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September-2003
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।।२८।।
खाजई पीजइ कीजई तीय भोग, बोधा बोलई जगि इयाही ज जोग । पंच वखत नमाज गुजारई, छरीय लेई बहु जीव संहारई काजी मूलां कहीइं सुणो साह, खुदाई इयाही फूरमाया राह । साही कहइ ए सब हई जूठे, खुदाय थकी चालइ अ पूठे । इउं करतां किउं पाईइ दीन, जाकु मन दूनीआसुं लीन
॥२९॥
दुहा ॥
ए सव रजब जूठे कीए, वडवखती कहइ मीर । दुनीआं दीपक एक मइ, श्रवणि सुणे गुरु हीर सो हम वेगि बोलाईउ, देखि तास दीना (दा) र । कहणी - करणी सांचउ, जोगीसर संसार
ढाल ||
ताकी करणी बहुत कठीन, किन पई कही जाय जीव न मारई ।
बाल उचावई धरम जाणि अ- सेह इं उही (?) देस विलाति सहु गाम फीरइं प्रतिबंध न मोही । सत्तु - मित्त समचित गिणई, कीसहिं न दीइं दोस महिनइ दस रोजा करइ, न करइ टूक रोस
जूठ नहीं, तीय सहु जिसी माय, कउडी न राखई पास एक कर खुदाकी । लेत नाही काछू गयर दिउ, परवाह न कीसकी खाना खावइ एक बेर, पीवइ ताता नीर बाजी तमासु खेल नाहीं ध्यावर एक पीर ।
हरी तरकारी नहीं थालइं नाहीं लेत तंबोल
नांगे पाउं उ फीरई, सदो बहु (सदोस हु?) बोलइ न बोल ||३२||
भुई सोवइ धूपकांलि धूप सीतकालिई सीत समतिणमणि नाहीं क्रोध लोभ कामवयरी जीत । पाढ पढइ गुरु ध्यान धरई होवइं गुणरागी
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॥३१॥
॥३३॥
॥३४॥
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