Book Title: Lok Tattva Nirnaya Ek Samikshatmaka Adhyayan Author(s): Jitendra Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान-१७. 193 पारिभाषिक शब्द छे. तेनो अर्थ मोक्ष प्राप्त करवानी योग्यता धरावता जीवो थाय छे. अर्थात् योग्य जीवोना प्रतिबोध माटे प्रस्तुत ग्रंथनी रचना करूं छु. आवा सीधा-सादा अर्थने अत्यंत तोडमरोड करीने रजू को छे तेथी मूळ वात ज मरी जाय छे. एटलुं ज नहीं परंतु लेखक शुं कहेवा मांगे छे ते पण स्पष्ट थई शकतुं नथी. ग्रंथकार स्वयं आ ग्रंथने नृतत्त्वनिगम कहे छे. नृ अर्थात् मानव अने ते आधारे मनुष्यलोकना तत्त्वनो निगम अर्थात् निर्णय करनार ग्रंथ एटले लोकतत्त्व निर्णय या नृतत्त्वनिगम एम कही शकाय. षड्दर्शन समुच्चय श्लोक १नी तर्करहस्यदीपिका नामनी टीकामां तदुक्तं हरिभद्रसूरिभिरेव लोकतत्त्वनिर्णये । एवा उल्लेखपूर्वक लोकतत्त्वनिर्णयनां बे पद्यो उद्धां छे. एटले मोडामां मोडी विक्रमनी पंदरमी सदीमां तो आ कृति लोकतत्त्वनिर्णय तरीके प्रसिद्धि पामी एम कही शकाय छे. स्वरूप : संस्कृत भाषामां १४७ पद्यमां विविध छंदोमां रचायेली आ कृति, सहु प्रथम प्रकाशित (सने १९०२) आवृत्तिमां त्रण विभागमा विभक्त कराई छे. ए णेय विभागोनां पद्योनी संख्या अनुक्रमे ७५, ३५ अने ३७नी राखी छे. प्रथम विभागमां श्लोक ४२-७५ द्वारा सृष्टिनुं स्वरूप आलेखती वेळा एनी उत्पत्ति विशेनी विविध मान्यताओ रजू कराई छे. ___बीजा विभागमा १-११ श्लोकमां आत्मानुं स्वरूप विचारायुं छे. श्लोक सं. १२-३५मां अजैन दृष्टिए कर्मना सिद्धान्तनुं निरूपण छे. अहीं जेओ स्वभाव, नियति, के परिणामने अघटित महत्त्व आपे छे तेमना विचारो दर्शावाया छे. त्रीजा विभागना श्लो. १-३७मां अजैन मंतव्योर्नु निरसन करवामां आव्यु ____ दार्शनिक क्षेत्रे जीव, जगत अने ईश्वर आ त्रण मुख्य चर्चाना विषयो छे. जीव, जगत, ईश्वरना स्वरूप विशे विभिन्न दर्शनोमां भिन्न-भिन्न मान्यताओ प्रवर्ते छे. आ मान्यताओनी समालोचना प्रस्तुत ग्रंथमा करवामां आवी छे. आ बधी चर्चाओ पूर्व हरिभद्रसूरि वक्ताने । उपदेशकने सभानी परीक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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