Book Title: Labhodaya Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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चालि ॥
गुरु का हमारा कीजइ, उपाध्याय पदवी दीजइ । साही अकबर दिउ खताब, मनि जाणी बहुत सबाब ||२०||
मुहुरत भलु दिन लीजइ, उपाध्याय पदवी दीजइ । महोछु करइ सेष सुजाण, द्रव्य खरचइ बहुत मंडाण ॥ २१ ॥
दु
चूआ चंदन छांटणा, श्रीफल उ तंबोल ।
जाचिक अजाची कीया, आणी सेषि उलोल ॥२२॥ चालि ॥
मनि आणी अति उलोल, सेष करइ सबल रंगरोल । उपाध्याय पदवी द्यावी, जगमई जसपडहु वजावी
अकबर सहगुरुकुं बकसइ, ते सुणतां हीयडुं विकसय । नगरथठउ सिंध कच्छ, पांणी बहुला जिहां मच्छ
जइ गुरु सांचा निसप्रही, तु मागई अभयदांन । साही पासि करावीया, एह अडीग्ग फूरमान ||२७||
चालि ॥
अनुसंधान-२५
प्रमाण ।
इय बोलइ साही सुजाण, गुरु जेसंग अकबर साही, दुजेउं अविचल पतिसाही जिहां मेर जलही सूरचंद, तिहां प्रतिपु एह मुणिंद । साधु साधवी श्रावक श्रावी, उदयवंत सुगुरु पद पावी करतव्य जे अकबर कीधां, सहु जाणे लोकप्रसिद्धां जगतगुरु दीधुं नाम, छ मास अमारि फूरमान
॥२५॥
जिहां हुता बहुत सिहार, ध्यन ध्यन सहगुरु उपगार । च्यार मास को जाल न घालइ, वसेषिरं वली वरसालइ गाय मरती मनय सहु कीधी, दिन बार अमारि वर दीधी ||२६|| दुहा ॥
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॥२३॥
||२४||
||२८||
॥२९॥
||३०||
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