Book Title: Mahavira Siddhanta aur Updesh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ १४२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश वैराग्य सोही उज्जुभयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ । निबाणं परमं जाइ, घयसित्ते य पावए । -- उत्तराध्ययन जीवियं चेव रूवं च, विज्जूसंपाय-चंचलं । जत्थ तं मुज्झसि राय, पेच्नत्थं नावबुज्झसि ।। ---- उत्तराध्ययन जो परिभवई पर जण, संसारे परिवत्तई मह । अदु इंखिणियाउ पाविया, इति संखाय मुणी ण मज्जई । ----- सूत्रकृतांग जेण सिया तेण णो सिया, इणमेव नावबुझंति जे जणा मोह-पाउडा । - आचारांग जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हे वि होहिहा जहाँ अम्हे । अब्भाहेइ पडतं, पंडअ - पत्तं किसलयाणं ॥ -~~- अनुयोगद्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172