Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ लारो नारय, सुराण मणुाण चनदस हवंति ॥ संपिंडिआन सत्वे, चुलसी लाल स्कान जोणीणं ॥४७॥ सिक्षण नवि देहो, न आन कम्मं न पाण जोणी॥ साइ अणंता तेसिं, लिई जिणंदागमे नणिया ॥ ४ ॥ काले अणाशनिद णे, जोणि गहमम्मि नीसणे श्व ॥ नमिया नमिदंति चिरं, जीवा जिणव । यण मलहंता ॥४ए॥ता संप संपत्ते, मणुअत्ते उल्लहे वि संमत्ते॥ सिरिसं तिसूरि सिहे, करेद नो उऊमं धम्मे ॥ ५० ॥ एसो जीववियारो, संखेवरु । भाईण जाणणादेऊ ॥ संखित्तो नहरि, रुद्दा सुयसमुद्दा ॥५१॥इति जीवन सं० ॥ अथ श्रीनवतत्त्वप्रकरणप्रारंनः ॥ जीवाऽजीवा पुस्मं, पावाऽसव । संवरो य निकरणा ॥ बंधो मुरको य तदा, नव तत्ता हुंति नायवा ॥१॥ चउदस चनदस बाया, लीसा बासीय हुँति बायाला ॥ सत्तावन्नं बारस, चन नव नेया कमेणेसिं ॥ २॥ एगविद उविद तिविदा, चनविदा पंच नविदा Jain Educationa l a For Personal and Private Use Only Dainelibrary.org

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