Book Title: Mahavira Shat Kalyanaka Pooja
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 25
________________ महावीर-पट-कल्याणक पूजा (१३ ) पंचम केवल-ज्ञान कल्याणक पूजा दोहानदी तीर ऋजु वालुका, शाल तरूतर श्रान | शुदि दसमो पैसाख मह, पायो केवल ज्ञान ॥१॥ धन पाती चौकम का, क्षय कर हे सरताज । सर्वदर्शी सर्वज्ञ तुम, जि बने जिनराज ॥२॥ ( लय-होई श्रानन्द वहार रे .. . .. .. ) . आज श्रानन्द दिगन्त रे, पूजो भक्ति प्रेम से। टेर। इन्द्रादिक सुर सुरी मिलकर, समवसरण विरचात रे । पूजो.१। चौतीस अतिशय पैंतीस वाणी, शोभित श्री वर्धमान रे । पूजो.२॥ समवसरण में बैठ प्रभ जी चउविह धर्म प्रकाश रे। पूजो.३। इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्माबारे। जो.४। मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलमाता, मेतार्य रे। पूजो. प्रमुख-प्रभास विप्रवर वैदिक, छात्र सहित परिवार रे। पूजो.६। वैदिक तत्व विवेचन करके, बना दिये अनगार रे। पूजो.७/ शासन के महा स्तम्भ बनाकर, गणधर पदवी दीनी रे। पूजो. चन्दन वाला आदि साध्वी, दीक्षित कर जिनराज रे। पूजो.हा चउविह संघ की स्थापना करके, तीर्थकर पद पाय रे। पूजो.१०॥ देश विदेशमें, ग्राम-नारमें, फिर-फिर किया प्रचार रे! पूजो.११॥ यज्ञ कांड हिंसा कृत्यवंदकर, अहिंसा ध्वज फहरायरे। पूजो.१२।

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