Book Title: Labhodaya Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ September-2003 67 ।।२८।। खाजई पीजइ कीजई तीय भोग, बोधा बोलई जगि इयाही ज जोग । पंच वखत नमाज गुजारई, छरीय लेई बहु जीव संहारई काजी मूलां कहीइं सुणो साह, खुदाई इयाही फूरमाया राह । साही कहइ ए सब हई जूठे, खुदाय थकी चालइ अ पूठे । इउं करतां किउं पाईइ दीन, जाकु मन दूनीआसुं लीन ॥२९॥ दुहा ॥ ए सव रजब जूठे कीए, वडवखती कहइ मीर । दुनीआं दीपक एक मइ, श्रवणि सुणे गुरु हीर सो हम वेगि बोलाईउ, देखि तास दीना (दा) र । कहणी - करणी सांचउ, जोगीसर संसार ढाल || ताकी करणी बहुत कठीन, किन पई कही जाय जीव न मारई । बाल उचावई धरम जाणि अ- सेह इं उही (?) देस विलाति सहु गाम फीरइं प्रतिबंध न मोही । सत्तु - मित्त समचित गिणई, कीसहिं न दीइं दोस महिनइ दस रोजा करइ, न करइ टूक रोस जूठ नहीं, तीय सहु जिसी माय, कउडी न राखई पास एक कर खुदाकी । लेत नाही काछू गयर दिउ, परवाह न कीसकी खाना खावइ एक बेर, पीवइ ताता नीर बाजी तमासु खेल नाहीं ध्यावर एक पीर । हरी तरकारी नहीं थालइं नाहीं लेत तंबोल नांगे पाउं उ फीरई, सदो बहु (सदोस हु?) बोलइ न बोल ||३२|| भुई सोवइ धूपकांलि धूप सीतकालिई सीत समतिणमणि नाहीं क्रोध लोभ कामवयरी जीत । पाढ पढइ गुरु ध्यान धरई होवइं गुणरागी Jain Education International ||३०|| For Private & Personal Use Only ॥३१॥ ॥३३॥ ॥३४॥ www.jainelibrary.org

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