Book Title: Lok Tattva Nirnaya Ek Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Jitendra Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229716/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वात्रिंशिका अशा सर्वप्रथम आचाम सम लोकतत्त्वनिर्णय : एक समीक्षात्मक अध्ययन - जितेन्द्र शाह आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित लोकतत्त्वनिर्णय नामनी संस्कृत भाषामय विविध छंदोबद्ध कृतिमा विविध दर्शनसंमत जगतनी उत्पत्ति अने तत्तत् दर्शनसंमत तत्त्वनी चर्चा करवामां आवी छे. आ कृति कदमां लघु होवा छतां महत्त्वपूर्ण छे. तेमां अनेक मतोनी मूळभूत मान्यता अंगे चर्चा करवामां आवी छे. दार्शनिक क्षेत्रे जैन तत्त्वज्ञानीओ अपेक्षा कृत बहु मोडा प्रवेश्या पण एक वार दार्शनिक क्षेत्रे प्रवेश कर्या पछी तो भारतनी अनेक विचारधाराओनुं पूर्वपक्षरूपे निरूपण करवामां आव्युं अने तेनी सक्षम समालोचना पण करी छे. आगमिक युग पछी सर्वप्रथम आचार्य सिद्धसेन दिवाकरसूरिए द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका अने सन्मतितर्क जेवा ग्रंथोमां गंभीर दार्शनिक चिंतन रजू करेल छे. त्यार बाद जिनभद्रगणि, स्वामी समन्तभद्र, मल्लवादी, सिंहसूरि, आदि जैन दार्शनिकोए महत्त्वपूर्ण खेडाण कर्यु छे. ते ज पंरपरामां आ. हरिभद्रसूरि नाम जैन दर्शनमां खूब ज प्रसिद्ध छे. परंफ्सनी मान्यता अनुसार तेमणे कुल १४४४ ग्रंथो रच्या हता. आ ग्रंथोमां तेमणे अनेक दार्शनिक, सैद्धान्तिक मतोनी चर्चा करेली तेथी ज तेमने श्रुतकेवलीनी उपमा पण आपवामां आवी छे. आ. हरिभद्रसूरिए अनेक ग्रंथो रच्या छे. तेमां दार्शनिक क्षेत्रे शास्त्रवार्तासमुच्चय, अनेकान्तजयपताका अने षड्दर्शन समुच्चय विद्वत्जनमा सर्वत्र प्रसिद्ध ग्रंथो छे. ज्यारे धर्मसंग्रहणी, लोकतत्त्वनिर्णय, सर्वज्ञसिद्धि आदि ग्रंथो अल्पज्ञात छे. आ उपरांत तेमणे अनेक आगमो उपर विशाळ टीकाग्रंथो रच्या छे. आगमिक प्रकरण, आचार अने उपदेश-विषयक ग्रंथो रच्या छे. योग उपर तो तेमणे चार महत्त्वपूर्ण ग्रंथो रच्या छे. कथा, ज्योतिष अने स्तुतिविषयक साहित्यनी पण रचना करी छे. आ तमाम कृतिओमां तेमनी सर्वतोमुखी विद्वत्ता झळके छे. तेओ कोई पण विषयनी चर्चा करे छे त्यारे तेनां संपूर्ण पासांओ रजू करी सम्यक् समालोचना तो करे ज छ परंतु तेनो खूब ज सुंदर रीते समन्वय रजू करे छे ते तेमनी पोतानी आगवी शैली छे. आ. हरिभद्रसूरिनां जीवन अने साधना विशे तथा तेमना ग्रंथो विशे Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १७• 191 पं. सुखलाल संघवीए समदर्शी आ. हरिभद्रसूरिमां तथा प्रो. हीरालाल रसिकदास कापडियाए श्रीहरिभद्रसूरि नामक ग्रंथमां विस्तारथी चर्चा करी छे. तेथी ते अंगे अहीं चर्चा करवानुं यळ्युं छे. तथा तेमनो समय विकमनी आठमी सदीना उत्तरार्धनो पं. जिनविजयजीए आ. हरिभद्रसूरि कालनिर्णय ग्रंथमां अनेक प्रमाणो रजू करी निर्धारित कर्यो होवाथी अहीं ते विशे पण चर्चा करी नथी. आ. हरिभद्रसूरिना ग्रंथोनी विशेषता ए छे के तेओ जैन दर्शननी चर्चा करता होय त्यारे पण अनेक अन्य दर्शनकारोनी वातो अने तेमना ग्रंथोनां उद्धरणो रजू करी तेनो निर्णय करे छे. साथे साथे अन्य दर्शनो सानो समन्वय पण करी आपे छे. आधी ज तेमने समदर्शी एवं विशेषण आपवामां आव्युं छे. ग्रंथनाम : अ कृति लोकतत्त्वनिर्णय नामे प्रसिद्धि पामेल छे. परंतु ग्रंथकारे स्वयं आ नाम प्रयोज्युं नथी. तेथी अहीं प्रस्तुत लघुकृतिना नाम विशे चर्चा करवी अस्थाने नहीं गणाय. ग्रंथकार मंगलाचरणमां जणावे छे के : प्रणिपत्यैकमनेकं केवलरूपं जिनोत्तमं भक्त्या 1 भव्यजनबोधनार्थं नृतत्त्वनिगमं प्रवक्ष्यामि 11 अर्थात् एक अद्वितीय, अनंतरूप, केवळज्ञानरूप अने सामान्य केवळीमां उत्तम श्रीवीतराग प्रभुने प्रणाम करी भव्यजनना प्रतिबोध माटे आ नृतत्त्वनिगमने कहीश. अहीं ग्रंथकार प्रस्तुत ग्रंथनुं नाम नृतत्त्वनिगम जणावे छे. ज्यारे प्रचलित नाम लोकतत्त्वनिर्णय छे. १९०२मां जैनधर्म प्रसारक सभा भावनगरथी प्रकाशित थयेल ग्रंथमां प्रस्तुत श्लोकनो अनुवाद करतां तत्त्वनिगमनो अर्थ लोकतत्त्वनिर्णय कर्यो छे. आवो अनुवाद कया आधारे करवामां आव्यो ते एक विचारणीय प्रश्न छे. बीजा एक अनुवादमां जणाव्युं छे के लोकतत्त्वनिगम एटले लोकस्वरूपनो निर्णय कहीश. नॄनो अर्थ मनुष्य थाय परंतु तेनो अर्थ लोक एवो करी लोकतत्त्वनिर्णय नाम प्रयोज्युं छे ते अंगे पं. हीरालाल कापडिया जणावे छे के आ नामांतर पुष्पिकामां — Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७. 192 अपायेलुं छे. आ. हरिभद्रसूरिना उत्तरवर्ती कोई ग्रंथकारे आ कृतिनो नामनिर्देश कर्यो होय तो ते शी रीते कर्यो छे अने ए करनार केटला प्राचीन छे ए बाबतो द्वारा जाणवा मळे के लोकतत्त्वनिर्णय नाम क्यारथी प्रचलित बन्युं. त्यारबाद तेनो निर्णयात्मक उत्तर आपी शकाय. जो पुष्पिका ए ग्रंथकारनी कलमथी उद्भवेली होय तो ग्रंथकारने बने नाम अभिप्रेत हतां एम कहेवाय, वळी लोकतत्त्वनिर्णय एवो शब्दप्रयोग पद्यमां उतारायो न होवाथी नृतत्त्वनिगम नाम प्रयोज्यु होय. जो. एम ज होय तो आ कृतिनुं नाम लोकतत्त्वनिर्णय गणाय. पंडित सुखलाल संघवी अने मो. द. देसाई प्रस्तुत कृतिना लोकतत्त्वनिर्णय नामने ज स्वीकारे छे. ज्यारे पं. हीरालाल कापडिया बने नामोनो उल्लेख करे छे. प्रो. रमेश बेटाई नाम अंगे चर्चा करतां उपरोक्त मंगलाचरणनो अर्थ करतां जणावे छे के-(सामीप्यमां प्रकाशित लेख आ. हरिभद्रसूरि कृत लोकतत्त्व निर्णयमां ग्रंथनाम अंगे जणावे छे के-) "हरिभद्रसूरि मंगल श्लोकमां जिनश्रेष्ठ महावीरने वंदन करे छे. मानवोना जीवनना तात्त्विक रहस्यने निर्णीत करवा माटे हुं शास्त्र स्जू करूं छु के जेथी सौ मानवो भविष्यमां (तेना सत्य) बाबत जाग्रत रहे. मंगल रूपे जिन श्रेष्ठने वंदन करतां तेमने जिनश्रेष्ठ, एक छतां अनेक अने कैवल्य स्वरूप तरीके ओळखावे छे अने स्पष्टता करे छे. तेनी अहीं अपेक्षा ए छे के ए बाबत जगतना लोको जाग्रत थाय अने ते मानवजीवनना मूलभूत तत्त्वनो साचो बोध पामे तेमणे आ शास्त्र ते माटे ज रच्यु छे. जिन श्रेष्ठ प्रत्येनी भक्तिथी ज, तेमनी कृपा जीतीने ज मानवो आ जीवननु, सृष्टिर्नु रहस्य पामी शके. विषयनी आ रीते रजूआत करीने हरिभद्रसूरि शीर्षकनी स्पष्टता करी दे छे." लेखक महोदय ग्रंथनामनी स्पष्टता करतां मंगलाचरणनु उपरोक्त विवेचन करे छे ते तेमनी स्वकल्पना बळे ज करता होय तेम जणाय छे. भव्यजन बोधनार्थं नृतत्त्वनिगमं प्रवक्ष्यामि ।। नो अर्थ मानवोना जीवनना तत्त्वरहस्यने निर्णीत करवा माटे हुं शास्त्र रजू करुं छु के जेथी सौ मानवो भविष्यमां (तेना सत्य) बाबत जाग्रत रहे. आवो अर्थ को छे तेनो कयो आधार ? ते तो लेखक महोदय स्वयं ज जाणे. भव्यजन ए जैन दर्शननो Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७. 193 पारिभाषिक शब्द छे. तेनो अर्थ मोक्ष प्राप्त करवानी योग्यता धरावता जीवो थाय छे. अर्थात् योग्य जीवोना प्रतिबोध माटे प्रस्तुत ग्रंथनी रचना करूं छु. आवा सीधा-सादा अर्थने अत्यंत तोडमरोड करीने रजू को छे तेथी मूळ वात ज मरी जाय छे. एटलुं ज नहीं परंतु लेखक शुं कहेवा मांगे छे ते पण स्पष्ट थई शकतुं नथी. ग्रंथकार स्वयं आ ग्रंथने नृतत्त्वनिगम कहे छे. नृ अर्थात् मानव अने ते आधारे मनुष्यलोकना तत्त्वनो निगम अर्थात् निर्णय करनार ग्रंथ एटले लोकतत्त्व निर्णय या नृतत्त्वनिगम एम कही शकाय. षड्दर्शन समुच्चय श्लोक १नी तर्करहस्यदीपिका नामनी टीकामां तदुक्तं हरिभद्रसूरिभिरेव लोकतत्त्वनिर्णये । एवा उल्लेखपूर्वक लोकतत्त्वनिर्णयनां बे पद्यो उद्धां छे. एटले मोडामां मोडी विक्रमनी पंदरमी सदीमां तो आ कृति लोकतत्त्वनिर्णय तरीके प्रसिद्धि पामी एम कही शकाय छे. स्वरूप : संस्कृत भाषामां १४७ पद्यमां विविध छंदोमां रचायेली आ कृति, सहु प्रथम प्रकाशित (सने १९०२) आवृत्तिमां त्रण विभागमा विभक्त कराई छे. ए णेय विभागोनां पद्योनी संख्या अनुक्रमे ७५, ३५ अने ३७नी राखी छे. प्रथम विभागमां श्लोक ४२-७५ द्वारा सृष्टिनुं स्वरूप आलेखती वेळा एनी उत्पत्ति विशेनी विविध मान्यताओ रजू कराई छे. ___बीजा विभागमा १-११ श्लोकमां आत्मानुं स्वरूप विचारायुं छे. श्लोक सं. १२-३५मां अजैन दृष्टिए कर्मना सिद्धान्तनुं निरूपण छे. अहीं जेओ स्वभाव, नियति, के परिणामने अघटित महत्त्व आपे छे तेमना विचारो दर्शावाया छे. त्रीजा विभागना श्लो. १-३७मां अजैन मंतव्योर्नु निरसन करवामां आव्यु ____ दार्शनिक क्षेत्रे जीव, जगत अने ईश्वर आ त्रण मुख्य चर्चाना विषयो छे. जीव, जगत, ईश्वरना स्वरूप विशे विभिन्न दर्शनोमां भिन्न-भिन्न मान्यताओ प्रवर्ते छे. आ मान्यताओनी समालोचना प्रस्तुत ग्रंथमा करवामां आवी छे. आ बधी चर्चाओ पूर्व हरिभद्रसूरि वक्ताने । उपदेशकने सभानी परीक्षा Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ अनुसंधान-१७ • 194 करवानी सलाह आपे छे. तेओ जणावे छे के भव्याभव्य-विचारो न हि युक्तोऽनुग्रह-प्रवृत्तानाम् । कामं तथा पि पूर्व परीक्षितल्या बुधैः परिषद् ॥ उपकार करवा माटे प्रवृत्त थयेल महात्माओए श्रोता योग्य छे के अयोग्य छे तेवो विचार करवो उचित नथी छतां बुद्धिमान पुरुषोए पहेला सभानी परीक्षा सारी रीते करवी जोईए. आ नानकडी कृतिना केटलाक श्लोक भगवद्गीतामांथी उद्धृत करवामां आव्या छे. श्लोक अ. श्लोक १३-०१ १५-०१ १५-१६ ०५-१४ ०२-२३ ०२-२४ ०६-०५ प्र. श्लोक ७०-७१ सांख्यकारिकामांथी (श्लो. २२, ३) उद्धृत करवामां आव्या छे. बीजा विभागनो प्रारंभिक भाग श्वेताश्वतर उपनिषद् साथे (आ. ३. १५) साथे यस्मात् परं (३.९) साथे साम्य धरावे छे. तदेजति तन्नजति तद् दूरे तदु अन्तिके । तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥ पद्य ईशावास्य उपनिषद् (श्लो.५)मांथी लेवामां आवेल छे. बीजा भागनो एतावानेव लोकोऽयं थी शरू थतो ३३मो श्लोक षड्दर्शन समुच्चयनो ८१मो श्लोक छे. ग्रंथना बाह्य स्वरूप संबंधी उक्त चर्चा बाद हवे ग्रंथना आंतरिक स्वरूप Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १७• 195 संबंधी चर्चा करीशुं. ग्रंथकारे आदिमां मंगलाचरण कर्या बाद तरत ज श्रोतानी योग्यता अंगे चर्चा करी छे, आनो सीधो संबंध अधिकारी साथे छे. तेओ श्री जणावे छे के उपकार करवाने तत्पर महात्माओए भव्य - अभव्यनो विचार करवो योग्य नथी छतां सभानी परीक्षा करवी आवश्यक छे. केम के अयोग्य श्रोताने उपदेश आपवो एटले जळने वलोववुं बहेराने उपदेश आपवो अने अंध समक्ष नाटक भजववा जेवुं छे. तेथी ज जेओ व्रज जेवा कठण हृदयवाळा होय, चालणीनी पेठे हंमेशा खाली थई जता हृदयवाळा होय, पाडानी माफक उपदेशने डहोळी नाखनार होय, गळणीनी माफक मात्र दोषग्राही होय तेवा श्रोताने उपदेश न आपवो. परंतु योग्य श्रोताने उपदेश आपवो. अयोग्य श्रोताने उपदेश आपवो ते आचार्यनी ज अज्ञानता गणाय, माटे श्रोतानी परीक्षा बाद ए उचित उपदेश आपवो ज कुशळ वक्तानुं कर्तव्य छे. नंदीसूत्रमां श्रोता - वक्तना प्रकारो माटे आवा प्रकारनी ज वात जणाववामां आवी छे. २ पक्षपात रहित उपदेश आपवो ज वक्तानुं कर्तव्य : श्रोतानी परीक्षा कर्या बाद योग्य श्रोताओने वक्ताए आग्रह के दुराग्रह रहित उपदेश आपवो जोईए. पक्षपात छोडीने युक्तियुक्त वचनो द्वारा ज आत्महित करनारी वातो जणाववी जोईए. ते माटे तेमणे बे सुंदर श्लोक रजू कर्या छे. ܕ आगमेन च युक्त्या च योऽर्थः समभिगम्यते परीक्ष्य हेमवद् ग्राह्यः, पक्षपाताग्रहेण किम् ॥ आगमने आधारे अने युक्तिने आधारे जे अर्थ समजाय ते अर्थ जेवी रीते सोनानी परीक्षा कराय छे तेवी परीक्षा करी ग्रहण करवो. तेमां पक्षपात शा माटे करवो ? ते उपरांत जणावे छे के : प्रत्यक्षतो न भगवानृषभो नं विष्णुरालोक्यते, न च हरो न हिरण्यगर्भः । तेषां स्वरूपगुणमागमसम्प्र भावात्, ज्ञात्वा विचारयत कोऽत्र परापवादः ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७• 196 अत्यारे तो साक्षात् ऋषभदेव, विष्णु, महादेव के ब्रह्मा देखाता नथी. मात्र तेमनां स्वरूप अने गुण- वर्णन ते ते शास्त्रोमां वर्णववामां आव्यु छे. ते जाणी तेमां देवत्वनो विचार करवो जोईए. तेमां निंदानो आश्रय शा माटे लेवो ? आम आचार्यश्री पक्षपात रहित थई युक्तियुक्त विचारणा करवानुं जणावे छे. अने तेवी विचारणाने अंते जे निष्पन्न थाय ते ग्रहण करवू जोईए. आम तेमणे दार्शनिक क्षेत्रे समदर्शी बनवा अने अन्यना विचाराने जाणवा समजवान आह्वान आप्युं छे. पोताना दर्शनसम्मत विचारोने सत्य मानी वळगी न रहेतां तेनी पण विचारणा करी पछी ज स्वीकार करखो जोईए. देवसंबंधी विभिन्न विचारधाराओ : दार्शनिक क्षेत्रे चर्चाना मुख्य विषयो जीव, जगत अने ईश्वर छे. जीव, जगत अने ईश्वर एक छे के अनेक, नित्य छे के अनित्य ? जेवा अनेक प्रश्नो उपस्थित करवामां आव्या छे. तेमांथी विभिन्न विचारधाराओ उद्भवी छे. आ. हरिभद्रसूरिए अहीं तेमना समय सुधीनी अनेक विचारधाराओनो उल्लेख कर्यो छे. सम्यक् विचारणा करवी जोईए एम जणाव्या पछी ते दर्शन सम्मत देवोनी मान्यता अंगे खूब ज संक्षेपमा उल्लेख कर्यो छे. देवतत्त्व- स्वरूप दयाळु, कृपाळु, संरक्षक जेवा दिव्यगुणो युक्त छे. ते देवतत्त्वमां भयंकरता, संहारकता, निर्दयता, क्रूरता केम घटी शके ? जो आवां भयंकर तत्त्वो तेमां होय तो तेने देव केम कही शकाय ? ते ज वातने अहीं ग्रंथकारे जणावी छे. विष्णु, महादेव, शक्रादि देवो, बलभद्र, कार्तिकस्वामी, अंबिकादेवी, गणपति, सूर्य, अग्नि, चंद्र, आदि देवोनुं स्वरूप ज रागयुक्त के द्वेषयुक्त जणाय छे तो तेमने देव केम कही शकाय ? जेनामां रागरहितता, दोष-विरहितता, सर्वज्ञत्व, समभाव आदि गुणो होय ते ज साचा देव छे. देवनुं स्वरूप जणावतां कहे छे के जेओ हमेशा प्राणीओनुं कल्याण इच्छनार छे, जेओ निरंतर उपकार करनार छे, घणी बधी व्याधिओ अने पीडाओथी व्यास आ जगतने सुखी करवानी एक मात्र कामनावाळा छे, ज्ञेय पदार्थने साक्षात् जोई शके छे, जे यथार्थवादी होय तेने ज देव मानवा जोईए. आम देवनी व्याख्या करी आवा गुणो Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७ • 197 धरावनार कोईपण होय ते अमारा माटे देव छे तेम जणाव्युं छे. आ ज वातने तेमणे नीचेना बे श्लोक द्वारा रजू करी छे. पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ मने महावीर स्वामी प्रत्ये पक्षपात नथी के कपिलादि प्रत्ये द्वेषभाव नथी परंतु जेनुं वचन मने युक्तिवाळु लागे छे ते देवोनो मारे स्वीकार करवो योग्य जणाय छे. तथा यस्य निखिलाश्च दोषा, न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥" जे देवोमां सर्व दोषोनो अभाव होय, अने सर्व सद्गुणो होय तेवा देव पछी ते ब्रह्मा होय, विष्णु होय, महेश्वर होय के जिन अरिहंत होय तेने मारा नमस्कार हो. आम देव माटे उक्त गुणोनी आवश्यकता दर्शावी देवतत्त्व संबंधी प्रकरण समाप्त कर्यु छे. जगत संबंधी विविध मान्यता : दार्शनिक क्षेत्रे बीजो महत्त्वनो प्रश्न जगतना स्वरूप संबंधी छे, जगत केतुं छे ? सादि छे ? सांत छ ? नित्य छे ? अनित्य छे ? कृत्रिम छे ? के अकृत्रिम छे ? जेवा अनेक प्रश्नोमांथी अनेक अनेक विचारधाराओ उद्भवी छे. ते विचारधाराओनो उल्लेख करी आ. हरिभद्रसूरि तेमनी समभावयुक्त दृष्टिनी परीक्षा करे छे. पौराणिक मतो अने दार्शनिक मतोनो अहीं संग्रह करवामां आव्यो छे. सृष्टिवादी जगतने कृत्रिम माने छे. माहेश्वरादि मतवाळा समस्त जगतने सादिसांत माने छे. ईश्वरवादीओ जगतने ईश्वरकृत माने छे. पौराणिकमत माननाराओ जगतने चंद्र अने अग्निथी निष्पन्न थयेलुं माने छे. वैशेषिक द्रव्यादि छ भेदवाळु माने छे. केटलाक काश्यपोत्पन्न, केटलाक ब्रह्मा, विष्णु अने महादेव कृत, केटलाक मनुष्य द्वारा निर्मित, केटलाक काळथी उत्पन्न, सांख्य मतावलंबीओ प्रकृति अने पुरुषोमांथी बनेल, बौद्ध मतावलंबीओ शून्यमांथी उद्भवेल माने छे तो केटलाक बौद्धो आ जगतने विज्ञानमात्र माने छे. केटलाक आत्मामांथी बनेल, दैवना प्रभावथी उत्पन्न, Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७ • 198 पंचभूतना विकारवाळू अने केटलाक तो आ जगतने आकस्मिक उत्पन्न माने छे. आम जगतनी उत्पत्ति अंगे अनेक विचारो प्रवर्ते छे. ___आचार्य हरिभद्रसूरि उपरोक्त तमाम सिद्धांतोनी समीक्षा करतां जणावे छे के सहु प्रथम तो ए विचार करवो जोईए के आ जगतनी उत्पत्ति सत्मांथी थई छे के असत्मांथी ? सत्मांथी थयेल मानवामां आवे तो तर्क-बाध आवशे, केम के सत् तो त्रणेय काळमां समान रूपे अस्तित्व धरावे छे. तो तेमाथी उत्पत्ति केम संभवे ? असत्मांथी सत्नी उत्पत्ति तो संभवे ज नहीं. माटे जगतना बधा ज पदार्थो सदा काळ होय ज छे. तेना माटे निर्माताने मानवानी जरूर नथी. मात्र अपेक्षाए उत्पत्ति के विनाश थतो होय छे. सर्वथा उत्पन्न के नाश संभवे नहीं. माटे ज पदार्थने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त मानवो जोईए. ईश्वरवादीओना मतनी आलोचना करतां जणावे छे के आ जगतनी उत्पत्ति कोई कर्ताने आधीन छे तो ते कर्ताए अर्थात् ईश्वरे जगतनुं निर्माण कर्यु छे तो ईश्वरने कोणे बनाव्या ? जो एम कहेवामां आवे के ईश्वर कर्ता विना पण होई शके तो पछी जगत पण ईश्वर वगर केम न होई शके ? आ उपरांत कृपाळु ईश्वरे आवा दुःखी जगतनुं निर्माण शा माटे कर्यु ? वगैरे अनेक तर्क द्वारा ईश्वरकर्तृत्ववाद- खंडन करी जगतना सहज अस्तित्वनी सिद्धि करी छे. तेमज अन्य मतोनुं निराकरण पण संक्षेपमा करवामां आव्युं छे. त्यारबाद आत्मतत्त्व अने कर्मतत्त्वनी चर्चा करवामां आवी छे. जेवी रोते ईश्वर, जगत संबंधी विविध मान्यता प्रवर्ते छे तेवी ज रीते आत्मतत्त्व विशे विभिन्न मान्यता प्रचलित छे. तेमांथी जीवनुं शाश्वतपणुं सिद्ध करी संसारचकनी अविरत गतिनी परंपरामां जीव स्वयं पोताना कर्मने कारणे सुख के दुःख पामे छे अने सर्व कर्मनो क्षय करी अंते मोक्षगति प्राप्त करे छे. तेम जणावी ग्रंथ समाप्त कर्यो छे. __आ लघु ग्रंथमां दर्शनशास्त्रना मुख्य चर्चाना विषय जीव, जगत, ईश्वर अने कर्म उपर विचार करवामां आव्यो छे. पूर्वपक्ष रूपे अनेक दर्शनोनी मान्यताओ मूकवामां आवी छे. तेनुं युक्तियुक्त रीते खंडन करी जैनसम्मत Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१७. 199 मान्यताओतुं मंडन करवामां आव्युं छे. पूर्वपक्ष रूपे प्ररूपवामां आवेली अनेक मान्यताओ आजे तो नामशेष थई गई छे. तेथी ऐतिहासिक दृष्टिए अध्ययन करवा माटे प्रस्तुत ग्रंथ अत्यंत उपयोगी नीवडे तेवो छे. आ. हरिभद्रसूरिए वैचारिक समदर्शिता दर्शाववा अनेक सुंदर पद्यो प्रयोज्यां छे, ते आ ग्रंथनी मोटी विशेषता छे. संदर्भ 5. लो. त. नि. श्लो. 3-4. नंदी. सूत्र. लो. त. नि. श्लोक 18. एजन. एजन, श्लो. 23-31. एजन, श्लो. 38. एजन, श्लो. 40. एजन, श्लो. 41-75.