Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana Author(s): Divyagunashreeji Publisher: Vichakshan Prakashan Trust View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन "स्वान्तसुखाय परजनहिताय" इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर साध्वी दिव्यगुणाश्रीजीने जनमानस को आत्मोन्मुख बनाने के लिए “हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन" इस विषय पर शोध कार्य किया है । साहित्य दर्पण का कार्य करता है । जिस प्रकार दर्पण मुखाकृति पर लगे हुए दागों का निरीक्षण करता है ठीक उसी प्रकार साहित्य भी जन-मानस को सही दिग्दर्शन कराने में सक्षम है। भौतिकता की चकाचौंध से भ्रमित पथिकों को आत्म विकास का मार्ग दिखाता है । साध्वीजीने कठिन परिश्रम करके प्रस्तुत शोधग्रन्थ को सम्पूर्ण कर जिनशासन का गौरव बढ़ाया है। 1 विषय का तलस्पर्शी एवं सूक्ष्म ज्ञानार्जन करने के लिए लक्ष्य निर्धारण आवश्यक है । इसी हेतु साध्वीजीने पीएच. डी. करने का निर्णय किया। अध्ययनशील रहने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इसमें भी श्रमण पर्याय तो संघर्ष से परिपूर्ण होता है । इसके बावजूद भी अथक् प्रयास करके इन्होने साहित्यसेवा की यह बहुत ही सराहनीय कार्य है । अन्तःकरण से यही मंगल आशीर्वाद देते हैं कि भविष्य में इसी प्रकार संयम साधना के साथ साथ साहित्य साधना चलती रहे । १५-४-९८ अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only विचक्षण-पदरेणू मनोहरश्री मुक्तिप्रभाश्री www.jainelibrary.orgPage Navigation
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