Book Title: Mahavira Shat Kalyanaka Pooja Author(s): Vinaysagar Publisher: Vinaysagar View full book textPage 7
________________ सपूजा द्वारा कोई पूजा ही AAAAAP तीर्थकर लेखक के दो शब्द . प्रस्तुत पूजा की उपादेयता इसी से स्पष्ट है कि पूजा-साहित्य मैं भगवान महावीर के ' कल्याणक' की कोई पूजा ही नहीं थी इसीलिये इस कमी की इस पूजा द्वारा पूति की गई है। प्रत्येक तीर्थकर केच्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निय ये पाँच कल्याणकातो होते ही हैं, परन्तु अन्तिम तीर्थ६५, शासन नायक वर्षमान स्वामी के छः कल्याणक हुए हैं। प्रथम च्यवन और दूसरा गर्भहरण होने से छः माने जाते हैं। कई महाशय जो इस गर्भ-हरण पायाणक को नीच और गर्हित होने के कारण अमङ्गल स्वरूप मानते हैं, वे लोग यह भूल जाते है कि स्थानांगसूत्र, समवायांग सूत्र, कल्पसूत्र, आचासंग सूत्र नादिशा में छः ही बताये है। अतः उन्हें आगम साहित्य के प्रति मतामह के कारण मनमानापन न करते हुए शास्त्रीय मान्यता को ही स्वीकार करना चाहिये और प्रचार करना चाहिए । जिन . पाठकों को इस विषय में रस हो और विशेष निर्णय करना चाहते हों, उन्हें स्वर्गीय आचार्यदेव गीतार्थ-प्रवर पूज्येश्वर श्री जिनमणिसागरसूरीश्वरजी महाराज लिखित 'षट्कल्याणक निर्ययः" और मेरी, लिपि वल्लभ भारतो,.५५ गणि श्री बुद्धिमुनिजी सम्पाविस पिएचनिशुद्धि प्रकरण में मेरे द्वारा लिखित उपोधात देखना चाहिये। प्रस्तुत पूजा मे कल्याणकों के अनुपात से ही ६ पूजायें रखी है। प्रथम पूजा में एक दाल, दूसरी, तीसरी और पॉची पूजा में दो-दो दाल, चौथी पूजा में ३ ढाल तथा छठी पूजा में एक नाल नौर एक कलश है। इस प्रकार कुल १२ ढालें हैं। इसमें रागि tv. भारतPage Navigation
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