Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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जीववि०
॥ ३॥
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माणं, एवं संखेवर्ड समस्कायं ॥ जे पुण व विसेसा, विसेससुत्तान ते ने प्रकरण. या ॥ ३९ ॥ एगिंदिया य सबे, प्रसंख उस्सप्पिणी सकायम्मि ॥ नवव ति चयंति य, प्रांतकाया अता ॥ ४० ॥ संखिक समा विगला, सत्तठ नवा पणिदि तिरि मणुआ ॥ नववऊंति सकाए, नारयदेवा य नो चेव ॥४२॥ दसदा जियाण पाणा, इंदिय ऊसास आज बल रूवा ॥ एगिदिए चरो, | विगलेसु बसत ठेव ॥ ४२ ॥ सन्निसन्नीपंचिं, दिएसु नवदस कमेण बोधवा || ते हि सद् विप्पगो, जीवाणं जन्नए मरणं ॥ ४३ ॥ एवं अणोर पारे, संसारे सायरम्मि श्रीमम्मि ॥ पत्तो अणंतखुत्तो, जीवेहिं अपत्तधम्मेहिं ॥ ४४ ॥ तद चउरासी लका, संखा जोगीण होइ जीवाणं ॥ पुढवाईण च उपहं, पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥ ४५ ॥ दस पत्तेय तरूणं, चउदस लका हवंति इयरेसु ॥ विगलिंदिए दो दो, चउरो पंचिंदि तिरियाणं ॥ ४६ ॥ चरो चन
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॥ ३ ॥
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