Book Title: Laghu Prakaran Sangraha Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ उरगा य जोयापुहुत्तं ॥ गाच्य पुहुत्त मित्ता, समुचिमा चपया मणिया ॥ ३१ ॥ बच्चैव गाजआइ, चनप्पया गज्नया मुणेयब्वा ॥ कोसतिगं च मणुस्सा, नक्कोस सरीरमाणें ॥ ३२ ॥ इसाणंत सुराणं, रयणी सत्त देद मुच्चत्तं ॥ डुगडुग डुग चनगेवि, ऊ गुत्तरे क्किक्कपरिदाणी ॥ ३३ ॥ बावीसा पुढवीए, सत्तय प्राजस्स तिन्नि वास्स ॥ वाससदस्सादस तरु, गणाण तेऊ तिरित्ता | ॥ ३४ ॥ वासाण बारसाऊ, बिइंदियाणं तिइंदियाणं तु ॥ ऊणपन्नदि गाणं, चरिंदीणं तु बम्मासा ॥ ३५ ॥ सुरनेरझ्याण विई, नकोसा साग |राणि तित्तीसं ॥ चनपय तिरिय मणुस्सा, तिन्निय पलिवमा हुंति ॥ ३६ ॥ जलयर नरनुअगाणं, परमाऊ होइ पुनक्कोमी ॥ परकीणं पुण जर्जि संखनागोय पलियस्स ॥ ३७ ॥ सबे सुडुमा साहा, रणा य सम्मुचिमा | माणुस्सा य ॥ नकोस जन्नेणं, अंतमुहुत्तं चियजियंति ॥ ३८ ॥ गादगाउ Jain Educationaonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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