Book Title: Mahavira Siddhanta aur Updesh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ महावीर के उपदेश : १४७ समता से ही श्रमण होता है । : २ : आर्य - पुरुषों में समभाव में हो धर्म कहा है समता समभाव उसी को रह सकता है, जो अपने को हर किसी भय से मुक्त रखता है । :: समग्र विश्व को जो समभाव से देखता है, वह न किसी का प्रिय करता है और न किसी का अप्रिय । अर्थात् वह समदर्शी हो कर अपने-पराये को भेदबुद्धि से परे होला है 1 ५: जो कषाय को शान्त करता है, वहीं आराधक है । जो कषाय को शान्त नहीं करता, वह उसकी आज़धना नहीं करता । श्रमणत्व का सार उपशम (शान्ति) है 1 ६ : जो स और स्थावर समस्त प्राणियों पर समभाव रखता है, उसी की समला - सामायिक होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172