Book Title: Mahavira Siddhanta aur Updesh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ महावीर के उपदेश : १५३ जब साधक उत्कृष्ट, अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब आत्मा पर से अज्ञान-कालिमाजन्य कर्मरज को झाड़ देता है । - जब मन, वचन और शरीर के योगों का निरोध कर आत्मा शैलेशी अवस्था को पाती है- पूर्णतः स्पन्दन रहित हो जाती है, तब वह कर्मों का क्षय कर सर्वथा मल-रहित हो कर सिद्धि (मोक्ष) को प्राप्त होती है । . जब आत्मा समस्त कर्मों को क्षय कर, सर्वथा मलरहित हो कर सिद्धि (मोक्ष) को पा लेती है, तब लोक के अग्रभाग पर स्थिति हो कर सदा के लिए सिद्ध हो जाती है। : १० : ... ज्ञान के समग्र प्रकाश से, अज्ञान और मोह के विवर्जन से तथा राग और द्वेष के क्षय से, आत्मा एकान्त सुखरूप मोक्ष को प्राप्त करती है। : ११ : वह स्थान (मोक्ष) शाश्वत वास है, नित्य है, अक्षय है, अप्रतिपाती है, निराबाध - सुखयुक्त है, जिसे प्राप्त होने पर साधक सदा के लिए शोक रहित हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172