Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 13
________________ महाकवि दौलत राम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व उसमें भी रासो साहित्य की ही प्रधानता है । शानिभद्र मूरि वा "भरतेश्वर बाहुबलि रास" संभवतः इस काव्य विधा की प्रथम रचना है। इसके पाचात "स्थू लिभद्र रास" (संवत् १२०९), "चन्दन बाला रास' (१२५७ सन्) "रेवन्त गिरि रास", "नेमिनाथ रास' जैसे पचासों रास संज्ञक काव्य लिले गये: जिन्होंने जनता में पहुँच कर हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाने में अपना पूरा योग दिया। प्रो० रामचन्द्र शुक्ल एवं डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी के श्रादिकाल का स्वरूप जिस रूप में स्वीकार किया है, उसे संवारने में जैन काय निरंप को। क को इन कवियों ने अपनी समत लखनी से देश के बोरों के प्रति श्रद्धाञ्जलि समापन की तथा दूसरी ओर राजस्थानी कवियों के प्रति वीर रसात्मक काव्य लिखने के लिए अपनी कृतज्ञता प्रकट की। लेकिन अन कवि एक ही धाग से चिपके नहीं है। उन्होंने ऐस कान में भी आध्यात्मिक, भक्ति परक्र, एवं नीति परक काव्य निखकर अपनी जनप्रिय दृष्टि का उदाहरण प्रस्तुत किया । प्रादिकालिक कृतियों में मुनि रामसिह का 'दोहा पाहुड़' एक महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें अध्यात्म, भनि, एवं नीलि के साथ ही तत्कालीन समाज की परम्परामों पर भी प्राक्षेप किये गये हैं। डॉ० हीरालाल जैन के अनुसार यह सन् १००० यो कृति है; जिसमें २२२ दोहे हैं। रामसिंह राजस्थानी कवि थे और अध्यात्म प्रचार एवं समाज सुधार में उनकी गही अभिरुचि थी। योगीन्धु कवि का 'योगसार' एवं 'परमात्म-प्रकाश अध्यात्म माहिम की अनुपम कृतिया हैं । आदिकाल के पश्चात् मध्यकाल में राजधानी विद्वानों की हिन्दी सेवा का क्रम अधिक जोर से चला । उस काल के विद्वानों ने दो नाम दिये है पहला भक्तिकाल और दूसरा रीतिकाल । इस कान में राजस्थान में मीरां, दादगाल, ब्रह्म जिनदास, भट्टारका नाकीन. बुमुदचन्द्र, ज्ञानपा , दौलतराम जैस कत्रि हुए; जिन्होंने हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में सर्वाधिक योग दिया । इन कवियों ने हिन्दी को जन भाषा नाम देकर नथा उसमें संकड़ों कृरिया लिखकर उसे झोंपड़ियों तक पहुंचाने में अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया । हिन्दी में काव्य, चरित, रास, फागु. वलि, नौपई, दोहा गादि के प में सैकड़ों हजारो कृतियों को लिखकर उस लोकप्रिय बनाया । एक ओर भील जंगी सन्त कवयित्री कृष्ण की भक्ति में नल्लीज होग, भक्ति रस ये यात प्रोत एवं गेय सुलभ पदों को रचना करने लगी तो दूसरी ओर जैन कवियों द्वारा अध्यात्म, भक्ति एवं नीति परक रचना लिबर माहित्य की विदेशी को पल्लवित किया। राधाकृष्ण के समान नमि-राजुल के पदों का निर्माण हुना,

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