Book Title: Lokprakash Part_1
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 282
________________ वृत्तादीनि संस्थानानि लोकप्रकाशेतत इत्थं प्ररूपणा // 95 // यथा पूर्वोक्ततः पञ्चाणुकप्रतरवृत्ततः। एकत्रांशे कर्षिते स्यात्, समाशं चतुरस्रक ११पुद्गलस. // 96 // एतान्यतीन्द्रियत्वेन, नैवातिशयवर्जितैः / ज्ञेयान्यतः स्थापनाभिः, प्रदर्श्यन्ते इमास्तु ताः॥९७॥ स्थापना-॥ जघन्यानि किलैतानि, सर्वाण्युत्कर्षतः पुनः। अनन्ताणुखरूपाणि, मध्यमान्यपराणि तु // 98 // // 129 // तथोक्तमुत्तराध्ययननियुक्ती-"परिमंडले य वट्टे, तंसे चउरंस आयए चेव / घणपयरपढमवजं, ओजपएसे य जुम्मे य // 99 // पंचग बारसगं खलु सत्तग बत्तीसगं च वसृमि / तिअ छक्कग पणतीसा चत्तारि य होंति तंसंमि // 10 // नव चेव तहा चउरो सत्तावीसा य अट्ट चउरंसे / तिग दुग पन्नरसेव य छच्चेव य आयए होति // 1 // पणयाला बारसगं तह चेव य आययंमि संठाणे / वीसा चत्तालीसा परिमंडलए य संठाणे // 2 // " पञ्चमानें त्वनित्थंस्थं, षष्ठं संस्थानमीरितम् / पञ्चभ्योऽपि व्यतिरिक्तं, द्वयादिसंयोगसंभवम् // 3 // |संस्थानयोईयोर्यद्यप्येकद्रव्ये न संभवः। तथापि भिन्नभिन्नांशे, ते स्यातां दर्विकादिवत् // 4 // एषु चाल्पाल्पप्रदेशावगाहीनि स्वभावतः। भूयांस्यल्पानि भूयिष्ठखांशस्थायीनि तानि च // 5 // संस्थानमायतं षोढा, द्विविधं परिमण्डलम् / चतुर्विधानि शेषाणि, संस्थानानीति विंशतिः॥६॥भेदाख्यः पुद्गलपरीणामो भवति पञ्चधा / खण्डप्रतरभेदी द्वौ, चूर्णिकाभेद इत्यपि // 7 // भेदोऽनुतटिकाभिख्यो, भेद उत्करिकाभिधः / स्वरू| पमप्यथैतेषां, यथाश्रुतमथोच्यते // 8 // लोहखण्डादिवत्खण्डभेदो भवति निश्चितम् / भूर्जपत्राभ्रपटलादिवत्प्रतरसंज्ञितः॥९॥ स भवेचूर्णिकाभेदः, क्षिप्तमृत्पिण्डवत्किल / इक्षुत्वगादिवदनुतटिकाभेद इष्यते // 10 // // 129 // For Private Personal Use Only Jain Education iminational wjainelibrary.org

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