Book Title: Laghu Karmvipak Sastabakartha
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय 'लुषकर्मविपाक' ए एक अज्ञातकर्तृक तथा आदिमंगल तथा अंत्य प्रशस्ति आदि विनानुं नानकडुं प्रकरण छे, जे संस्कृत भाषामां छे. सरल भाषामां पापकर्मनां फल केवां होय तेनुं आमां हृदयंगम वर्णन थयुं छे. सामान्य रीते अजैन कर्तानुं रचेलुं होवानो भास करावे तेवुं आ प्रकरण वास्तवमां जैन कर्तानुं ज बनावेलुं छे, तेनी खातरी २८मा पद्य परथी थाय छे. अलबत्त, जैन कर्मसाहित्यमां आवी रीते, आ कामनुं आ फल मळे, एवं भाग्ये ज आवे छे. जैन कर्मसाहित्यमां आवता कर्मग्रंथो पैकी प्रथम कर्मग्रंथनुं नाम 'कर्मविपाक' छे. 'लघु कर्मविपाक' एवं नाम तेने अनुसरीने रखायुं होय तेम लागे छे. ६३ पोमां पथरायेल आ प्रकरणनो टबार्थ पण साथे ज लखायेलो छे. श्लोकना शब्दनी उपर तेनो गुर्जर शब्दार्थ लखाय तेनुं नाम टबो-स्तबुकार्थ गणाय छे. अहीं ते टबो, जे ते श्लोकनी नीचे, संकलित करीने, मूकवामां आव्यो छे. आ टबामां केटलाक शब्दोनो अर्थ आम समजवानो छे : श्लोक पाहणी " "" " लघु-कर्मविपाक सस्तबकार्थ "2 १५ कारुण २२ रतिवती २२ क्रम ३४ मातरु " मूत्र आ प्रकरणनी सं. १६९६मां लखायेली ७ पत्रोनी एकमात्र प्रति भावनगरना शेठ डोसाभाई अभेचंदनी पेढीना ज्ञानभंडारमाथी प्राप्त थई छे, तेना आधारे, मारा पूज्य आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि महाराजनी सूचना तथा मार्गदर्शन प्रमाणे यथामति संपादन करीने अत्रे रजू करी रह्यो छु. आमां कोई क्षति होय तो सुधारवा विनंति. Jain Education International ५ ९/२५ राफो पथरी राफड़ो (केन्सर ?) शिल्पीना ऋतुवंती (स्त्री) कृमि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11