Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ प्रकरण. नवतानीय साय मिबत्तं ॥ थावर दस निरयतिगं, कसाय पणवीसतिरियगं॥२७॥all ग बिति चन जाई, कुखगइ नवघाय हुंति पावस्स ॥ अपसबं वन्न चऊ, अपढम संघयण संगणा ॥१॥ थावर सुहुम अपजा, साहारण मथिर ।। मसुन उनगाणि ॥ उस्सर णाश्ज जसं, थावरदसगं तु विस्मेयं ॥ २०॥ इति पापतत्वम् ॥ इंदिश कसाय अन्वय, जोगा पंच चन पंच तिमि कमा ॥ किरिआ पणवीसं, इमान ता अणुकमसो ॥२१॥ काश्य अदिगरणीआ, || पानसिा पारितावणी किरिया ॥ पाणाश्वा रंनिअ, परिगदिया मायवत्ती अ॥३२॥ मिना दंसण वत्ती, अपच्चखाणाय दिहि पुहीअ ॥ पाडुच्चि सामंतो, वणीअ नेसबि साहबी॥ २३ ॥आणवणि विारणीआ, अण all लोगा अणवकंखपच्चश् ॥ अन्नापउँग समुदा, ण पिङ दोसे रिआवदि आ॥२४॥ इत्याश्रवतत्वम् ॥ समई गुत्ति परीसह, जश्वम्मो नावणा च । Jain Educational For Personal and Private Use Only lokllinelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 222