Book Title: Maharani Chelna Ki Vijay
Author(s): Rajni Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महारानी चनना 1 की विजय Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय भगवान महावीर के शासन काल के समय बज्जी गणतंत्र के गणपति राजा चेटक की सबसे छोटी पुत्री राजकुमारी चेलना का एक चित्र देखकर मगध सम्राट बिम्बसार उसके रूप सौन्दर्य पर मुग्ध हो उठे उन्होंने उससे विवाह करने की इच्छा की उनके पुत्र युवराज अभय कुमार साहस और युक्ति पूर्वक राजकुमारी चैलना को मगध लाकर अपने पिता सम्राट बिम्बसार की पटरानी बना दिया। ने उधर राजा चेटक क्रोध से उबल पड़े। युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई । अहिंसा धर्म की मानने वाली चेलना यह कैसे सहन करती की उसके कारण युद्ध में हजारों लोगों का रक्त बहे । वह स्वयं युद्ध भूमि में पहुँच गई। क्या वैशाली की सेना अपनी ही बेटी पर शस्त्र उठाती ? और युद्ध टल गया। यही अहिंसा धर्म और महारानी चेलना की सच्ची विजय थी। जैन चित्र कथा ★ महारानी चेलना की विजय (भाग I ) ★ प्रकाशक ★ सम्पादक लेखक ★ कला ★ I.S.B.N. ★ मूल्य ★ प्रकाशन वर्ष : आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला : धर्मचन्द शास्त्री व्र० धर्मचंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य ज्योतिषाचार्य : ब्र० रजनी जैन (संघस्थ आदिमति माता जी ) : डा० मधु जैन, बम्बई : 81-85834-43-1 : 10 रुपये : 1996 कार्यालय (१) श्री दिगम्बल जैन मन्दिर गुलाब वाटिका लोनी रोड, जि० गाजियाबाद (उ०प्र०) (२) गोधा सदन अलसीसर हाउस, एस०सी० रोड, जयपुर स्त्वाधिकारी, मुद्रक/प्रकाशक तथा सम्पादक धर्मचंद शास्त्री Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महारानी चलना की विजय कला : मधु जैन बज्जी गणतंत्र के गणपति, लिच्छवी राजा चेटक की सबसे छोटी पुत्री राजकुमारी चेलना का एक चित्र देखकर मगध सम्राट बिंबसार उसके रूप सौन्दर्य पर मुग्ध हो उठे थे. उन्होंने उससे विवाह करने की इच्छा की उनके पुत्र युवराज अभयकुमार ने साहस और युक्तिपूर्वक राजकुमारी चेलना को मगध लाकर अपने पिता सम्राट बिंबसार की पटरानी बना दिया., उधर राजा चेटक क्रोध से उबल पड़े. युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई. अहिंसा धर्म को मानने वाली चेलना यह कैसे सहन करती कि उसके कारण युद्ध में हजारों लोगों का रक्त बहे वह स्वयं युद्ध भूमि में पहुँच गई क्या वैशाली की सेना अपनी ही बेटी पर शस्त्र उठाती ? • और युद्ध टल गया. यही अहिंसा धर्म और महारानी चेलना की सच्ची विजय थी. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा बिम्बसार का राज दरबार महामात्य वर्षकार । • हमारे युवराज अभय कुमार अभी केवल बीस वर्ष के होंगे, पर उनकी बुद्धि पच्चीस-तीस बरस के युवकों है ! के बराबर जैन चित्रकथा WID जी हाँ महाराज ! युवराज ने अपनी प्रतिभा और लगन से राजकाज में इस तरह सहयोग दिया है कि आपका और मेरा कार्यभार गया है। काफी कम 2 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना युवराज अभय कुमार अपने पिता महाराज बिम्बसार के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखते थे। एक दिन..... किंतु अभयकुमार चिंता नहीं छोड़ सके. पिताजी! क्या बात है? मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ पिताजी अवश्य ही gha कि आप कुछ सुस्त और उदास अपना कष्ट छिपा रहे है. (क्यों न वैद्यों को बुलाकर रहते हैं? क्या कारण है? मैं तो । उनके स्वास्थ्य की बिलकुल ठीक हूँ! परीक्षा कराई जाए। तुम चिंता न करो कुमार SON .S Y Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा अगले दिन वैधों ने परीक्षण किया. | तो फिर...? कहिए वैद्यराज! आप लोगों युवराज! ने क्या देखा और इलाज की हमारे महाराज क्या व्यवस्था शारीरिक रूपसे होगी? एकदम महाराज किसी चिंता में डूबे हुए हैं. उनकी चिंता ही उनकी उदासी और सुस्ती का कारण है. पिताजी की चिंता का अचानक अभयकुमार को याद आया कि कारण क्या हो सकता || महाराज से चित्रकार भरतकुमार मिलाथा. है? कोई घटना, उसके बाद से ही महाराज उदास रहने लगे. कोई व्यक्ति या कुछ। और..., इसका प्रहरी! चित्रकार भरतकुमार को तत्काल in-पता तो लगाना ही चाहिए. बुलाकर लाओ. RSCOP TIMILITATUTTAR OAD TOAAKANTA naDADOOR Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना चित्रकार भरतकुमार तुरंत आगया. कही चित्रकार! हमारे राज्य में तुम्हें किसी तरह का कष्ट तो नहीं? तुम्हारे काम में कोई बाधा तो नहीं डालता ? तुम्हें अपना निवास स्थान अच्छा लगा ? युवराज ! आपके होते हुए क्या कह सकता है. फिर भला किसमें साहस है जो मेरे काम में बाधा डाले. युवराज ! वह घर तो लगता है आपने मेरी रुचि के अनुकूल ही बनवाया है. मेरी चित्रशाला में बड़े-बड़े लोग आते हैं और चित्रों का आनन्द लेते हैं.. 5 क्या सम्राट बिम्बसार भी कभी आपकी चित्रशाला में आए ? भी जी हाँ महाराज तीन-चार बार कृपा कर चुके हैं. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या सम्राट तुमस कोई विशेष चित्र बनवा रहे है? जैन चित्रकथा युवराज महाराजकोतो वह चित्र केवल एक ही चित्र प्रिय किसका है? है और उसी को वें भिन्न -भिन्न मुद्राओं में बनाने के लिए कहते हैं। वह बज्जी गणतंत्र के गणपति, लिच्छवी राजा चेटक की सबसे छोटी पुत्री चेलना का चित्र है युवराज। DOUD जी हाँ युवराज! मुझे याद आरहा है कि जब तुमने पहली बार महाराज से भेंट की थी तो उन्हें उसी राजकुमारी चेलना का चित्र ही तो भेट किया था। ठीक है,चित्रकार भरत तुमने हमारी समस्या/ कासमाधान कर दिया. तुम जा सकते जो आज्ञा युवराज! तो पिताजी, लिच्छवी राजकुमारी चेलना पर आसक्त हैं. और उनकी चिंता का कारण भी चेलना , ही है. इस समस्याको कैसे हल किया जाय? क्यों न महामात्य वर्षकार से इसबारे में सलाह ली जाए! Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना युवराज अभय कुमार रात को उसी समय महामात्य वर्षकार के निवास स्थान पर पहुँचे. हाँ महामात्य ! कुछ आवश्यक परामर्श लेना है ! स्वागत युवराज ! इतनी रात गये आप यहाँ ? आइए, आसन गृहण करें!/ महामात्य ! मैं कई सप्ताहों से पिताश्री को चिंतित देख रहा हूँ. सम्भव है आपने भी यह देखा हो ? वह राजकुमारी चेलना के लिए व्याकुल हैं. जबसे उन्होंने उसका | चित्र देखा है, तभी से उनका ये हाल है.! आप शायद ठीक कहते हैं. 7 INVA जानता हूँ युवराज ! और उनकी चिंता का कारण भी जानता किंतु महामात्य ! महाराज का कष्ट जानते हुए भी आप उसे दूर करने का कोई उपाय क्यों नहीं किया ! क्या जानते हैं। महामात्य! जरा खुलकर बताइए! उपाय इतना सरल नहीं है! Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा (वह क्या है? यही कि राजकुमारी चेलना को उनके लिए प्राप्त किया जाय! और यह असम्भव है। असंभव क्यों, महामात्य? क्योंकि लिच्छवी राजा चेटक जैन धर्म का पालन करताहै हमारे आचरण भिन्न होने के कारण हमसे घृणा करता है. और युवराज, आजकल तो उनका उत्साह इतनाबढ़ा हुआ है कि वे मगध पर आक्रमण करके हमारे यहाँ भी गणराज्य की स्थापना करना चाहते हैं. फिर भला विवाह -सम्बंध कैसे सम्भव है? महामात्य! आप ठीक कहते है। समस्या जटिल है. किंतु मैं सोचता हूँ कि यदि थोड़ी सावधानी से काम किया जायतोसफलता मिल सकती है। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना युवराज! इस समय लिच्छवी नरेश चेटक हमसे युद्ध करने की तैयारी कररहे हैं. हम भला किस तरह इस काम को कर पायेंगे? महामात्य! मैं सोच रहा हूँ कि राजकुमारी चेलनाको वैशाली से मगघ, अपहरण करके ले आएं! क्या कहरहें है युवराज? क्या सर्प के बिल में घुसकर सर्पिणी का अपहरण किया जा सकता है। क्या सिंह की मांद में घुसकर उसके बच्चे को पकड़ा जासकता है? किंतु महामात्य! उस मार्ग से ही आने की क्या आवश्यकता है? हम क्यों न भूमिगत मार्ग बनाएं युवराज! आपको वैशाली नगर के रक्षा प्रबंध की जानकारी शायद नहीं है. वहाँ के नगर रक्षकों की नजरसे बचकर नतो कोई आसकताहै और नाही नगर से बाहर जा सकता है. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचार उत्तम है, युवराज ! तब आप ही बताएं कि इस काम के लिए वैशाली किसे भेजना है ? क्या ? युवराज आप अपने प्राण संकट में डालेंगे ? यह उचित न होगा. जैन चित्रकथा घबराइए नहीं महामात्य ! मुझे कुछ नहीं होगा. 10 किसे भेजना है ? अरे यह काम तो स्वयं मैं करूंगा. क्या आपको मेरी वीरता और साहस पर संदेह है ? मैं रत्नों का एक जैन व्यापारी बन - कर जाऊंगा सबको वश में करके मैं चेलना को सुरंग मार्ग से यहाँ ले आऊंगा. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना महामात्य! बस आप सुरंग मार्ग का निर्माण ) | किंतु युवराज ! आपको इस योजना में अत्यंत शीघ्र आरंभ करा दें। वह सुरंग गंगा के इस सावधान रहना होगा. तनिक सी असावधानी पार से होती हुई वैशाली के उस मकान | से आपके प्राण भी संकट में पड़ सकते है, तक पहुंचे जहां में निवास करुंगा. A चिंतान करें, महामात्य! आप किंतु आपको एक सहायता और करनी) होगी,महामात्य! आज्ञा करेंपिताजी से अनुमति और युवराज! आशीर्वाद भी आपको ही प्राप्त करके देना होगा. उनकी अनुमति के बिना मैं नहीं जासकूँगा. तो फिर ? उसकी चिंता न करें युवराज। आप जानते हैं किसम्राट आपको कितना प्यार करते हैं और आपके प्राण संकट में पड़ें यह वे कभी नहीं चाहेंगे. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा | फिर भी मैं उनको राजनीतिक दांवपेंच समझाकर)। वे गुप्तचर वैशाली के समाचार आपको देंगे मनाने का प्रयत्न करूंगा. और हा, मैं आजही और यदि आप कोई समाचार यहाँ भेजना कुछ गुप्तचर वैशाली के लिए रवाना चाहेंगे तो उन्हें वे ला सकेंगे. कर रहा हूं. SO किसलिए Dow ठीक है। अगले दिन युवराज अभयकुमार ने रत्नों के व्यापारी के वेश में वैशाली के लिए प्रस्थान किया. TTGCT IPUy वैशाली नगर में पहुंचकर उन्होंने राजा चेटक से मिलने का प्रयत्न आरंभ किया. महामंत्री से मिले. मैं जंबूद्वीप से आया हूं. मेरा नाम रत्नप्रकाश है. मेरे साथ सेठ माणिकचंद और हीरालाल भी है. हम रत्नों के व्यापारी है.महामंत्रीजी कृपया महाराज चेटक से मिलने का समय दिलाइए. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलना अगले दिन राजा चेटक के पास तीनों जौहरी पहुंचे वाह ! कितने सुंदर रत्न हैं ! राजा चेटक, जौहरी रत्न प्रकाश की बातों से बहुत प्रसन्न हुए. रात को अपने उस निवास पर जहाँ ये लोग ठहरे थे. वाह युवराज ! आज तो आपका अभिनय सर्वश्रेष्ठ था. कोई नहीं कह सकता था कि आप जौहरी नहीं युवराज हैं. 13 महाराज! ये रत्न आप जैसे पारखी के सामने कुछ नहीं हैं: महामंत्री जी ! हमने जितने रत्न चुने हैं उनका मूल्य जौहरी को दे दीजिए और रत्न ले कर कोषागार में रखवा दीजिए. मैं युवराज कहाँ हूँ माणिकचंद . मैं तो रत्न प्रकाश जौहरी हूँ. इतनी जल्दी पाठ भूल गए. और हाँ आहिस्ता बोल दीवारों के भी कान होते हैं. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूल हो गई रत्न प्रकाश जी ! क्षमा करें. जैन चित्रकथा अब हमें महाराज चेटक से आज्ञा लेनी है कि हम यहाँ रह सकें और हीरों का व्यापार कर सकें. | राजा चेटक इनसे प्रसन्न तो थे ही, उन्होंने इन्हें अनुमति दे दी. अब मुझे शीघ्र ही अपने निवास के पास ही चैत्यालय का निर्माण) करवाना चाहिए, जिसमें) जिन भगवान की स्थापना करके उनकी पूजा करूँ Ooo: और चार-पाँच दिन के अंदर ही रत्न प्रकाश ने अपने निवास स्थान के अंदर एक मनोहर चैत्यालय बनवा लिया. 14 | उस चैत्यालय में युवराज अत्यंत धूमधाम से सुबह-शाम जिन भगवान की पूजा करने लगे. Shot Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना कभी-कभी वह उन सेठों के साथ मिलकर | कभी-कभी संगीत वाद्यों के साथ पूजन होता. जिनेन्द्र भगवान का पूजन करता जिस समय रत्न प्रकाश भजन-पूजन करता, उसके शब्द रनिवास में भी पहुँचते, महिलाएं। भी सुनतीं और जिन-भक्ति की प्रशंसा करतीं. वाह! कितना मधुर कोई सच्चा संगीत है। कितना श्रेष्ठ जिन भक्त मंत्रोच्चार है। लगता है आनन्द जो विधिआगया बिधान से पूजा कर रहा है. Che एक दिन ... दोपहर का समय था. राजमहल के सभी दास-दासियाँ काम समाप्त कर विश्राम कररहे थे. 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा किंतु चेलना और उसकी बड़ी बहन ज्येष्ठा अपने एक कमरे में बातें कर रहीं थी. चलना ! मैंने जिन भगवान की, भक्ति भाव से ऐसी उत्तम पूजा करने वाला पुरुष आज तक नहीं देखा. चेलना, मेरी तो कई बार इच्छा हुई किक्यों न चलकर चैत्यालय में स्वयं | देखूं कि भगवान की ऐसी आनंद -दायी स्तुति करने वाला व्यक्ति कौन है ! पर... P Pood For 000000 पर अपरिचित व्यक्ति के यहाँ जाने में संकोच होता है. फिर पिताजी को मालूम होगा तो वह क्रोध करेंगे. yanen 16 "हाँ ज्येष्ठा बहन ! वह जिन भगवान की स्तुति इतने मधुर कण्ठ से करता है कि परम आनंद की अनुभूति, होती है. तुमने तो मेरे मन की बात कह दी ज्येष्ठा, सच, यह इच्छा तो मेरी भी हुई.... पर..... JAVAVATAVAVAYAVA जिसकी धर्म में ऐसी गहरी आस्था हो, उस व्यक्ति से मिलने में संकोच कैसा ? R opence257 इसका अर्थ है कि हमें वहाँ चलना चाहिए ? Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना हाँ! किंतु हमें अपने वस्त्र बदलने होंगे, जिससे लोगे हमें पहचान न पाएं. दोनों राजकुमारियाँ चैत्यालय के निकट आयीं. कितना सुंदर चैत्यालय है. सुंदर मनोहारी. सोने के सिंहासन पर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है. उनके सिर पर शेषनाग के सातों फन सुशोभित हैं: उधर रत्नप्रकाश जौहरी के वेश में जिन भगवान की पूजा कर रहे युवराज अभय कुमार को सूचना मिल गयी कि दो राजकुमारियाँ आ रही हैं. | इस प्रकार राजमहल से निकलकर वे युवराज अभय कुमार के चैत्यालय की ओर चल दी. www 17 दोनों राजकुमारियाँ हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है. णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आयरियाण णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा जबदोनो राजकुमारियाँ प्रार्थना करके चलने लगीं तो उनकी दृष्टि अध्ययन कर रहे अभयकुमार पर पड़ी. कहिए! आपकी चैत्यालय कैसा लगा? हाँ! वास्तव में बहुत भला इतने सुंदर चैत्यालय को देखकर कौन प्रशंसा नहीं करेगा! आपने बहुत सुंदर क्या आपको चैत्यालय बनवाया है। सच में यह चैत्यालय) अच्छा लगा? इसकी वेदी, मूर्ति आदि सभी चीजें मैं राजगृह से लाया हूँ. तो क्या आप राजगृह से आएहै? Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाँ! इस प्रतिष्ठित प्रतिमा को मैं बराबर अपने साथ रखता चेलना तब तो प्रतिष्ठित प्रतिमासाथ रखने में आपको काफी कठिनाई होती होगी? हाँ,प्रतिष्ठित प्रतिमाकी अनेक मर्यादाएँ होती हैं, जिनका मार्ग में भी पालन करना पड़ता | राजकुमारीजी, यह जीवन मर्यादाओं के पालन के लिए ही तो है। जो भगवान जिनेन्द्र की स्तुति एवं पूजा भक्तिभाव से करते हैं, वे धन्य हैं. आपका राजगृह कहाँ है? वहाँ का राजा कौन है? वह किस धर्म का पालन करता है? आप यदि जानना चाहती हैं कि मैं जहाँ से आया हूँ वह स्थान क्या है, कैसा है तो सुनें! मैं जम्बू द्वीप से आया हूँ. यह जम्बू द्वीप अत्यंत सुंदर स्थान है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा वहाँ सुंदर सरोवर हैं जिनमें कमल खिले हैं. सुंदर हरे-भरे ग्राम हैं.अनेक मुनि वहाँ | तपस्या करते हैं. 3 ICKR नगर में धनधान्य से पूर्ण नागरिक रहते हैं. सब ओर संपन्नता के दर्शन होते हैं। SONOM nnnnllo Indog AUDDITI उस मगध देश तथा राजगृह के स्वामी महाराज श्रेणिक बिंबंसार है.वह प्रजा का नीति पूर्वक पालन करते है. 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा श्रेणिक जैन धर्म के परम भक्त हैं. वह अनेक गुणों के भंडार हैं. www चेलना राजा श्रेणिक के जैसा कोषबल भी आज भारत में किसी अन्य राजा के पास नहीं है, उनके समान धर्मात्मा गुणी तथा प्रतापीराजा इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है. 21 राजा श्रेणिक बिंबसार रुप में कामदेव के समान, बल में विष्णु के समान, ऐशवर्य में इन्द्र के समान हैं. हे राजकन्याओं, हम उन्हीं तथा नगर में रहने वा रत्नों के व्यापारी हैं: हमें यह सौभाग्य प्राप्त है कि हम उनके महल में जब चाहे जा सकते हैं. जब चाहे उनसे मिल सकते हैं. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा दोनों राजकन्याएँ राजा श्रेणिक का यश वर्णन सुनते-सुनते उन पर मुग्ध हो गयी. उन्हें इच्छा हुई कि वें राजा श्रेणिक को ही वर-रुप में प्राप्त करें, 0000 क्या ही अच्छा हो, 30 यदि हमें राजा श्रेणिका वर रूपमें मिलें. राजा श्रेणिक सेही विवाह करूंगी. क हे श्रेष्टी! आपने जिन राजा श्रेणिक का मनोहारी वर्णन किया, उनके बारे में जानने से क्या लाभ? वह तो अप्राप्य हैं. हम तो अपने पिता के वश में है. जहाँ वे चाहेंगे, वहीं हमारा विवाह होगा. फिर भला राजा श्रेणिक की बात कौन कहे? ऐसा क्यों सोचती हैं आप? 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना और यदि उनसे मगध नरेश || तब श्रेष्ठी. राजा श्रेणिक के बारे में हम कहें भी, तो उनसे | के बारे में सोचना वैसे ही है हमारे पिता के सम्बंध कैसे हैं, जैसे कोई बौना, आम के वृक्ष यह हम नही जानती. से फल तोडने की बात सोचे. YOU राजकुमारी! यदि आपके मन में राजा श्रोणिक को पाने की इतनी अभिलाषा है, तो अवश्य ही उसका कोई मार्ग भी होगा. और वह मार्ग में बता सकता हूँ. क्या आपके पास कोई उपाय है? पर मगध तो बहुत दूर है. आपका कोई भी उपायकैसे संभव हो सकता है? Wr 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा | मनुष्य इच्छा करे तो क्या नहीं हो सकता P मुझे तो ऐसी विद्याज्ञात है कि मैं आपको तुरंत ही राजगृह नगरलेचल सकताहूँ. आप केवल अपनीसहमति दीजिए. क्या इस तरह पिता की बिना आज्ञा के जाना उचित होगा? जब पिता को मालूम होगा तो क्या उत्तर दूंगी? क्यों चेलना? ril HOM नहीं, | जब हमें ज्ञात है कि पिताजी हमारी इच्छा कभी पूरी नहीं होने देंगे तो फिर उस बारे में सोचना कैसा? यदि हमें अपनी इच्छा पूरी करनी है तो हम वही करें जो हम चाहते हैं. यह उचित न होगा. 'पिताजी से पूछना अनिवार्य है. चेलनाजाती है तो जाए। मैं किसी उपाय से यहाँ से वापस चलती हूँ. 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना अच्छा तो ठीक है। सेठ के वेश में युवराज ने राजकुमारी ज्येष्ठा हम चलते हैं. लेकिन का बहाना समझ लिया. चलने से पहले मैं अपना कोई बात नहीं ! राजकुमारी जी प्रियहार लेकर आजा चलिए, आप विलम्ब तनिक चाहती हूँ. भी न करें. इस बीच सुरंग बन कर तैयार हो चुकी थी.युवराज और कुछ ही देर में वें सुरंग से बाहर आए तो वहाँ राजकुमारी चेलना को साथ लेकर सुरंग में घुसा. अत्यंत तेज घोड़ों वालारथ तैयार खड़ा था. lidio OCTOR 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा उस रथ पर बैठ कर युवराज राजकुमारी चेलना के साथ बड़ी तेजी से राजगृह की ओर बढ़ चला. Ce क्या मैनेयह उचित किया है? प्रेम के उन्मादमे मैं अपना विवेक खो बैठी. शायद ज्येष्ठाने ठीक किया. मुझे वापस जाना चाहिए. D हे श्रेष्ठी! मुझे अपने माता-पिता की याद राजकुमारी जी, अब तो वापस लौटना किसीभी सता रही है. आप मुझे वापस प्रकार संभव नहीं है. अब तक आपके पिताजी वैशाली ले चलें. को पता लग गया होगा. वह हमें जान से मरवा देंगे. 52 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब तो आप धैर्यपूर्वक राजगृह चेलना जब युवराज राजगृह पहुंचे तो स्वयँ राजा श्रेणिक उनका स्वागत करने आए चलें और राजकुमारी चेलना को एक सुंदर पालकी में राजमहल की ओर घूमधाम से ले चले. RAKOOL युवराज अभयकुमार महल में स्वयं राजमाता महारानो इन्द्राणी ने चेलना का स्वागत किया. की जय! राजाश्रेणिक बिंबसार कीजय। VI 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा इसके बाद विवाह मंडप में राजा श्रेणिक बिंबंसार से चेलना का विवाह हुआ. अब चेलना, मगध नरेश की पटरानी बन गयी थीं और एक सुंदर महल में सुख से रहने लगी थीं. SHILARDAN Y DOWNY PEO किंतु उधर वैशाली के राजा चेटक क्रोध से उबल रहे थे.. सेनापति ! अपनी सारी सेनाएं लेकर जाओ और मगध की नष्ट कर दो. An απομάχης Xuxuxx Poooo WOLAMATION 28 CHIUSTENT सेनापति ने वैशाली की सेना लाकर गंगा के किनारे खड़ी कर दी. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना उधर राजा श्रेणिक बिंबसार के राज दरबार में . महाराज! गंगा के उस पार वैशाली की सेनाएं आकर खड़ी है. वे किसी क्षण गंगा पार करके मगध पर आक्रमण कर सकती सेनापति! यह कोई अनहोनी नहीं है. हमें तो इसकी आशा थी. आप राजकुमार अभयकुमार SNAN को साथ लें और वैशालीकीसेना का मुकाबला करें. POSss LUMINIMARATIMATRA अगले ही क्षण मगध की सेनाएं युवराज अभय कुमार के साथ चल दी. rnrnrLISLIrn महारानी जी । सुना है, गंगातट पर वैशाली की सेनाएं आकर खड़ी हैं. वे मगध पर आक्रमण करने वाली हैं.युवराज - अभयकुमार सेना लेकर उनसे युद्ध करने। जारहे है. SAMRAT मैं जानतीहं कि यह युद्ध क्यों होने वाला है. इसका " कारण मैं हूं.किंतु मेरे कारण हजारों लोगों का रक्त बहे,यह तो उचित नहीं होगा.मुझे तत्काल कुछ करना होगा. JUUUUUU 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा दासी! तुम तत्कालजाकर महाराज को सूचना महाराज श्रेणिक के पास चेलना दो कि मैं उनसे मिलना चाहती हूं. महाराज! आपजानते हैं कि वैशाली। किंतु महारानी! की सेना क्यों आई है? मैं नहीं चाहती। युद्ध के लिए हमने किमेरे कारण नहीं, वैशाली की सेनाओं ने हमें कृपया ललकारा है.और उसकाउत्तर देनातोहमारा कर्तव्य यहयुद्धही. रोकिए तो क्या तुम इस किंतु हजारों लोग मारे जाएंगेइस हिंसा का पाप तो मुझे ही भोगना पड़ेगा, क्योंकि इसयुद्ध का कारण मैं ही युद्धको शरीक सकती तो हँ. ठीक है! चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं. यही करना होगा. मुझे युद्ध भूमि में जाना होगा. देखती हँ मेरे होते हुए वैशाली की सेना कैसे युद्ध कर सकती है. 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेलना और महारानी चेलना तथा राजा श्रेणिक रथ पर बैठकर गंगा तट कीओर चल दिए. Or मगध की सेना ने उन्हें देखा तोजय-जयकार करने लगी. ONLON ( Rore यह जयघोष सुन कर वैशाली की सेना चिंता में पड़ गयी. 31 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा तब वैशाली की सेना ने जयघोष किया. महारानी चेलना की जय ।। महाराज श्रेणिक की जय। और इस तरह दोनों पक्षों की सेनाएं, प्रसन्न होकर लौट गयीं. यह रानी चेलना की महान विजय थी. HTTER i Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुनो सुनायें सत्य कथाएँ जैन चित्र कथा नई पीढ़ी को अच्छी शिक्षा के लिए हमारे नऐ अंक में नया उत्साह, उमंग, ज्ञान रस से भरपूर, जीवन को प्रेरणा देने वाली रोचक एवं मनोरंजक कहानियां रंग विरंगी दुनियाँ में आपके नन्हें मुन्नों के लिए ज्ञान वर्धक टोनिक जैन चित्र कथा पढ़ें तथा पढ़ावें अब तक प्रकाशित्त जैन चिन्न कचाएँ। आगामी प्रकाशन (1) तीन दिन में अंजना (14) नाग कुमार भाग्य की परीक्षा मुनि रक्षा (15) तीसरा नेत्र त्याग और प्रतिज्ञा गाये जा गीत अपन के (16) बेताल गुफा आटे का मुर्गा क्या रखा है इसमें (17) चन्द्रप्रमु तीर्थंकर करे सो मरे चरित्र ही मन्दिर है (18) जल्लाद का अहिंसाव्रत कविरत्नाकर मुक्ति का राही (19) निकलंक का जीवन दान चमत्कार आत्म कीर्तन (20) महारानी मृगावती प्रथम्न हरण महादानी भामाशाह (21) नेमीनाथ सत्य घोस आचार्य कुन्दकुन्द (22) दलदल में फंसा बैल (10) सात कोड़िओं में राज्य (10) रामायण (23) आओं चले हस्तिनापुर (11) टीले बाले वाया (11) नन्हें मुन्हें (24) सुबह का भूला (12) चंदना (12) एक चोर (25) ऋषि का प्रभाव (13) ताली एक हाथ से बजती रही (13) सोने की थाली गोधा सदन (14) सिकन्दर और कल्याणमुनि (15) चारित्र चक्रवर्ति प्रकाशक : आचार्य धर्मभुत ग्रन्थ माला अलसीसर हाऊस संसारचंद, (16) रूप जो बदला नहीं रोड जयपुर (17) राजुल (18) स्वर्ग की सीढ़ियाँ प्राप्ति स्थान : जैन चित्र कथा कार्यालय दि. जैन मन्दिर, गुलाब बाटिका दिल्ली सहारनपुर रोड दिल्ली (U.P.) 200000 (9) तो फिर देर किस बात की आव ही डाफ्ट या चैक जैन चित्र कथा के नाम से भेजें परम संरक्षक १११११ संरक्षक ५००१ आजीवन १५०१ दस वषीर्य ७०१ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Not every Company gives you top-of-the-line in Law Books. 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