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जैन चित्रकथा दोनों राजकन्याएँ राजा श्रेणिक का यश वर्णन सुनते-सुनते उन पर मुग्ध हो गयी. उन्हें इच्छा हुई कि वें राजा श्रेणिक को ही वर-रुप में प्राप्त करें,
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क्या ही अच्छा हो, 30 यदि हमें राजा श्रेणिका वर रूपमें मिलें.
राजा श्रेणिक सेही विवाह करूंगी.
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हे श्रेष्टी! आपने जिन राजा श्रेणिक का मनोहारी वर्णन किया, उनके बारे में जानने से क्या लाभ? वह तो अप्राप्य हैं.
हम तो अपने पिता के वश में है. जहाँ वे चाहेंगे, वहीं हमारा विवाह होगा. फिर भला राजा श्रेणिक
की बात कौन कहे?
ऐसा क्यों सोचती
हैं आप?
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