Book Title: Lok Tattva Nirnaya Ek Samikshatmaka Adhyayan Author(s): Jitendra Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ अनुसंधान-१७ • 198 पंचभूतना विकारवाळू अने केटलाक तो आ जगतने आकस्मिक उत्पन्न माने छे. आम जगतनी उत्पत्ति अंगे अनेक विचारो प्रवर्ते छे. ___आचार्य हरिभद्रसूरि उपरोक्त तमाम सिद्धांतोनी समीक्षा करतां जणावे छे के सहु प्रथम तो ए विचार करवो जोईए के आ जगतनी उत्पत्ति सत्मांथी थई छे के असत्मांथी ? सत्मांथी थयेल मानवामां आवे तो तर्क-बाध आवशे, केम के सत् तो त्रणेय काळमां समान रूपे अस्तित्व धरावे छे. तो तेमाथी उत्पत्ति केम संभवे ? असत्मांथी सत्नी उत्पत्ति तो संभवे ज नहीं. माटे जगतना बधा ज पदार्थो सदा काळ होय ज छे. तेना माटे निर्माताने मानवानी जरूर नथी. मात्र अपेक्षाए उत्पत्ति के विनाश थतो होय छे. सर्वथा उत्पन्न के नाश संभवे नहीं. माटे ज पदार्थने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त मानवो जोईए. ईश्वरवादीओना मतनी आलोचना करतां जणावे छे के आ जगतनी उत्पत्ति कोई कर्ताने आधीन छे तो ते कर्ताए अर्थात् ईश्वरे जगतनुं निर्माण कर्यु छे तो ईश्वरने कोणे बनाव्या ? जो एम कहेवामां आवे के ईश्वर कर्ता विना पण होई शके तो पछी जगत पण ईश्वर वगर केम न होई शके ? आ उपरांत कृपाळु ईश्वरे आवा दुःखी जगतनुं निर्माण शा माटे कर्यु ? वगैरे अनेक तर्क द्वारा ईश्वरकर्तृत्ववाद- खंडन करी जगतना सहज अस्तित्वनी सिद्धि करी छे. तेमज अन्य मतोनुं निराकरण पण संक्षेपमा करवामां आव्युं छे. त्यारबाद आत्मतत्त्व अने कर्मतत्त्वनी चर्चा करवामां आवी छे. जेवी रोते ईश्वर, जगत संबंधी विविध मान्यता प्रवर्ते छे तेवी ज रीते आत्मतत्त्व विशे विभिन्न मान्यता प्रचलित छे. तेमांथी जीवनुं शाश्वतपणुं सिद्ध करी संसारचकनी अविरत गतिनी परंपरामां जीव स्वयं पोताना कर्मने कारणे सुख के दुःख पामे छे अने सर्व कर्मनो क्षय करी अंते मोक्षगति प्राप्त करे छे. तेम जणावी ग्रंथ समाप्त कर्यो छे. __आ लघु ग्रंथमां दर्शनशास्त्रना मुख्य चर्चाना विषय जीव, जगत, ईश्वर अने कर्म उपर विचार करवामां आव्यो छे. पूर्वपक्ष रूपे अनेक दर्शनोनी मान्यताओ मूकवामां आवी छे. तेनुं युक्तियुक्त रीते खंडन करी जैनसम्मत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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