Book Title: Mahavira Siddhanta aur Updesh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 166
________________ महावीर के उपदेश : १४६ जिसमें ममता न हो, अहंकार न हो, जो आसक्ति-रहित हो, गौरव (महत्त्वाकांक्षा) से रहित हो, और स-स्थावर सभी प्राणियों पर सम ही। जो लाभ और अलाभ में, सुख और दुःख में, जीवन और मृत्यु में, निन्वा और प्रशंशा में सथा सम्मान और अपमान में सम हो । जो महत्ता से, कषायो से, दंड, शल्य, भय, हास्य जोर शोक से निवृत्त हो, मिदान से दूर हो, बन्धन से दूर हो। जिसकी इह लोक में भी कोई आसक्ति न हो, परलोक में भी आसक्ति न हो, तथा जो वसूले से शरीर को काटने वाले पर भी और चन्दन का लेप लगाने वाले पर भी समभावी हो। अशन और अमशन (उपवास) दोनों में उसकी समता है। ऐसा साधक ही धास्तव में समत्वयुक्त होता है । जो सब प्राणियों को आत्मवत् देवता हैं, समस्त प्राणियों के प्रति समदर्शी है, आश्रवों को रोक लेता है, इन्द्रियों का वमन कर लेता है, वह समत्व-साधक पापकर्म का बन्ध नहीं करता। इन्द्रियों का दमन और कषायों को शमम करने वाले सुव्रती साधक में सर्वत्र समता होनी चाहिए। सदा समता का आचारण करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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