Book Title: Manav Dharma
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 19
________________ मानव धर्म मानव धर्म प्रश्नकर्ता : आप जो कहते हैं उस बात को सभी स्वीकार करते हैं और उसमें तो सिर्फ दान देकर उन्हें पंगु बनाते हैं। दादाश्री : उसीका यह पंगुपन है। इतने अधिक दयालु लोग, किन्तु ऐसी दया करने की ज़रूरत नहीं है। उसे एक ठेला दिलाओ और साग़-सब्जी दिलाओ, एक दिन बेच आए, दूसरे दिन बेच आए। उसका रोजगार शुरू हो गया। ऐसे बहुत सारे रास्ते हैं। मानव धर्म की निशानी प्रश्नकर्ता : हम अपने मित्रों के बीच दादाजी की बात करते हैं, तो वे कहते हैं, 'हम मानव धर्म का पालन करते हैं और इतना काफ़ी है', ऐसा कहकर बात को टाल देते हैं। दादाश्री : हाँ, किन्तु मानव धर्म पालें तो हम उसे 'भगवान' कहें। खाना खाया, नहाया, चाय पी, वह मानव धर्म नहीं कहलाता। यह मानव धर्म की प्रथम निशानी है। यहाँ से मानव धर्म शुरू होता है। मानव धर्म की बिगिनिंग यहाँ से ही होनी चाहिए! बिगिनिंग ही न हो तो वह मानव धर्म समझा ही नहीं। प्रश्नकर्ता : 'मुझे दुःख होता है वैसे ही औरों को भी दुःख होता है' यह जो भाव है, वह भाव जैसे जैसे डिवेलप होता है, तब फिर मानव की मानव के प्रति अधिक से अधिक एकता डिवेलप होती जाती है न? दादाश्री : वह तो होती जाती है। सारे मानव धर्म का उत्कर्ष होता प्रश्नकर्ता : हाँ, वह सहजरूप से उत्कर्ष होता रहता है। दादाश्री : सहजरूप से होता है। पाप घटाना, वह सच्चा मानव धर्म प्रश्नकर्ता : नहीं। मानव धर्म मतलब लोग ऐसा कहते हैं कि एक-दूसरे की मदद करना, किसी का भला करना, लोगों को हैल्पफुल होना। लोग इसे मानव धर्म समझते हैं। दादाश्री : मानव धर्म वह नहीं है। जानवर भी अपने परिवार को मदद करने की समझ रखते हैं बेचारे! मानव धर्म से तो कई प्रश्न हल हो जाते हैं और मानव धर्म लेवल (सापेक्षिक स्तर) में होना चाहिए। जिसकी लोग आलोचना करें. वह मानव धर्म कहलाता ही नहीं। कितने ही लोगों को मोक्ष की आवश्यकता नहीं है, किन्तु मानव धर्म की तो सभी को ज़रूरत है न! मानव धर्म में आए तो बहुत से पाप कम हो जाएँ। वह समझदारीपूर्वक होना चाहिए प्रश्नकर्ता : मानव धर्म में, औरों के प्रति हमारी अपेक्षा हो कि उसे भी ऐसे ही व्यवहार करना चाहिए, तो वह कई बार अत्याचार बन जाता है। दादाश्री : नहीं! हर एक को मानव धर्म में रहना चाहिए। उसे ऐसे बरतना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं होता। मानव धर्म अर्थात् खुद समझकर मानव धर्म का पालन करना सीखे। मानव धर्म अर्थात् प्रत्येक बात में उसे विचार आए कि मुझे ऐसा हो तो क्या हो? यह विचार पहले न आए तो वह मानव धर्म में नहीं है। किसी ने मुझे गाली दी, उस समय मैं बदले में उसे गाली दूँ उससे पहले मेरे मन में ऐसा हो कि, 'यदि मुझे इतना दुःख होता है तो फिर मैं गाली दूं तो उसे कितना दु:ख होगा!' ऐसा समझकर वह गाली न देकर निपटारा करता है।

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