Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ प्रस्तुति हो सकता है । जैसे- 'जरूरत है एक अभियान की', 'कर सकता पर करता नहीं' आदि-आदि। उनके प्रवचनों में अन्य भाषाओं के शीर्षक भी हैं - 'वा दशा किण दिन आवसी', 'ब्रेन वाशिंग', 'सा विद्या या विमुक्तये' आदि-आदि । संस्मरण ε यह गद्य की आत्मनिष्ठ विधा है । इसमें संस्मरणकार अपने व्यक्तिगत जीवन तथा सम्पर्क में आए अन्य व्यक्तियों के जीवन के किसी पहलू पर स्मृति के आधार पर प्रकाश डालता है । युवाचार्य श्री ने स्वतन्त्र रूप से कोई संस्मरण सम्बन्धित पुस्तक नहीं लिखी किन्तु अनेक संस्मरणात्मक निबंध लिखे हैं | अपने गुरु से सम्बन्धित अनेक मधुर संस्मरणों की रमणीय अनुभूति वे लेखों में व्यक्त करते रहते । यह संस्मरणात्मक साहित्य प्रकीर्णक रूप में मिलता है तथा संख्या में कम होते हुए भी इतना रोचक है कि पाठक उसकी प्रेरकता और संप्रेषणता से अछूता नहीं रह पाता । इन्टरव्यू / साक्षात्कार इन्टरव्यू महान् और लघु के मध्य ही शोभा देता है । लघु के हृदय की श्रद्धाभावना देखकर महान् में सब कुछ कह देने की भावना जाग जाती है । यह हिंदी गद्य की सर्वथा नवीन विधा है । साहित्य, राजनीति, दर्शन, अध्यात्म तथा विज्ञान आदि किसी भी क्षेत्र की महान् विभूति से मिलकर किन्ही प्रश्नों के संदर्भ में उनके विचार या दृष्टिकोण को व्यक्त करना इन्टरव्यू है । यद्यपि युवाचार्य श्री ने इस विधा में कुछ नहीं लिखा किन्तु उनसे जो इन्टरव्यू लघुविशिष्ट व्यक्तियों ने लिए हैं वे 'महाप्रज्ञ से साक्षात्कार' में संकलित हैं । इन साक्षात्कारों में अनेक विषयों पर विचार-मंथन हुआ है । इस दृष्टि से यह पुस्तक भी अपना विशिष्ट स्थान रखती है । 'संभव है समाधान' पुस्तक किसी एक व्यक्ति द्वारा पूछे गए प्रश्नों के समाधान रूप नहीं है, किन्तु इसमें अनेक प्रसंगों पर अनेक व्यक्तियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर संकलित है । यह भी साक्षात्कार रूप पुस्तक ही है । प्रत्येक प्रश्न का उत्तर युवाचार्य श्री इतना सटीक, संक्षिप्त एवं वेधक देते हैं कि जिज्ञासु को अपना समाधान हस्तगत हो जाता है और वह उस समाधान के आलोक में अपना पथ प्रशस्त कर लेता है । उनके प्रत्येक समाधान वस्तुनिष्ठ न होकर आत्मनिष्ठ अधिक हैं । इसीलिए उन्होंने तर्क, युक्ति और प्रमाण का आश्रय न लेकर स्वयं की प्रज्ञा एवं विवेकपूर्ण चिंतन का अधिक आश्रय लिया है । जीवनी पाश्चात्य विद्वान् लिटन स्ट्रैची ने जीवनी को लेखन कला का सबसे सुकोमल और सहानुभूति पूर्ण स्वरूप कहा है, क्योंकि इसमें लेखक किसी अन्य व्यक्ति का प्रामाणिक एवं वस्तुनिष्ठ जीवनवृत्त प्रस्तुत करता है । युवाचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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