Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

Previous | Next

Page 11
________________ स्वयं समवसरण में देशना देने से पूर्व ' णमो तित्थस्स' (णमो संघस्स) कहकर चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ को नमन करते हैं। पिछले जन्मों में तीर्थंकर स्वयं भी किसी अन्य तीर्थंकर द्वारा स्थापित धर्मसंघ के अंग रहे होंगे जहाँ पर उन्होंने धर्म की उत्कृष्ट आराधना कर आत्मा का कल्याण किया एवं तीर्थंकर नाम कर्म जितना पुण्य इकट्ठा किया। वर्तमान में भी वे इसी तीर्थ के कारण तीर्थंकर कहलाते हैं। अतः विनय का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तीर्थंकर महावीर ने भी संघ रूपी तीर्थ को नमन किया। तीर्थंकर महावीर के 11 गणधर थे। साधु भगवंतों के समूह को गण कहा गया है एवं उस साधु समुदाय की व्यवस्था का संचालन करने वाले को गणधर शब्द से संबोधित किया है । तीर्थंकर परमात्मा की अर्थरूप वाणी को सूत्र रूप में गूंथकर गणधर भगवन्त अपने शिष्य समुदाय को उसकी वाचना देते हैं। भगवान् महावीर के 11 गणधरों में से 7 गणधरों की वाचना पृथक्-पृथक् (अलग-अलग ) हुई पर अकंपित और अचलभ्राता गणधर की वाचना एक समान हुई एवं मेतार्य और प्रभास गणधर की भी एक वाचना हुई। इस प्रकार भगवान् के 11 गणधरों के 9 गण हुए। O प्रथम पट्टधर : गणधर सुधर्म भगवान् महावीर ने जब तीर्थ की स्थापना की, तब इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर प्रभु के सम्मुख विनयवंत मुद्रा में खड़े हुए। कुछ क्षण के लिए देवों ने वाद्यनाद बन्द किए। प्रभु ने अपने पंचम गणधर आर्य सुधर्म को चिरंजीवी समझकर सभी गणधरों के आगे खड़ा किया एवं श्रीमुख से फरमाया मैं तुम्हें धुरी के स्थान पर रख गण एवं पाट की अनुज्ञा देता हूँ।" इस प्रकार कह सुगंधित चूर्ण ( वासक्षेप ) शीघ्र डालकर 'नित्थारगपारगाहोह' यानि इस संसार सागर से निस्तारा हो, ऐसा आशीर्वाद दिया । 1 समवसरण में तीर्थंकर महावीर के बाद अन्य गणधर भी उपदेश देते हैं। उसके भी कई कारण होते हैं। जैसे - शिष्यों की योग्यता को बढ़ाना, परमात्मा का गुणानुवाद करना, श्रोताओं को विश्वास दिलाना कि गणधर भी तीर्थंकर जैसा ही उपदेश देते हैं एवं भगवान् ने जैसी अर्थरूप वाणी फरमाई, वैसी ही सूत्ररूप वाणी की वाचना गणधर करते हैं एवं तीर्थंकर परमात्मा के बाद जिनशासन के संवहन के पूर्ण योग्य हैं। भगवान् महावीर के 9 गणधर उनके जीवनकाल में ही मोक्ष पद प्राप्त कर गए। जिस-जिस गणधर का कालधर्म होता गया, उन-उन की शिष्य परम्परा श्री सुधर्म स्वामी जी के गण में

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 330