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चलना
अगले दिन राजा चेटक के पास तीनों जौहरी पहुंचे
वाह ! कितने सुंदर रत्न हैं !
राजा चेटक, जौहरी रत्न प्रकाश की बातों से बहुत प्रसन्न हुए.
रात को अपने उस निवास पर जहाँ ये लोग ठहरे थे.
वाह युवराज ! आज तो आपका अभिनय
सर्वश्रेष्ठ था. कोई नहीं कह सकता था कि आप जौहरी नहीं युवराज हैं.
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महाराज! ये रत्न आप जैसे पारखी
के सामने
कुछ नहीं हैं:
महामंत्री जी ! हमने जितने रत्न चुने हैं उनका मूल्य जौहरी को दे दीजिए और रत्न ले कर कोषागार में रखवा दीजिए.
मैं युवराज कहाँ हूँ माणिकचंद . मैं तो रत्न प्रकाश जौहरी हूँ. इतनी जल्दी पाठ भूल गए. और हाँ आहिस्ता बोल दीवारों के भी कान होते
हैं.