Book Title: Lok Tattva Nirnaya Ek Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Jitendra Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ अनुसंधान-१७. 192 अपायेलुं छे. आ. हरिभद्रसूरिना उत्तरवर्ती कोई ग्रंथकारे आ कृतिनो नामनिर्देश कर्यो होय तो ते शी रीते कर्यो छे अने ए करनार केटला प्राचीन छे ए बाबतो द्वारा जाणवा मळे के लोकतत्त्वनिर्णय नाम क्यारथी प्रचलित बन्युं. त्यारबाद तेनो निर्णयात्मक उत्तर आपी शकाय. जो पुष्पिका ए ग्रंथकारनी कलमथी उद्भवेली होय तो ग्रंथकारने बने नाम अभिप्रेत हतां एम कहेवाय, वळी लोकतत्त्वनिर्णय एवो शब्दप्रयोग पद्यमां उतारायो न होवाथी नृतत्त्वनिगम नाम प्रयोज्यु होय. जो. एम ज होय तो आ कृतिनुं नाम लोकतत्त्वनिर्णय गणाय. पंडित सुखलाल संघवी अने मो. द. देसाई प्रस्तुत कृतिना लोकतत्त्वनिर्णय नामने ज स्वीकारे छे. ज्यारे पं. हीरालाल कापडिया बने नामोनो उल्लेख करे छे. प्रो. रमेश बेटाई नाम अंगे चर्चा करतां उपरोक्त मंगलाचरणनो अर्थ करतां जणावे छे के-(सामीप्यमां प्रकाशित लेख आ. हरिभद्रसूरि कृत लोकतत्त्व निर्णयमां ग्रंथनाम अंगे जणावे छे के-) "हरिभद्रसूरि मंगल श्लोकमां जिनश्रेष्ठ महावीरने वंदन करे छे. मानवोना जीवनना तात्त्विक रहस्यने निर्णीत करवा माटे हुं शास्त्र स्जू करूं छु के जेथी सौ मानवो भविष्यमां (तेना सत्य) बाबत जाग्रत रहे. मंगल रूपे जिन श्रेष्ठने वंदन करतां तेमने जिनश्रेष्ठ, एक छतां अनेक अने कैवल्य स्वरूप तरीके ओळखावे छे अने स्पष्टता करे छे. तेनी अहीं अपेक्षा ए छे के ए बाबत जगतना लोको जाग्रत थाय अने ते मानवजीवनना मूलभूत तत्त्वनो साचो बोध पामे तेमणे आ शास्त्र ते माटे ज रच्यु छे. जिन श्रेष्ठ प्रत्येनी भक्तिथी ज, तेमनी कृपा जीतीने ज मानवो आ जीवननु, सृष्टिर्नु रहस्य पामी शके. विषयनी आ रीते रजूआत करीने हरिभद्रसूरि शीर्षकनी स्पष्टता करी दे छे." लेखक महोदय ग्रंथनामनी स्पष्टता करतां मंगलाचरणनु उपरोक्त विवेचन करे छे ते तेमनी स्वकल्पना बळे ज करता होय तेम जणाय छे. भव्यजन बोधनार्थं नृतत्त्वनिगमं प्रवक्ष्यामि ।। नो अर्थ मानवोना जीवनना तत्त्वरहस्यने निर्णीत करवा माटे हुं शास्त्र रजू करुं छु के जेथी सौ मानवो भविष्यमां (तेना सत्य) बाबत जाग्रत रहे. आवो अर्थ को छे तेनो कयो आधार ? ते तो लेखक महोदय स्वयं ज जाणे. भव्यजन ए जैन दर्शननो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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