Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 2
________________ अध्यात्म को भूमिका में अकेला होना बहुत अच्छा है । जीवन-यात्रा के प्रसंग में सहित होने की अनुभूति अत्यन्त उपादेय है । कोई विचार, कोई दृष्टिकोण साथ में हो और ऐसा हो कि वह दिशा दे सके, दिशामोह को निरस्त कर सके और गलत दिशा में उठे चरणों को थाम सके । एक अंकुश, एक लगाम अथवा एक दिशासूचक सूई-साहित्य में यह सब कुछ है । - युवाचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.org

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