Book Title: Mahavira ka Arthashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 9
________________ जो मनुष्य अप्रामाणिक प्रवृत्तियों से धन का अर्जन करते हैं, वे वैर के सार अपना अनुबन्ध कर लेते हैं। धन में मूर्च्छित मनुष्य को धन त्राण नहीं देता। अंधेरी गुफा में जिसका दीप बुझ गया हो, उसकी भांति अर्थ में आसक्त मनुष्य पार ले जाने वाले मार्ग को देखकर भी नहीं देखता। महावीर के ये सूत्र संकेत दे रहे हैं--महावीर अर्थशास्त्री नहीं हैं। वे अध्यात्म पुरुष हैं। आत्मा के अस्तित्व को उन्होंने अपना आधार माना है। अर्थशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय वस्तुएं हैं । अध्यात्मशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय आत्मा है। उसका सम्बन्ध अपरिग्रह से है । महावीर अपरिग्रह के महान् प्रवक्ता हैं। उन्होंने स्वयं अपरिग्रह की स्थापना की, आकिंचन्य का जीवन जीया। गृहस्थी मनुष्य अपरिग्रही नहीं हो सकता, जीवन चलाने के लिए भिक्षाजीवी नहीं हो सकता। उसके लिए महावीर के इच्छापरिमाण-परिग्रह के सीमाकरण का विधान किया। सीमाकरण से अर्थशास्त्र के कुछ सिद्धान्त फलित होते हैं । आकांक्षा और उत्पादन के असीम संवर्धन का सिद्धान्त बहुत आकर्षक है किन्तु वह स्वाभाविक नहीं है और उसके परिणाम भी मनुष्य के हित में नहीं हैं। अर्थशास्त्र आर्थिक समृद्धि का शास्त्र है और अर्थ का सीमाकरण शान्ति का शास्त्र । असीम आकांक्षा और शान्ति में कभी समझौता नहीं होता। मनुष्य के लिए आर्थिक संसाधन भी जरूरी हैं। शान्ति के मूल्य पर यदि आर्थिक विकास हो तो परिमाणत: अशान्त मनुष्य आर्थिक समृद्धि के सुखानुभूति नहीं कर सकता। वर्तमान की अपेक्षा है-आर्थिक आवश्यकता की संपूर्ति और शान्ति-इन दोनों का समन्वय किया जाए। ऐकान्तिक दृष्टिकोण विश्व की समस्या को समाधान देने में सक्षम नहीं है, इसलिए सापेक्ष दृष्टिकोण के आधार पर आवश्यकता की संपूर्ति का अर्थशास्त्र और शान्ति के अर्थशास्त्र-दोनों एक दूसरे के पूरक हों। संयम, विसर्जन, त्याग, सीमाकरण-ये शब्द आर्थिक संपन्नता के स्वप्नद्रष्टा मनष्य को प्रिय नहीं है। भोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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