Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण तर्क जाने ज्ञातुमिच्छाम्यतर्क, शब्द जाने ज्ञातुमिच्छाम्यशब्दम् । चिन्त्यं जाने ज्ञातुमिच्छाम्यचिन्त्यं, हस्तालम्बं देव ! देहि प्रशस्तम् ॥ युवाचार्यश्री ने अपने साहित्य में जीवन्त सत्य को उकेरा है, मानवीय संवेदनाओं को जगाया है और युगीन समस्याओं को समाहित करने के लिए अनेकविध उपाय निर्दिष्ट किए हैं । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ आचार्य श्री के हर स्वप्न को साकार करने में अहर्निश तत्पर रहते हैं । आज से ४४ वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ में हिन्दी भाषा में साहित्य लिखना तो दूर, बोलना भी अटपटा सा लगता था । किंतु आचार्य प्रवर ने अपने शिष्यों को प्रेरणा दी । उस प्रेरणा से सर्वप्रथम प्रेरित बने मुनि नथमलजी ( युवाचार्य महाप्रज्ञ ) | आचार्य श्री समय-समय पर अपने शिष्यों को प्रतिबोधित करते हुए कहते हैं - 'आज समाज की चेतना को झकझोरने वाला साहित्य नहीं के बराबर है। इस अभाव को भरा हुआ देखने के लिए अथवा साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में जो शुचिपूर्ण परम्पराएं चली आ रही हैं, उनमें उन्मेषों के नए स्वस्तिक उकेरे हुए देखने के लिए मैं बेचैन हूं । मेरे धर्मसंघ के सुधी साधु-साध्वियां इस दृष्टि से सचेतन प्रयास करें और कुछ नई संभावनाओं को जन्म दें ।' युवाचार्यश्री ने आचार्य श्री की इस भावना के अनुमार साहित्य को एक नई गति दी है । उनका साहित्य-सर्जन केवल वर्तमान को सम्मुख रखकर ही नहीं किया गया है अपितु वह शाश्वत मूल्यों को उद्घाटित करने वाला है । उनके लेखन में समष्टि की विविध भावनाओं की अभिव्यक्ति है तथा सामान्य धरातल से देवत्व की ओर उठने की प्रेरणा है । सामान्यतः आज के साहित्यकार को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्वार्थ प्रभावित करते हैं, किंतु युवाचार्यश्री इन सबसे मुक्त होकर अपने विचार व्यक्त करते हैं, इसलिए एक ओर उन्होंने सामान्य जनमानस की चेतना को उद्बोधित किया है तो दूसरी ओर राजनेताओं और समाज के उच्च वर्ग को भी झकझोरा है । उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक चेतना को अपने अनुभव की आंखों से देखा है इसीलिए उनके साहित्य में बुराई को नष्ट कर नया मानव पैदा करने की वह शक्ति है जो अणु से महान् की ओर प्रस्थान करने का संकेत करती है । उत्कृष्ट साहित्यकार साहित्यकार स्वयंभू होता है । वह युग का निर्माता तथा आनंद का अग्रदूत होता है, क्योंकि सृष्टि में जो विविधता, विचित्रता, अद्भुतता, मनोरमता, व्यवस्थितता और मनमोहकता है उसे साहित्यकार ही अपनी लेखनी और वाणी से अवतरित करता है । साहित्यकार की जो कसौटियां विद्वानों ने निश्चित की हैं उन पर युवाचार्यश्री खरे उतरते हैं । महादेवी के अनुसार जब भावना, ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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