Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana Author(s): Divyagunashreeji Publisher: Vichakshan Prakashan Trust View full book textPage 8
________________ श्रद्धासह.....शुभकामना पू. आदरणीय साध्वी श्री मनोहरश्रीजी म.सा. की शिष्या आ. दिव्यगुणाश्रीजी तपस्विनी साध्वी है। आत्मकल्याण की भावना से त्यागपथ की पथिक साध्वी श्री को ज्ञान-प्राप्ति की उतनी ही पिपासा है। चारित्र्य के साथ ज्ञान प्राप्ति की उनकी तीवेच्छा ही उनका यह शोधग्रंथ है। ___ जब संघ के महानुभाव विशेषकर श्री नारणचंद मेहता आदिने मुझसे आग्रह किया कि मैं साध्वीजी के शोधकार्य में निर्देशक बनूं । मैं बड़ी दुविधा में पड़ा। जो स्वयं मार्गदर्शक हैं....उनका क्या मार्गदर्शन करूँ ? पर व्यावहारिक दृष्टि से यह मैने स्वीकार किया और कुछ बैठकों के पश्चात साध्वी जी की दृढ़ता, शोधकार्य की तीव्रता आदि के परीक्षण के पश्चात् विषय तय हुआ- “हिन्दी के महावीर-प्रबंध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन।” साध्वी दिव्यगुणाश्रीजी श्वे. मूर्तिपूजक खरतरगच्छ की परंपरा में दीक्षित साध्वी है। उन्हें भ. महावीर पर तटस्थ कार्य करना था और वह उन्होंने बड़ी ही तटस्थता से यह कार्य किया। भ. महावीर के विषय में दिगंबर और श्वेतांबर मान्यतायें क्या हैं इन्हें उन्हीं के मतानुसार रखकर कहीं भी अपनी निजी साम्प्रदायिक मान्यताओं को हावी नहीं होने दिया। शोधग्रंथ का यह अध्याय “भ. महावीर के संबंध में दिगंबर-श्वेतांबर मान्यतायें' अपने आप में अनूठा है। साध्वीजीने भारतवर्ष में भ. महावीर पर लिखे गये प्रबंधों की खोज की, उनकी समीक्षा की और विविध कवियों के दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए भ. महावीर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 292