ़ना हो अथवा नीचे नहीं उतरना हो, ऊपर देवगति है और नीचे जानवरगति है और उससे भी नीचे नर्कगति है। ऐसी गतियाँ हैं। आप मनुष्य के बारे में पूछ रहे
हैं?
प्रश्नकर्ता: देह है तब तक तो मनुष्य जैसे ही कर्तव्य पालन करने होंगे न?
दादाश्री : मनुष्य के कर्तव्य पालन करते हैं, इसलिए तो मनुष्य हुए। उसमें हम उत्तीर्ण हुए हैं, तो अब किसमें उत्तीर्ण होना है? संसार दो तरह से है। एक, मनुष्य जन्म में आने के बाद क्रेडिट जमा करते