Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana Author(s): Divyagunashreeji Publisher: Vichakshan Prakashan Trust View full book textPage 9
________________ जीवनशैली, सिद्धांतो का प्रतिपादन करते हुए उनका नए संदर्भो में मूल्यांकन किया। सविशेष रूप से नारी का स्थान, हिंसा का व्यापक समर्थन और वर्तमान संदर्भो में उसकी उपयोगिता, प्रबंधो में प्रस्तुत राष्ट्रीयता, आर्थिक समस्या, सामाजिक, धार्मिक,राजनैतिक परिवेश के साथ जैनधर्म-दर्शन के सिद्धांतों की समीक्षा प्रस्तुत की शोधार्थी साध्वी जी ने इन प्रबंधों का भावपक्ष एवं कलापक्ष की दर मूल्यांकन प्रस्तुत किया है । कलापक्ष की दृष्टि से प्रबंधों की समीक्षा उनकी विशेष उपलब्धि है। कुल मिलाकर यह उनकी विशेष उपलब्धि हैं कि वे महावीर के जोवन-सिद्धांतो के प्राचीन-अर्वाचीन संदर्भो को जोड़ सकीं। मैं साधुवाद देता हूँ साध्वीजी के अथक परिश्रम को, मातृभाषा हिन्दी न होते हुए भी उनका हिन्दीमें प्रबंध प्रस्तुत कर अपनी राष्ट्रीय भावना का परिचय देने पर । पादविहारी साध्वी जी विहार में भी अपने अध्ययन के प्रति अधिक जागरुक रहीं। इन बाह्य परेशानियों में भी हिम्मत नहीं हारी। मुझे आश्चर्य भी था कि जिन्हें इस डिग्री से कोई भौतिक लाभ नहीं हैं वे कितनी तन्मयता से कार्यरत हैं। पर, वास्तव में जिन्हें कोई लोभ-लालच नहीं वे ही कुछ अच्छा कर पाते हैं इसकी वे उदाहरण बन गईं। उन्होने जिस प्रकार ग्रंथालयों में समाधि लगाकर अध्ययन किया वह तारीफ के योग्य है। उनके इस ज्ञान-यज्ञ में उनकी गुरुणी पू. साध्वी मनोहर श्री जी म.सा. एवं साथी संघस्थ एवं साध्वीगण का सहयोग-प्रेरणा-मार्गदर्शन एवं सुविधा प्रदान करने की भावना सराहनीय रही। संघ के श्रावकों का सहयोग भी प्रसंशनीय रहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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