Book Title: Mahavira Shat Kalyanaka Pooja
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 17
________________ महावीर - कल्याणक पूजा देवों ने छीना क्यों मुझसे, अपहरण हुश्रा सब कुछ मे।। पलटी प्रभुता इक पल-छिन में, झट चंचल रूप बनाते हैं ।४। जननी की आकुलता विलोकि, प्रभु चेतन-गति दर्शाते हैं। ममतामयि की ममता लखका, काव्यरूढ हो जाते हैं। प्रण किया प्रभु ने हैं जन तक, पितु मातु हमारे दुनिया में । दीक्षा नहीं ग्रहण करू तब तक द टेक रेख बन जाते हैं।६। माता मन हषित प्रेम पुल, सुख रोम-रोम छा जाता है। आनन्द रूप प्रभु का प्रतिदिन, प्रति पल अानन्द बढ़ाता है । .! (मन्त्रम् ) सार्वीयमीरवर नगनन्त-हितावह श्रीसिद्धार्थवंश गगनांगण -पूर्णचन्द्रम् । सर्वज्ञ-देव--त्रिशलात्मज वर्धमान सद्रव्य-भावविधिना सततं यजेऽहम् । ॐ ह्रो परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशकये जन्मजरामृत्युनिवाररणाय श्रीमजिनेन्द्राय महावीरपटुकल्याणकपूजाया द्वितीयगर्भापहार-कल्याणके अष्टद्रव्यं निर्वामित स्वाहा । इति द्वितीय कल्याणक पूजा ।

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