Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ अपभ्रंश भाषा में निबद्ध महापुराण या 'त्रिषष्ठिमहापुरुषगुणालंकार' महाकवि पुष्पदन्त के तीन ज्ञात काव्य-ग्रन्थों में सबसे प्राचीन और विशाल है । इस महाकवि के अन्य दो काव्य हैं। णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ, जो डा० हीरालाल जैन द्वारा संपादित होकर हिन्दी अनुवाद और विस्तृत प्रस्तावना के साथ भारतीय ज्ञानपीठ से पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं। यह महाकाव्य दसवीं शताब्दी की भारतीय संस्कृति का सर्वांगीण प्रतिबिम्बन करने वाला स्वच्छ दर्पण है, इसमें एक ओर जहां राग-चेतना के बन्धनों से जूझते हुए चरितों की अवतारणा है, वहीं उसमें प्रकृति और मानव-स्वभाव के तुलना-चित्र, अनुभूति और कल्पना, धर्म और जीवन तथा काव्य और शास्त्र का सुन्दर समन्वय भी बन पड़ा है। दक्षिण भारत के नगर हैदराबाद के निकट, राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट (मलखेड़) में रहकर, अपभ्रश भाषा में यह महाकाव्य लिखकर पुष्पदन्त ने सिद्ध कर दिया कि कवि की प्रतिभा क्षेत्रीय और भाषागत विवशताए नहीं मानती। उसकी अनुभूति और संवेदना सम्पूर्ण मानवता की अनुभूति और संवेदना है । महापुराण अनेक चरितों की मणिमाला है। और उनमें भी नाभेयचरिउ (ऋषभचरित) उसका सुमेरु । यही कारण है कि इसकी कुल १०२ संधियों में से ३७ संधियों में मात्र नाभेयचरिउ वरिणत है। सम्पूर्ण ग्रन्थ छह भागों में प्रकाशनार्थ नियोजित है। प्रस्तुत भाग १ में नाभेयचरिउ के पूर्वाध का समावेश है। इसका उत्तरार्ध नाभेयचरिउ, भाग २ के रूप में प्रकाशित हुआ है। ग्रन्थ संपादक डा० परशुराम लक्ष्मण वैद्य की अंग्रेजी में प्रस्तावना और टिप्पण तथा डा० देवेन्द्रकुमार जैन द्वारा सरल हिन्दी अनुवाद एवं विस्तृत हिन्दी प्रस्तावना सहित प्रथम बार प्रकाशित ।

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