Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 6
________________ कहा जा सकता, किन्तु अनेक शीर्षक विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण विषय की जानकारी देते हैं, अतः जीवनी ग्रन्थों के मुख्य शीर्षकों को भी इसमें संकलित किया है। शेष छोटे-बड़े उपशीर्षकों को छोड़ दिया है । जीवनीग्रंथों में आचार्य श्री से सम्बन्धित तीन पुस्तकें हैं । उन पुस्तकों में जो शीर्षक आपस में मिलते हैं, उनकी पुनरुक्ति नहीं की है । 'महाप्रज्ञ से साक्षात्कार' पुस्तक में विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार निबद्ध हैं। विषय की प्रधानता के आधार पर प्रत्येक साक्षात्कार का शीर्षक दिया है । उन्हें निबंध की संज्ञा नहीं दी जा सकती, किन्तु उनका भी पाठक की सुविधा की दृष्टि से हमने संकलन किया है । इस पुस्तक में तीन खंड हैं । प्रथम खंड में निबंधों और प्रवचनों का संकलन है। दूसरे खंड में गद्य-पद्य काव्य के शीर्षकों का संकलन है। तीसरे खंड में कथा साहित्य का बोध है । महाप्रज्ञ की कथाओं के पांच भाग प्रकाशित हैं, उनके तथा अन्यान्य कथा-ग्रन्यों के शीर्षक इसमें निबद्ध हैं। पुस्तकों के संकेत पूर्ण वाचक बनें इस दृष्टि से उन्हें अधिक संक्षिप्त नहीं किया है। यह इस ग्रंथ कलेवर की आत्म-कहानी है। यह एक संकेत ग्रन्थ है जिसके माध्यम से युवाचार्य श्री के समग्र साहित्य को सरसरी नजर से एक ही स्थान पर देखा जा सकता है। इसी चातुर्मास में इस ग्रंथ की योजना बनी और अल्प समय में यह ग्रंथ तैयार हो गया। इसमें सर्वाधिक श्रम समणी कुसुमप्रज्ञाजी का है। वे आदि से अन्त तक इसकी समायोजना में संलग्न रही हैं। मैं उनके सहयोग को मूल्यवान् मानता हूं। साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी का भी इसमें सराहनीय सहयोग रहा है। एक आशंसा। यदि पाठक इस ग्रंथ के आधार पर युवाचार्यश्री के साहित्य के आलोक में अपना पथ प्रशस्त कर पाएंगे तो वे सत्यं, शिवं, सुन्दरं के सहभागी अवश्य बनेंगे। इत्यलम् । ३०-४.८८ मुनि दुलहराज लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 252