Book Title: Manav Dharma Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 8
________________ मानव धर्म मानव धर्म दादाश्री : हाँ, स्वाभाविक राज है। पोल (अंधेर) नहीं चलती। आपकी समझ में आया? 'मुझे जितना दु:ख होता है, उतना उसे होता होगा कि नहीं?' जिसे ऐसा विचार आए वे सभी मानव धर्मी हैं, वर्ना मानव धर्म ही कैसे कहलाए? उधार लिए हुए पैसे नहीं लौटाए तो? यदि हमें किसी ने दस हजार रुपये दिए हों और हम उसे नहीं लौटाएँ, तो उस समय हमारे मन में विचार आए कि 'अगर मैंने किसी को दिए हों और वह मुझे नहीं लौटाए तो मुझे कितना दु:ख होगा? इसलिए जितना जल्दी हो सके, उसे लौटा दूं।' खुद के पास नहीं रखने। मानव धर्म यानी क्या? जो दु:ख हमें होता है वह दुःख सामनेवाले को भी होता ही है। किन्तु मानव धर्म प्रत्येक का अलग-अलग होता है। जैसा जिसका डिवेलपमेन्ट (आंतरिक विकास) होता है वैसा उसका मानव धर्म होता है। मानव धर्म एक ही प्रकार का नहीं होता। किसी को दुःख देते समय खुद के मन में ऐसा हो कि 'मुझे दुःख दे तो क्या हो?' अत: फिर दु:ख देना बंद कर दे, वह मानवता है। मेहमान घर आएँ तब.... हम यदि किसी के घर मेहमान हुए हों तब हमें मेज़बान का विचार करना चाहिए, कि हमारे घर पंद्रह दिन मेहमान रहें, तो क्या हो? इसलिए मेज़बान पर बोझ मत बनना। दो दिन रहने के बाद बहाना बनाकर होटल में चले जाना। लोग अपने खुद के सुख में ही मग्न हैं। दूसरों के सुख में मेरा सुख है, ऐसी बात ही छूटती जा रही है। 'दूसरों के सुख में मैं सुखी हूँ' ऐसा सब अपने यहाँ ख़त्म हो गया है और अपने सुख में ही मग्न हैं कि मुझे चाय मिल गई, बस! आपको दूसरा कुछ ध्यान रखने की ज़रूरत नहीं है। 'कंदमूल नहीं खाना चाहिए' यदि यह न जानो तो चलेगा। किन्तु इतना जानो तो बहुत हो गया। आपको जो दु:ख होता है वैसा किसी को नहीं हो, इस प्रकार रहना, उसे मानव धर्म कहा जाता है। सिर्फ इतना ही धर्म पाले तो बहुत हो गया। अभी ऐसे कलियुग में जो मानव धर्म पालते हों, उन्हें मोक्ष के लिए मुहर लगा देनी पड़े। किन्तु सत्युग में केवल मानव धर्म पालने से नहीं चलता था। यह तो अभी, इस काल में, कम प्रतिशत मार्क होने पर भी पास करना पड़ता है। मैं क्या कहना चाहता हूँ वह आपकी समझ में आता है? अतः पाप किसमें है और किसमें पाप नहीं, वह समझ जाओ। अन्यत्र दृष्टि बिगाड़ी, वहाँ मानव धर्म चूका फिर इससे आगे का मानव धर्म यानी क्या कि किसी स्त्री को देखकर आकर्षण हो तो तुरंत ही विचार करे कि यदि मेरी बहन को कोई ऐसे बुरी नजर से देखे तो क्या हो? मुझे दुःख होगा। ऐसा सोचे, उसका नाम मानव धर्म। 'इसलिए मुझे किसी स्त्री को बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए', ऐसा पछतावा करे। ऐसा उसका डिवेलपमेन्ट होना चाहिए न? मानवता यानी क्या? खुद की पत्नी पर कोई दृष्टि बिगाड़े तो खुद को अच्छा नहीं लगता, तो इसी प्रकार वह भी सामनेवाले की पत्नी पर दृष्टि न बिगाड़े। खुद की लड़कियों पर कोई दृष्टि बिगाड़े तो खुद को अच्छा नहीं लगता, तो वैसे ही वह औरों की लड़कियों पर दृष्टि न बिगाड़े। क्योंकि यह बात हमेशा ध्यान में रहनी ही चाहिए कि यदि मैं किसी की लड़की पर दृष्टि बिगाडूं तो कोई मेरी लड़की पर दृष्टि बिगाड़ेगा ही। ऐसा ख्याल में रहना ही चाहिए, तो वह मानव धर्म कहलाएगा। मानव धर्म यानी, जो हमें पसंद नहीं है वह औरों के साथ नहींPage Navigation
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