Book Title: Lok Madhyam Jan Shikshan aur Chunotiya
Author(s): Kiran Sipani
Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Granth_012030.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ रहता है। उचित देख-रेख की कमी के कारण न तो शिक्षक और पड़ोस और समाज से काट कर। शुरु से ही उसे एक संकीर्ण घेरे न ही विद्यार्थी पुस्तकालयों का लाभ उठा पाते हैं। में कैद होने का अभ्यास डाल दिया जाता है। थोड़े बड़े होने पर आज़ादी के बाद शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या शिक्षा के बच्चे को होस्टल में भेज कर हम विशिष्ट बना देना चाहते हैं। माध्यम की है। माध्यम का प्रश्न जटिल से जटिलतर होता जा रहा। होस्टली या स्कूली शिक्षा के पश्चात् उच्चतर-शिक्षा के लिये विदेश है। भारतीय भाषाएँ अभिशप्त हैं। अंग्रेजी ने उनके अधिकार छीन यात्रा की योजनाओं में हम तन-मन-धन समर्पित करने के लिये लिये हैं। हिन्दी, मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा की बातें ___ आकुल-व्याकुल रहते हैं। इस पूरी व्यवस्था में क्या महत्व है पिछड़ेपन की निशानी है। उनके माध्यम से चलने वाले विद्यालय या भावनात्मक परिवेश का! कितना सटीक कहा था प्रसाद ने :तो बंद होते जा रहे हैं अथवा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए उन्हें “किन्तु है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निश्शेष, अंग्रेजी माध्यम की वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी है। भारतीय छूट कर पीछे गया है रह हृदय का देश।" भाषाओं के माध्यम से शिक्षित हाशिये पर डाल दिये गये हैं। इन इस तंत्र में संस्कारों का कोई स्थान नहीं। इस खतरे को भाषाओं के विद्वानों का गंभीर चिंतन अपने ही देश में दो कौड़ी का महसुसते हुए बच्चों को संस्कारित करने के लिये संस्कार-शिविर साबित हो रहा है, उसका बाजार में कोई मूल्य नहीं। वे शिक्षक ही आयोजित किये जा रहे हैं। इनके महत् उद्देश्य में कोई संदेह नहीं विद्वान समझे जाते हैं जो पग-पग पर अंग्रेजी के उदाहरण देकर है, परन्तु वर्तमान परिवेश में ये मात्र घटना बन कर रह जाते हैं, अपनी धाक जमाते हैं। अंग्रेजी आधुनिकता और प्रतिष्ठा के साथ जीवन में उतर नहीं पाते। पारम्परिक उत्सव और त्योहार हमें जुड़ गयी है। अंग्रेजीदाँ ही नौकरियों के लिये चुने जाते हैं, देशज शिक्षित नहीं कर पा रहे हैं, महज कर्मकाण्ड बनकर रह गये हैं। चरित्रों की कोई कद्र नहीं। इस देशज पीड़ा को निदा फाजली ने दीपावली के ठीक बाद वाले दिन परीक्षा में बैठनेवाला विद्यार्थी क्या बखूबी व्यक्त किया है : तन-मन से त्योहार को जी पाता है? टी०वी० पर त्योहार मना कर "पहले हर चीज थी अपनी मगर अब लगता है, बच्चों को संस्कारित नहीं किया जा सकता। त्योहारों के अनुकूल अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।" परिवेश का निर्माण होना चाहिये। स्कूल-कॉलेजों की छुट्टियाँ हमारे देश के अतिरिक्त किसी भी स्वाधीन देश का बच्चा भारतीय जीवनशैली को दृष्टिगत रखकर तैयार की जानी चाहिये। विदेशी भाषा या अंग्रेजी भाषा से शिक्षारंभ नहीं करता। जापान जैसा देश के महत्वपूर्ण मुद्दों में शिक्षा को सम्मिलित नहीं किया उन्नत देश भी अपनी भाषा के माध्यम से चरम ऊँचाइयों का स्पर्श जाता। सकल राष्ट्रीय आय का बहुत छोटा सा प्रतिशत (छ: कर पाया है। हमारे देश के उच्चतम शिक्षण संस्थान अंग्रेजी माध्यम प्रतिशत) शिक्षा पर खर्च किया जाता है। अपने दायित्व से मुक्त से अपने विद्यार्थियों को विश्वोन्मुख बनाने में मगन हैं क्योंकि अंग्रेजी होकर सरकार निजी शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहन दे रही है। परन्तु के बिना विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारे राष्ट्रीय परिवार की आय में बढ़ोतरी करनेवाले बच्चे को विद्यालय भेज नेताओं ने खुली सम्पूर्ण बहस से हमेशा बचने का प्रयास किया। वोट पाना एक दुष्कर कार्य है। यदि माँ-बाप भेज भी पाये तो छोटे से हिन्दी और प्रांतीय भाषाओं में माँगे और राज्य अंग्रेजी में किया। कमरे में ढूंसे गये पचास-साठ बच्चों को छ:-सात सौ के वेतन पर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग अंग्रेजी के माध्यम से लोकतंत्र की लड़ाई नियुक्त शिक्षक/शिक्षिका के हवाले कर देना कितना अमानवीय है। लड़ना चाहता है। लोकतंत्र की लड़ाई लोकभाषा के बिना संभव नहीं भौतिक-शैक्षणिक-मानवीय साधनों के अभाव में ऐसी योजनाएँ है। वर्तमान शासन व्यवस्था की भाषा अंग्रेजी है और राष्ट्रभाषा हिन्दी दिवा-स्वप्न बन कर रह जाती हैं। ग्रामीण जीवन के प्रति गहरी इस व्यवस्था से बाहर है। इस व्यवस्था के टूटे बिना हिन्दी एवं कोई समझ के बिना शिक्षा के गन्तव्य को पाया नहीं जा सकता। सन् भी प्रादेशिक भाषा सिर उठाकर जी नहीं सकती। भारतीय भाषाओं २००१ को नारी सशक्तिकरण वर्ष की संज्ञा दी गयी। रिपोर्टों के से कटना अपने परिवेश से कटना है, सामाजिक रिश्तों की गरमाहट आधार पर ६ से १४ वर्ष के बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा के का ठंडे होते जाना है। तहत ३८.५२ प्रतिशत लड़कियाँ ही पाँचवीं कक्षा से ऊपर शिक्षित स्वतंत्र भारत की स्वतन्त्र शिक्षा नीति विकसित नहीं हुई। वह हैं। इस प्रतिशत में कमी का कारण है- लड़कियों पर अतिरिक्त मैकाले के पदचिह्नों का अनुसरण करती हुई नौकरी तक सीमित काम का बोझ एवं समय की कमी। ग्रामीण अभिभावक भयभीत हैं। रही. जीवन से दूर होती गयी। दो-अढाई वर्ष का बच्चा नर्सरी और उनका दृढ़ विश्वास है कि स्कूली लड़कियों पर होनेवाले यौन हमलों केजी शिक्षा-व्यवस्था में भेज दिया जाता है - अपने घर, आस- के विरुद्ध सरकार की ओर से सशक्त कदम नहीं उठाये जाते। विद्वत खण्ड/३४ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7