Book Title: Lok Madhyam Jan Shikshan aur Chunotiya
Author(s): Kiran Sipani
Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Granth_012030.pdf

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Page 5
________________ इन माध्यमों को फैशन की तरह देख लेने की कल्पना बढ़ चली हो परन्तु ग्रामीण या पारम्परिक लोक माध्यम अपने मूल में नई परम्पराओं के जन्मदाता और नये माध्यमों के बीच भी रहे हैं। इस प्रकार देखा जाय तो आज पारम्परिक लोक माध्यम कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। यह भी सोचा जा सकता है कि कई माध्यम तो अर्थहीन या नकारा करार दिये गये हैं। इसी कारण जहां लोक कलाकारों का अभाव होता जा रहा है वहीं लोगों का अथवा पूरे समुदाय का भी रवैया दृष्टिकोण बदलता जा रहा है। - पारम्परिक लोकमाध्यम आज के दौर में जिन चुनौतियों से लोहा ले रहे हैं अथवा जिन चुनौतियों से हार मान रहे हैं, वे तीन विचारों पर निर्भर है १) बदलाव अ) तकनीक के स्तर पर ब) जीवन स्तर पर २) पलायन - अ) कलाकारों की पराङ्मुखता ब) दर्शक या श्रोता समुदाय का दिशा हीन होना ३) दिखावा क) आयोजन के नाम पर ब) सामुदायिक सोच के स्तर पर इस प्रकार देखा जाये तो आज पारम्परिक लोक माध्यम सीमित या स्थगित होते जा रहे हैं जबकि इनका विकास और कालक्रम बहुत लम्बा नजर आता है। यह जान पड़ता है कि ये माध्यम सैकड़ों और हजारों वर्षों के कालक्रम में जो अपना स्वरूप तय कर पाये, वह आधुनिक संचार क्रांति के आते ही विगत चार पांच दशकों में बौने और वामनाकार होते होते अंडाकार होते चले जा रहे हैं। यदि विस्तार से इनके समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर नजर डालें तो मुख्य चुनौतियां निम्न जान पड़ती हैंइलेक्ट्रॉनिक क्रांति बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध विद्युत क्रांति के बाद इलेक्ट्रॉनिक क्रांति का रहा और इस दौर में सर्वाधिक विकसित रूप संचार माध्यमों का सामने आया। इस दौर में जहां अति यांत्रिकता बढ़ी वहीं श्रव्य और दृश्य माध्यम भी नवीन रूप और और तड़कभड़क लेकर सामने आये। नब्बे के दशक में संचार माध्यमों का जो स्वरूप सामने आया विद्वत् खण्ड / ४० Jain Education International उसने नागरिकीय मानसिकता में यह सवाल खड़ा कर दिया कि कल कोई नई तकनीक आने वाली है। इसका आलम यह हुआ कि इन माध्यमों में भी विकसित, अति विकसित और नव विकसित माध्यमों की रेलमपेल रही और अब सद्य तकनीक अथवा लेटेस्ट टेक्नोलॉजी एक कहावत के रूप में सामने है। संचार माध्यमों में आज रेडियो और दूरदर्शन की बात क्या करें, उपग्रहीय संचार माध्यम सामने हैं और विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना, दुर्घटना अथवा आयोजन को तत्काल अथवा साथ-साथ किसी अन्य कोने में देखा जा सकता है। फिल्मों में भी आज कई तकनीकें सामने हैं तथा सदियों पुराने जीवों को भी सजीव और साकार रूप में फिल्माये जाने की आधुनिककृत पद्धतियां सामने आई है जिनके मूल में कम्प्यूटर है। आज दूर संवेदी तकनीक भी संचार माध्यमों के साथ है। इसके विपरीत पारम्परिक संचार माध्यमों के साथ यह विकासक्रम नहीं देखा जा सकता। इसी कारण जमाने की हवा वाले किसी व्यक्ति के सामने यदि पारम्परिक या ठेठ देहात की बात की जाती है तो बेमानी लगाती है। यह भी एक युगीन सच है कि नवीकृत माध्यमों को अधुनातन करने की दशा में सरकारें और वैज्ञानिक कितना चिंतन और अर्थ नियोजन या अर्थ निवेशन कर रहे हैं उतना पारम्परिक माध्यमों के साथ देखना तो दूर, सोचना भी सम्भव नहीं है। जीवन शैली में नवीनता भारत की ही क्या बात करें, विश्व की ही जीवन शैली में एकदम बदलाव आया है न केवल पारिवारिक सम्पदाओं बल्कि सामाजिक रिश्तों पर भी इस बदलाव का असर देखा जा सकता है। आज की जीवन शैली नवीनता की अनुगामिनी है । परम्परा या पौराणिकता को वह छोड़ देना चाहती है। नवीनता की अनुशायिनी होने से जहां जीवन को अर्थ मिला है वहीं वह अपनी परम्परा से टूटे पत्ते की तरह कट गई है। आज के जीवन के पास पैसा है किन्तु समय नहीं है। वह लोकशिक्षण की बात भूल चुका है जबकि पारम्परिक माध्यम लोकशिक्षण के बहुआयाम लिए उपस्थित होते रहे हैं। बदलाव के इस दौर ने पारम्परिक माध्यमों पर न केवल आघात किया अपितु उनका सर्वदृष्टि दमन भी किया है। For Private & Personal Use Only शिक्षा - एक यशस्वी दशक www.jainelibrary.org

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